Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

यहां वरदायक बन जाते हैं दंडनायक शनि

हरियाणा-उत्तर प्रदेश सीमा पर दिल्ली से लगभग 115 किमी की दूरी पर शनिदेव का एक विशेष धाम है। पलवल से करीब 55 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के कोसीकलां-नंदगांव के बीच स्थित कोकिलावन के बारे में मान्यता है कि यहां दर्शन व परिक्रमा करने से मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

ऐतिहासिक कोकिलावन स्थित सिद्ध शनिदेव और गिरिराज महाराज मंदिर का दृश्य। कोकिलावन शनिधाम के प्रवेश द्वार पर लगी शनिदेव की विशाल मूर्ति (नीचे) । फोटो : देशपाल सौरोत

देशपाल सौरोत
हरियाणा-उत्तर प्रदेश सीमा पर दिल्ली से लगभग 115 किमी की दूरी पर शनिदेव का एक विशेष धाम है। पलवल से करीब 55 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के कोसीकलां-नंदगांव के बीच स्थित कोकिलावन के बारे में मान्यता है कि यहां दर्शन व परिक्रमा करने से मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। किवदंतियों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने कोयल बनकर यहां शनिदेव को दर्शन दिए थे और वरदान दिया था कि श्रद्धा और भक्ति के साथ कोकिलावन की परिक्रमा करने वालों के सभी कष्ट दूर होंगे। इसी का फल है कि यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु भगवान शनिदेव के दर्शन करने आते हैं। कोकिलावन धाम का यह सुंदर परिसर लगभग 20 एकड़ से ज्यादा में फैला हुआ है, जिसमें प्राचीन श्री शनिदेव मंदिर, श्री कोकिलेश्वर महादेव मंदिर, श्री गिरिराज मंदिर, श्री बाबा बनखंडी मंदिर, श्री देव बिहारी मंदिर प्रमुख हैं। इसके अलावा सरोवर और गौशाला भी है। मंदिर के बीच में एक ऊंचे चबूतरे पर शनि महाराज का चतुर्मुखी विग्रह है। यहां आप चारों दिशाओं से शनि महाराज का तैलाभिषेक कर सकते हैं।
मान्यता है कि द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया, तब शनिदेव सहित समस्त देवी-देवता उनके दर्शन करने नंदगांव पहुंचे थे। परंतु श्रीकृष्ण की माता यशोदा जी ने शनिदेव को दर्शन नहीं करने दिये। नंदबाबा ने शनिदेव को रोक दिया, क्योंकि वे उनकी वक्र दृष्टि से भयभीत थे। इस घटना से शनिदेव बहुत निराश हुए और नंदगांव के समीप वन में जाकर कठोर तपस्या करने लगे। भगवान श्रीकृष्ण ने शनिदेव के तप से प्रसन्न होकर उन्हें कोयल के रूप में दर्शन दिये और कहा कि आप सदैव इस स्थान पर वास करें। साथ ही आशीर्वाद दिया कि इस स्थान पर जो शनिदेव के दर्शन करेगा, उस पर शनि की दृष्टि वक्र नहीं पड़ेगी, बल्की इच्छा पूर्ण होगी। किवदंतियों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने भी उनके साथ यहीं रहने का वादा किया। तब से शनिदेव के बाईं तरफ कृष्ण, राधा जी के साथ विराजमान हैं। कोयल रूप में दर्शन के चलते ही यह स्थान कोकिलावन कहलाया। मनोकामनाएं पूरी होने के चलते कोकिलावन के शनिदेव मंदिर को सिद्ध मंदिर भी कहा जाता है।
सवा कोस की परिक्रमा 
कोकिला वन शनि धाम पहुंचने से पहले कोसी-नंदगाव रोड पर श्री शनिदेव महाराज की विशाल मूर्ति प्रवेश द्वार पर मिलती है। आगे जाने पर मुख्य प्रवेश द्वार पर सबसे पहले हनुमान जी का मंदिर है। कहते हैं हनुमान जी की पूजा करने वाले को शनि महाराज दंड नहीं देते। हनुमान जी के दर्शन करने के बाद सवा कोस यानी साढ़े 3 किलोमीटर का परिक्रमा पथ है। परिक्रमा मार्ग में पंचमुखी हनुमान जी का मंदिर है। यहां सूर्य कुंड भी स्थित है। परिक्रमा पूरी होने के बाद पवित्र सूर्य कुंड में स्नान करके शनि महाराज के दर्शन करने का विधान है। कुंड के पास ही नवग्रह और भगवान शिव का मंदिर है। शनि महाराज के दर्शन के बाद श्रद्धालु इन मंदिरों में पूजा करते हैं।
महाराजा भरतपुर ने कराया था जीर्णोद्धार
गरुड़ पुराण व नारद पुराण में कोकिला बिहारी जी का उल्लेख आता है। तो शनि महाराज का भी कोकिलावन में विराजना भगवान कृष्ण के समय से ही माना जाता है। बीच में कुछ समय के लिए यह मंदिर जीर्ण-शीर्ण हो गया था। करीब साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व राजस्थान में भरतपुर के महाराजा ने इसका जीर्णोद्धार कराया था।

Advertisement

Advertisement
×