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सात्विक वीणा की मधुर झंकार

सुरों के सरताज....उंगलियों में जादू..... वीणा वादन पर अटूट राज....कुछ ऐसा ही है पं. विश्व मोहन भट्ट का परिवार। वीणा वादन के ज़रिए भारतीय शास्त्रीय संगीत को एक नया आयाम देने वाले पं. विश्व मोहन भट्ट ने अपनी उंगलियों से वीणा में जादुई सुर पिरो कर इन्हें विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाया है।
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शख्सियत

शास्त्रीय संगीत को सात्विक वीणा की सौगात देकर उसे और समृद्ध बनाने वाले सलिल भट्ट देश के प्रतिष्ठित संगीतमय भट्ट परिवार के प्रतिनिधि कलाकार हैं। वे देश के ऐसे ख्यातिलब्ध संगीतज्ञ हैं, जो कैनेडियन ग्रैमी अवार्ड (जूनो अवॉर्ड) के लिए नॉमिनेट हुए। ग्रैमी अवार्ड विजेता पिता पं. विश्वमोहन भट्ट के बेटे के लिए बुलंदी तक पहुंचना कोई आसान काम न था, लेकिन सलिल भट्ट ने इसे पूरा कर दिखाया और संगीत की दुनिया में अपना एक अलग मुकाम बनाया।

श्वेता रंजन
सुरों के सरताज….उंगलियों में जादू….. वीणा वादन पर अटूट राज….कुछ ऐसा ही है पं. विश्व मोहन भट्ट का परिवार। वीणा वादन के ज़रिए भारतीय शास्त्रीय संगीत को एक नया आयाम देने वाले पं. विश्व मोहन भट्ट ने अपनी उंगलियों से वीणा में जादुई सुर पिरो कर इन्हें विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाया है। ज़ाहिर है कि ग्रैमी अवार्ड विजेता पद्मश्री पं. विश्व मोहन भट्ट के बेटे सलिल भट्ट के लिए भी सुरों से खेलना कोई नयी बात नहीं थी। आज बात सात्विक वीणा इजाद करने वाले सलिल भट्ट की।

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सुरों में बीता बचपन
बचपन से ही सुर–ताल की सहज समझ यह दर्शाती थी कि सलिल अपनी उम्र के सभी बच्चों से अलग थे। जहां बच्चे अमूमन क्रिकेट या फुटबॉल खेला करते थे, वहीं सलिल का अधिक से अधिक समय वीणा वादन के अभ्यास में गुज़रता था। तंत्री सम्राट की उपाधि से नवाज़े गए 45 वर्षीय पंडित सलिल भट्ट कहते हैं-‘संगीत की साधना का अभ्यास बचपन से ही होना चाहिए। और इस अभ्यास का रिजल्ट 100 प्रतिशत एकाग्रता और साधना के बाद ही मिलता है। ईश्वर की कृपा से मैं पूरी शिद्दत से इससे जुड़ पाया हूं।’ बचपन से ही सलिल अपने पिता को गुरु जी या फिर पंडित जी कह कह संबोधित किया करते थे। वे बताते हैं- ‘पंडित जी बाकी बच्चों के साथ ही मुझे संगीत की शिक्षा दिया करते थे। उनका मानना था कि क्लास में हर बच्चा बराबर है, इसलिए मुझे पुत्र होने के कारण किसी और विद्यार्थी से भिन्न नहीं माना जा सकता है।’

रग-रग में संगीत
सलिल उम्र से पहले वीणा की बारीकियों को समझने लगे थे। वे कहते हैं-‘पंडित जी के बेटे होने के कारण संगीत मेरी रगों में बहता है। एक शिष्य के रूप में मैंने पंडित जी को बेहद कम निराश किया है। कक्षा में गुरु जी जब भी किसी राग के स्वरूप को समझाते थे या फिर सवाल करते थे तो मैं सबसे पहले उत्तर प्रस्तुत करता था।’ घर का माहौल सदैव संगीतमय था, इसलिए सलिल का संगीत के प्रति झुकाव सामान्य बात थी। लेकिन सफलता बगैर अथक प्रयास और साधना के नहीं मिलती। वह बताते हैं-‘जब से मैंने आंख खोली, तब से मुझे घर के हर कोने से संगीत की धुन सुनाई देती थी। गुणवान लोगों की संगत में मैं बड़ा हुआ। मेरी बुआ और ताऊ जी सितार के महारथ थे। मैंने घर में हमेशा यही सुना, देखा और महसूस किया है कि संगीतकार कभी बूढ़े नहीं होते हैं- ना तो शरीर से, ना ही दिमाग से।’

500 साल पुरानी विरासत
तकरीबन 500 वर्ष पुरानी विरासत को आगे बढ़ाने वाले सलिल भट्ट ने एमबीए भी की और भारतीय सेना में अर्हता भी हासिल की। इसके बावजूद सलिल ने संगीत को सब प्रोफेशन्स से ऊपर माना। उनके लिए संगीत के बगैर जीवन अधूरा था। वे कहते हैं-‘मैंने भारतीय सेना को ज्वॉइन करने का मन बनाया था, लेकिन मुझे लगा संगीत ही मेरा सबकुछ है। मैं एक आज़ाद पंछी की तरह खुले आसमान में उड़ना चाहता था, इसलिए मैंने अपने दिल की आवाज़ को ज्यादा तवज्जो दी।’ पं. विश्व मोहन भट्ट के बेटे होने के नाते सलिल से लोगों को उम्मीदें भी बहुत थीं। हालांकि सलिल उन उम्मीदों पर खरे भी उतरे हैं, लेकिन उनके जीवन में एक ऐसा दौर भी आया, जब वो यह महसूस करने लगे थे कि उनकी तुलना उनके गुरु से की जाने लगी है। कई बार उन्हें इस बात पर निराशा भी होती थी। सलिल कहते हैं-‘शुरुआत में मुझे बहुत बुरा लगता था लेकिन मेरे गुरु ने मुझे यही समझाया कि मुझे बस निरंतर रियाज़ जारी रखना है।’

मुश्किलों से भरी थी राह
सलिल अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहते हैं-‘मेरी ज़िंदगी फूलों की सेज की तरह बिलकुल नहीं रही है। मुझे लगता है किसी सेलिब्रिटी का बेटा या बेटी होना सबसे मुश्किल काम है।’ शायद इसलिए सलिल एक साधारण इंसान की तरह जीना ज्यादा पसंद करते हैं। एक हंसमुख शख़्स जो हर किसी से एक दोस्त के अंदाज़ में मिलता है, कुछ ऐसा है सलिल का व्यक्तित्व। पुराने दिनों को याद करते हुए सलिल को हंसी आ जाती है और वे कहते हैं-‘मुझे याद है जब मेरे दोस्त अपनी पसंद के प्रोफेशन का चयन कर रहे थे। कोई डॉक्टर बनना चाहता था तो कोई इंजीनियर। मुझे यह तो पता था कि मुझे म्यूजिशियन बनना है, लेकिन यह तय नहीं था कि उसमें वक्त कितना लग जाएगा। मैंने जब यह बात अपने पिता से पूछी कि क्या मैं दो साल में म्यूजिशियन बन जाऊंगा तो उन्होंने मुझे कहा कि दो साल में मैं कुछ भी नहीं बन पाऊंगा। फिर काफी समय के बाद मुझे यह बात समझ में आई कि पंडित जी ने ऐसा क्यों कहा था।’

सात्विक वीणा की सौगात
जिस तरह पंडित विश्व मोहन भट्ट ने मोहन वीणा का इज़ाद किया, उसी तरह सलिल ने भारतीय शास्त्रीय संगीत जगत को सात्विक वीणा की सौगात दी है। जर्मनी की संसद में भारतीय कला को प्रस्तुत करने वाले पहले भारतीय कलाकार सलिल कहते हैं-‘संगीत की गहराई को समझ कर ही कोई कलाकार बन सकता है। संगीत ऐसा नहीं है, जिसे एक दिन या एक साल में सीख लें या कोर्स कर लें। जीवन भर साधना की ज़रूरत होती है। सम्पूर्ण जीवन को न्योछावर करने के लिए तैयार होना चाहिए। यह तो सिद्धि प्राप्त करने का योग है।’ कैनेडियन ग्रैमी अवार्ड (जूनो अवॉर्ड) के लिए नॉमिनेट होने वाले पहले भारतीय सलिल भट्ट अपने गुरु के प्रति अपने समर्पण की व्याख्या करते वक्त बेहद उत्साहित नज़र आते हैं। वह कहते हैं-‘मैं यह मानता हूं कि गुरु की पूजा की जानी चाहिए, तभी एक शिष्य प्रगति कर सकता है। अभी कुछ दिनों पहले की बात मैं आपको बताता हूं कि मेरे गुरू की वीणा कुछ दिक्कत दे रही थी, जिस कारण वो कुछ चिंतित थे। उन्होंने एक्सपर्ट्स को भी दिखाया लेकिन समस्या का समाधान नहीं हुआ। कुछ मशक्कत के बात मैंने उनकी समस्या को सुलझा दिया और वीणा ठीक हो गई क्योंकि मैंने हर सांस में वीणा को देखा है। गुरु जी बेहद प्रसन्न हुए और उन्होंने मुझे कहा कि सलिल, तुमने मेरी ज़िंदगी बना दी। आप सोच नहीं सकते उस दिन मुझे कितनी खुशी का अहसास हुआ। अपने गुरु के लिए कुछ करके मुझे असीम सुख का अहसास होता है।’

युवाओं को संदेश
सलिल संगीत में रुचि रखने वाले सभी लोगों को यही संदेश देते हैं कि अगर शास्त्रीय संगीत से प्रेम है तो सफलता का कोई शार्टकट नहीं है। वह कहते हैं-‘संगीत तो आत्मा की भाषा है। संगीत अनंत है…. जन्म जन्मांतर तक इसकी साधना की जाए तो भी कम है।’ महाकाल संगीत रत्न अवार्ड की उपाधि से सम्मानित अपने गुरु के पदचिन्हों पर चलते हुए प्री-ग्रैमी नॉमिनेशन तक पहुंचने वाले सलिल भट्ट को अभिनव कला सम्मान और इंटरनेशनल अचीवर्स अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है। सलिल मानते हैं कि संगीत उनके लिए भगवान की नेमत है। वो खुशनसीब हैं कि उन्हें पंडित विश्व मोहन भट्ट जैसे पिता और गुरु मिले। वो कहते हैं-‘मेरे लिए सबसे खुशनसीब लम्हा वो है जब श्रोता मंत्रमुग्ध होकर मेरे संगीत पर झूमने लगते हैं।’

सलिल के बेटे सात्विक
सलिल के बेटे सात्विक में भी अपने गुरु के गुण समाहित हैं। सलिल मानते हैं कि नयी पीढ़ी के साथ उनकी सोच के अनुसार चलना चाहिए, तभी तो सात्विक और सलिल के बीच पिता-पुत्र नहीं, बल्कि दोस्ती का रिश्ता ज्यादा है। सलिल से यह पूछने पर कि उनके पिता, उनके पुत्र और उनमें बेहतर संगीतकार कौन है, सलिल बेहिचक कहते हैं-‘हम तीनों में सात्विक बेहतरीन है। वह जन्म से ही संगीत को पहचानने लगा था। साढ़े तीन वर्ष की उम्र में 40 अलग-अलग रागों की पहचान कर पाना और उन्हें बजा पाना सात्विक ही कर सकता था।’ इस खूबी के लिए साढ़े तीन वर्ष की उम्र में ही सात्विक का नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया था। सात्विक को संगीत के अलावा वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी का भी बेहद शौक है। सलिल मानते हैं कि सात्विक संगीत के प्रेमी तो हैं लेकिन यह पूरी तरह से उस पर निर्भर करता है कि वो संगीत को ही अपना पेशा चुने। सलिल के अनुसार-‘कला से लगाव एक स्वत: प्रक्रिया है जिसे जबरन किसी पर थोपा नहीं जा सकता है।’

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