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खंडहर होती जा रही ऐतिहसिक स्मारक अलीजान की बावड़ी

जीएस भारद्वाज नारनौल,11जून। बीरबल की नगरी नारनौल अनेक प्राचीन स्मारकों को अपने अंचल में संजोए हुए है, लेकिन समय की मार ने स्मारकों की दशा को विकृत कर दिया है। उल्लेखनीय है कि बीरबल की नगरी नारनौल में कुल 14 ऐतिहासिक स्मारक आज भी मौजूद हैं। इनमें तीन स्मारक केंद्रीय पुरातत्व विभाग और 11 स्मारकें […]
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जीएस भारद्वाज

नारनौल की ऐतिहासिक स्मारक अलीजान की बावड़ी सुनसान एवं जर्जर अवस्था में पड़ी अपनी बदहाली पर आंसू बहाती हुई। छाया-भारद्वाज

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नारनौल,11जून। बीरबल की नगरी नारनौल अनेक प्राचीन स्मारकों को अपने अंचल में संजोए हुए है, लेकिन समय की मार ने स्मारकों की दशा को विकृत कर दिया है।
उल्लेखनीय है कि बीरबल की नगरी नारनौल में कुल 14 ऐतिहासिक स्मारक आज भी मौजूद हैं। इनमें तीन स्मारक केंद्रीय पुरातत्व विभाग और 11 स्मारकें हरियाणा पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित हैं। इन स्मारकों में एक प्रसिद्ध स्मारक है अलीवली खान की बावड़ी। जिसे लोग अली जान की बावड़ी के नाम से पुकारते हैं। अलीवली खान दिल्ली के बादशाह अकबर के जागीरदार थे। इस बावड़ी की दीवार पर फारसी भाषा में लिखे शिलालेख के अनुसार अलीवली खान ने 1561 ई. में नारनौल शहर के पश्चिमी छोर पर छलक नदी के किनारे पर करवाया था। इस बावड़ी के ऊपर एक हवादार कमरेनुमा बरामदा है। बरामदे में जाने के लिए दोनों ओर से सीढिय़ां बनी हुई हैं। बरामदे के ऊपर एक सुंदर संगमरमर का 21 फुट लंबा, 9 फुट चौड़ा तथा 8 फुट ऊंचा तख्त बना हुआ है। बावड़ी के दक्षिण में इससे सटा हुआ एक कुआं है। जो अब सूख चुका है। बावड़ी के सामने एक काले संगमरमर का फव्वारा बना हुआ है। बावड़ी से करीब 500 गज की दूरी पर उत्तर दिशा की ओर अली वली खान का महल बना हुआ था, जो देखरेख के अभाव में नेस्ताबूद होकर खेत में परिवर्तित हो गया है। खेत मालिक राधे सोनी ने बताया कि इस खेत में अब भी अवशेष के रुप में 13 फुट नीचे एक फव्वारा बना हुआ है। बावड़ी से महल तक मिट्टïी की पाइप लाइन है। बावड़ी तथा वहां बने प्राचीन फव्वारे तथा उनमें पानी पहुंचाने की प्राचीन व्यवस्था देखने योग्य है। वर्तमान में बावड़ी बहुत ही जीर्णावस्था में है। अब भी इसे देखने बहुत से लोग आते हैं और बावड़ी के तख्त पर बैठ कर नगर के प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेते हैं। जिला प्रशासन ने इस बावड़ी की आंशिक मरम्मत का कार्य ही संपन्न करवाया है, लेकिन यह कार्य बिल्कुल संतोषजनक नहीं है। इस ऐतिहासिक स्मारक की हालत यह हैं कि अब इसकी देखरेख करने के लिए भी कोई कर्मचारी मौजूद नहीं होता हैं इस कारण हरियाणा पुरातत्व विभाग द्वारा लिखा गया बोर्ड भी वहां से गायब हो गया हैं और वहां उगी भारी कांटेदार झाडिय़ों और पेड़ पौधो के कारण इस दर्शनीय स्थल का रूप भी डरावना जैसा बन कर रह गया हैं।

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