हिंदी फीचर फिल्म : गोपी
शारा
भारतीय सिनेमा उद्योग के स्वर्णिम वर्षों का प्रतिनिधित्व करती 1970 में रिलीज़ फिल्म ‘गोपी’ में वे सभी स्वाद विद्यमान थे जो इसे विशुद्ध बॉलीवुड स्टाइल फिल्मों के वर्ग में रखने के लिए ज़िम्मेदार थे। यह दिलीप कुमार की हिट फिल्मों में से एक थी, जिसने अपने दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया—गांवों और शहरों के दर्शक दोनों का। यह फिल्म युवा दर्शकों को भी उतनी ही भायी, जितनी बुज़ुर्गों को। गांव का बड़बोला, बात-बात पर साहूकार से भिड़ने को तैयार रहने वाला और भाभी पर जान न्योछावर करने वाला देवर सभी को खूब भाया। शहर जाकर चाकरी करके मालिकों के मन में बसने का हुनर तो कोई गोपी से सीखे। कुल मिलाकर इसे भी दिलीप कुमार की ही फिल्म कह सकते हैं लेकिन इस फिल्म को ओमप्रकाश की फिल्म के नाम से भी जाना जाता है, कारण—ओमप्रकाश का बेजोड़ अभिनय। जैसे अमिताभ की फिल्म शराबी में नत्थुलाल की मूंछें वाले संवाद के साथ ही ओमप्रकाश ने लोकप्रियता के ऊंचे पायदान को छू लिया, वैसे ही गोपी में उनका बड़े भाई वाला किरदार कई साल तक दर्शकों के दिलोदिमाग पर छाया रहा। उसके बाद तो उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। ‘आंधी’ का छुटभैया नेता, ‘चुपके-चुपके’ के शर्मिला के जीजा जी, ‘पड़ोसन’ के विधुर मामा, ‘चमेली की शादी’ व ‘खानदान’ सरीखी ढेरों फिल्में ऐसी हैं, जिसमें ओमप्रकाश का किरदार किसी न किसी रूप में हमारी यादों में बस गया है। फ्लैश बैक के पाठकों को बता दूं कि ओमप्रकाश का असली नाम ओमप्रकाश छिब्बर था। उनका जन्म जम्मू-कश्मीर में हुआ था। वह बचपन से ही कला, थियेटर की तरफ आकर्षित थे। उन्होंने आल इंडिया रेडियो में 25 रुपये मासिक पर भी नौकरी की। उन दिनों उनका किरदार ‘फतेहद्दीन’ लोगों के सिर चढ़कर बोलता था। एक दिन किसी शादी में जब वह लोगों को हंसा रहे थे, उन पर दालसुख पंचोली की नजर पड़ी। पंचोली ने ही उन्हें पहली फिल्म ‘दासी’ में ब्रेक दिया। उसके बाद तो उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। कॉमेडी से शुरू करके उन्होंने कई गंभीर भूमिकाएं भी अदा कीं। उन्होंने अपने जीवन में 307 फिल्मों में काम किया। बाद में उन्होंने फिल्में भी प्रोड्यूस करनी शुरू कीं। ‘जहांआरा’, ‘संजोग’, ‘गेटवे ऑफ इंडिया’ आदि के नाम बानगी के तौर पर लिये जा सकते हैं। ओमप्रकाश के जीवन पर इतना प्रकाश डालने की इसलिए भी दरकार है क्योंकि यही वह फिल्म है, जिसमें ओमप्रकाश की बेजोड़ अदाकारी को देखकर दिलीप कुमार भी हीन भावना का शिकार हो गये थे। हालांकि, उनका करेक्टर रोल था लेकिन अभिनय की मंजावट, बारीकी से एक बारगी तो दिलीप कुमार का किरदार भी गौण लगने लगा था। स्वयं दिलीप कुमार ने यह स्वीकारोक्ति की है कि उन्हें जिंदगी में एक बार कॉम्प्लेक्स हुआ था, और वह भी गोपी फिल्म के दौरान ओमप्रकाश के अभिनय से। गानों ने भी फिल्म को हिट करवाने में महती भूमिका निभायी। ‘सुख के सब साथी, दुख में न कोय’, ‘रामचंद्र कह गये सिया से’, ‘साला मैं तो साब बन गया’ आदि गीतों ने तब क्या धूम मचायी थी। तब बिनाका कार्यक्रम में किसी न किसी रूप में ‘गोपी’ फिल्म का एकाध गाना जरूर होता था।
इस फिल्म के बारे में एक और दिलचस्प बात। पहले यह फिल्म राजेंद्र कुमार को ऑफर हुई थी लेकिन सायरा बानो को बतौर अभिनेत्री लिया गया तो निर्देशक को लगा सायरा बानो के साथ दिलीप की ही जोड़ी जमेगी तो उन्होंने दिलीप कुमार को बतौर हीरो ले लिया। राजेंद्र कुमार क्या करते बेचारे? उन्हें साइनिंग अमाउंट तक वापस करना पड़ा। बढ़िया अभिनेता के अभिनय के लिए दिलीप कुमार को 1971 में फिल्म फेयर के सर्वोत्तम नायक पुरस्कार के लिए भी नामांकित किया गया। यह फिल्म पहले कन्नड़ भाषा में भी बतौर ‘चिन्नादा गोम्बे’ तथा तमिल में ‘मुराडन मुत्थु’ के नाम से बन चुकी थी। भीम सिंह के निर्देशन में बनी इस फिल्म ने उस समय देश में 1.4 करोड़ रुपये तथा विदेशों में 2.8 करोड़ रुपये का राजस्व बटोरा था।
जहां तक स्टोरी का सवाल है—उस समय देश के गांव विकास से कोसों दूर थे क्योंकि निरक्षर होने के कारण गांव के सारे संसाधनों पर साहूकार का कब्ज़ा था। जो ज़रा भी आवाज़ बुलंद करता, इल्ज़ाम लगाकर और कानून का डर दिखाकर गांव से भगा दिया जाता था। गोपी के साथ भी ऐसा हुआ, वह अपने बड़े भाई के साथ रहता था, मेहनत-मज़दूरी करके भाई-भाभी की सेवा कर रहा था कि बड़बोले होने के कारण साहूकार उस पर चोरी का इल्ज़ाम लगा देता है। भाई पर चोरी का आरोप लगते देख ओमप्रकाश को लगता है कि समाज में उसकी नाक कट गयी। वह गुस्से में आकर छोटे भाई गोपी को घर से निकाल देता है। खुन्नस में गोपी शहर जाकर मेहनत-मशक्कत करके खुद को इस काबिल बनाता है कि वह सम्मानजनक तरीके से गांव लौट सके। वह गांव के संसाधनों पर काबिज़ लोगों से गिन-गिन कर बदला लेता है। कैसे लेता है? खुद फिल्म देखकर फैसला करिये।
निर्माण टीम
प्रोड्यूसर : टी.एस. मुत्थुस्वामी, एस.एस. पलानी अप्पन.
कथाकार : एस. मुखर्जी.
निर्देशक : ए. भीम सिंह.
गीतकार व संवाद : राजेंद्र कृष्ण.
संगीतकार : कल्याण जी-आनंद जी.
सितारे : दिलीप कुमार, सायरा बानो, ओमप्रकाश, प्राण, फरीदा जलाल, निरूपा राय, दुर्गा खोटे, जॉनी वॉकर आदि.
गीत
अकेले ही अकेले चला है कहां : लता मंगेशकर.
भैया, आज जम तो तुम्हें : महेंद्र कपूर.
रामचंद्र कह गये सिया से : महेंद्र कपूर.
सुख के सब साथी : मोहम्मद रफी.
जैंटलमैन जैंटलमैन : महेंद्र कपूर व लता मंगेशकर.
एक पड़ोसन पीछे पड़ गयी : लता मंगेशकर, महेंद्र कपूर.