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68 तीर्थों में शुमार समचाना का नागदेव का मंदिर

रोहतक, 28 अगस्त (हप्र)। रोहतक जिले के सांपला खंड का गांव समचाना स्थित प्रसिद्ध महाभारत कालीन नागदेव का मंदिर अपनी प्रसिद्धि के चलते विदेशों में भी पहचान बनाये हुए है। 68 तीर्थों में शुमार यह स्थल महर्षि कर्दम की तपोभूमि भी रहा है। यहां बनी मंदिरों की शृंखला, तालाब एवं वन क्षेत्र इसके सौंदर्य को […]
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रोहतक, 28 अगस्त (हप्र)। रोहतक जिले के सांपला खंड का गांव समचाना स्थित प्रसिद्ध महाभारत कालीन नागदेव का मंदिर अपनी प्रसिद्धि के चलते विदेशों में भी पहचान बनाये हुए है। 68 तीर्थों में शुमार यह स्थल महर्षि कर्दम की तपोभूमि भी रहा है। यहां बनी मंदिरों की शृंखला, तालाब एवं वन क्षेत्र इसके सौंदर्य को बढ़ाते हैं। लोग यहां नाग एवं बंदरों की पूजा के साथ-साथ तालाब में नहाकर शारीरिक स्वास्थ्य का भी लाभ उठाते हैं। गूगानवमी के दिन यहां पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। इस दिन यहां विशाल मेले का आयोजन होता है। हरियाणा प्रदेश के अलावा देश के दूर-दराज के क्षेत्रों व विदेशों से भी श्रद्धालु नागदेवता के मंदिर में माथा टेकने आते हैं।
मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। मंदिर के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए महन्त बाबा कृष्णदास व गांव के पं. लोकेश दत्त ने बताया कि महाभारत पुराण के अनुसार एक दिन अग्निदेव ब्राह्मण देव का रूप धारण कर अर्जुन के पास आये व कहा कि यदि तुम खांडव वन को जलाने में मेरा सहयोग दो तो मैं रोग मुक्त हो सकता हूं। इंद्र का मित्र नागराज तक्षक इसी वन में रहता है। जब मैं वन को जलाऊंगा तो इंद्र देव वर्षा करके उसे बुझा देंगे, इसलिए आप मेरी सहायता करो। महाबली अर्जुन व भगवान श्रीकृष्ण, ब्राह्मïणवेशधारी अग्निदेव की सहायता के लिए चल पड़े व अग्नि देव ने खांडव वन को जला डाला। अग्नि बुझाने के लिए स्वयं इंद्र देव भी वरुण सहित युद्ध भूमि में आए, लेकिन अर्जुन व भगवान कृष्ण के सामने उनकी एक न चली व इन्द्र पराजित हो गए। इस भयंकर विनाशकारी अग्निकांड में मात्र 6 प्राणी शेष बचे- नागराज तक्षक, शिल्प सम्राट मयासुर और सार्गंक नामक चार पक्षी (जरतारी, सारीसृक्व, स्तम्ब मित्र तथा द्रोण)। इस घटना से तक्षक अर्जुन का घोर शत्रु बन गया। महाभारत का युद्ध प्रारंभ होने पर उसने कर्ण से विनती की कि वह उसे अपने बाण पर बैठा ले, ताकि वह अर्जुन का वध कर सके। कर्ण ने नागराज की बात मानते हुए उन्हें अपने बाण पर बैठा लिया व अर्जुन की ग्रीवा को लक्ष्य करके बाण छोड़ दिया। पार्थसारथी भगवान श्रीकृष्ण ने नागराज तक्षक को बाण पर बैठा देख लिया व उन्होंने अर्जुन की प्राण रक्षा के लिए रथ पर त्रिलोकी का भार डाल दिया, जिससे रथ धरती में धंस गया व अर्जुन की ग्रीवा के स्थान पर उसका मुकुट तक्षक उतारकर ले गया। नागराज तक्षक ने श्रीकृष्ण के प्रति रोष प्रकट करते हुए कहा कि हे वासुदेव मैंने आपके प्रति ऐसा कौन सा अपराध किया है जो आपने मेरे शत्रु अर्जुन की रक्षा की। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि हे नागराज राजा का मुकुट उतार लेना उसका सिर उतार लेने के समान होता है। अत: तुम्हारी प्रतिज्ञा पूरी हो चुकी है। मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि तुम रिद्धिसिद्धि के दाता होगे व कलियुग में जो लोग श्रद्धा से तुम्हारी पूजा करेंगे वह सब प्रकार कुशलता से रहेंगे।

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