Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

मंत्रमुग्ध करते रोमन बाथ

यात्रा/वृतांत सीमा आनंद चोपड़ा हाल ही में इंगलैंड की यात्रा पर हमने 2000 वर्ष पुराने रोमन-बाथ (विशाल स्नान गृह) के एक दिवसीय ट्रिप पर जाने का फैसला किया जो प्राचीन नगरी ‘एक्वा सूलिस’ में बने हैं। आजकल यह शहर माडर्न बाथ-नगर नाम से मशहूर है। दूर से ही हमें सुंदर बाथ-नगर दिखने लगा जो प्राचीन […]
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

यात्रा/वृतांत

सीमा आनंद चोपड़ा
हाल ही में इंगलैंड की यात्रा पर हमने 2000 वर्ष पुराने रोमन-बाथ (विशाल स्नान गृह) के एक दिवसीय ट्रिप पर जाने का फैसला किया जो प्राचीन नगरी ‘एक्वा सूलिस’ में बने हैं। आजकल यह शहर माडर्न बाथ-नगर नाम से मशहूर है। दूर से ही हमें सुंदर बाथ-नगर दिखने लगा जो प्राचीन नदी ‘एवन’ की घाटी में बसा है। पीले सैंडस्टोन के भवन, मानो शहद में घुले थे। कार पार्किंग में छोड़कर हमने मैप देखा जिस पर लिखा था ‘यू आर हियर’ (आप यहां हैं)। मैप को फॉलो करते हुए हम रोमन-बाथ के मुख्य द्वार की ओर चल पड़े।

दस हजार वर्ष पुराना झरना

माना जाता है कि जिस मूल झरने से ये स्नान-गृह बने, वह दस हजार वर्षों से भी अधिक पुराना है। इसे न्यू स्टोन-ऐज (नव पाषाण युग) के लोग भी इस्तेमाल करते थे। झरने में स्नान कर क्योंकि बीमारियां दूर होतीं थीं, इसलिए इसे देवी-सूलिस का आरोग्यता का वरदान माना जाता था। तभी तो बाथ नगर का प्राचीन नाम ‘अकवा-सूलिस’ पड़ा-अर्थात ‘सूलिस का जल’। रोमन्स द्वारा चले मार्ग पर हम भी चलें, ऐसी भावना से हमने भीतर प्रवेश किया। रोमन बाथ्स बाहर की रोड-लेवल से 4 मीटर नीचे हैं, क्योंकि उन्हें 18वीं शताब्दी में एक अंग्रेजी आर्किओलजिस्ट ने खुदाई कर खोजा था।
सबसे पहले हम टैरेस पर गए। ग्राउंड फ्लोर पर प्रसिद्ध रोमन बाथ का हरे रत्न समान जल दिखा। भवन के दाहिने भाग में गर्म पानी का झरना है, जो पूरे यूके में इकलौता है। प्राचीन काल में पवित्र झरने के आसपास एक विशाल रोमन मंदिर था, जिसे बाद में नष्ट कर दिया गया था। छत के बनेरों पर प्रख्यात रोमन सम्राटों की मूर्तियां सजी हैं, जिनमें प्रमुख जूलियस-सीजर आदि हैं। पुराने समय में छत यूं खुली नहीं होती थी। हमें उस समय के आर्किटेक्चर पर आश्चर्य हुआ; जब हमें बताया गया कि हम ‘रोमन-ब्रिटेन काल’ के सर्वाधिक ऊंचे भवन की छत पर खड़े थे। गोलाकार ऊंचा ऐट्रियम, नीचे स्नानघर के जल से 20 मीटर ऊपर बनाया गया था।

Advertisement

अभिशाप से मुक्ति देने वाली देवी

‘रोमन सम्राटों’ से भेंट कर हमने झरना देखा जो उबलते जल के तालाब समान दिखता है। इसके पानी का तापमान 46 डिग्री सेल्सियस है। यह शानदार झरना देवी सूलिस-मिनरवा ने मनुष्यों को आरोग्यता के आशीर्वाद के रूप में भेंट किया था। यह माना जाता है कि स्टोन-ऐज (पाषाण युग) से इस पवित्र स्थान पर प्राचीन केल्ट-जाति द्वारा देवी-सूलिस की भक्ति की जाती थी। बाद में जब ब्रिटेन के इस स्थल पर इटली से रोमन सेना पहुंची तो उन्हें देवी-सूलिस, अपनी रोमन देवी-मिनरवा समान प्रतीत हुई। दोनों ही ज्ञान और बुद्धि की देवियां मानी जाती हैं, इसलिए उनकी पृथक पहचान समय के साथ खो गई और केलटिक-रोमन देवी सूलिस-मिनरवा के नाम से प्रसिद्ध हुई। धीरे-धीरे देवी-सूलिस-मिनरवा जीवन दान देने वाली और ‘एजेन्ट-ऑफ-कर्सिस’ के रूप में प्रख्यात हुई यानी अभिशाप से मुक्ति देने वाली देवी।
हमारे सामने गर्म पानी का झरना था, जो 12वीं शताब्दी में पुन: निर्मित किया गया था। चूंकि स्थानीय अंग्रेज शासक इसमें नहाते थे, इसलिए इसे किंग्स-बाथ के नाम से जाना जाने लगा। हमने वहां पढ़ा कि इस स्थल के नीचे रोमन-इंजीनियरों द्वारा निर्मित प्राचीन तालाब था, जहां से इसी परिसर में स्थित विशाल रोमन-बाथ्स को जल सप्लाई किया जाता था। यह जल जब रोमन स्नान गृह पहुंचता था तो हजारों लोगों को नीरोगी बनाता था। हमें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि प्राचीन युग में भी स्नान गृह कुछ इस ढंग से बनाया गया था कि नहाते हुए प्रत्येक व्यक्ति दूर से इस झरने के दर्शन भी कर सकता था।

म्यूजियम

गर्म पानी के झरने को निकट से देखने के लिए हम आगे बढ़े तो सबसे पहले म्यूजियम दिखा। म्यूजियम में प्राचीन रोमन मंदिर के अवशेष उनके जन-जीवन से जुड़ी चीजें दिखीं। सर्वप्रथम हमें एक्वा सूलिस नामक प्राचीन नगर का विशाल मानचित्र दिखा जिसके नाम का अर्थ है ‘देवी एक्वा का जल’ जो आज शताब्दियों के पश्चात बाथ-नगर कहलाता है। वहां लगे एक बोर्ड से हमने जाना कि रोमन्स के आने से पहले भी लोग इस झरने की पूजा करते थे, क्योंकि केलटिक जाति की धारणा थी कि देवी-सूलिस यहां निवास करती हैं। फिर रोमन्स के आने पर यहां देवी सूलिस-मिनरवा के भव्य मंदिर की स्थापना की गई जिसका असर यह हुआ कि पहले से भी अधिक श्रद्धालु यहां स्नान करने के लिए आने लगे।

रोमन मंदिर की यात्रा

इसके बाद हमने संग्रहालय के मिनी-ऑडिटोरियम में प्रवेश किया। वहां पर हमने रोमन मंदिर अवशेषों के डिसप्ले देखे। आडिटोरियम में लाइट्स को धीमा कर दिया गया और हमारी रोमन-मंदिर की यात्रा आरंभ हुई। अब हम तीसरी शताब्दी में पहुंच गए थे और मंदिर के भीतर थे, जहां देवी-सूलिस-मिनरवा की विशाल सुंदर गिल्ट-कांस्य प्रतिमा के सम्मुख निरंतर अग्नि प्रज्वलित रहती थी। सामने लिखा था, ‘देवी के मंदिर में, अनादि और अनन्त ज्वाला जलती है, जिससे राख नहीं बनती, ठोस पत्थर रह जाते हैं।

‘गौरगन’

ऑडिटोरियम में देवी-सूलिस-मिनरवा मंदिर की खुदाई में निकला एक स्तम्भ दिखने लगा। पहले 15 मीटर की ऊंचाई के ऐसे 4 स्तम्भ थे, जो प्राचीन मंदिर के प्रांगण का भाग थे। फिर सम्मोहित करता, गोलाकार ‘गौरगन’ का चेहरा दिखा जो मंदिर के बीच लगाया गया था क्योंकि वह बुरी नज़र से बचाता है और शत्रुओं को दूर भगाता है। गौरगन के चेहरे के आसपास के बाल समुद्री लहरों के समान दिखते हैं जो सूर्य, अग्नि और जल का मिश्रित प्रतीक माना गया। उसके सिर के आसपास लगे पंख वायु के और पत्थर का गौरगन पृथ्वी का प्रतीक माना गया। उल्लेखनीय है कि गौरगन 4 तत्वों का मिश्रण है-वायु, पृथ्वी, जल एवं अग्नि। यह अवधारणा हिन्दू दर्शन से मेल खाती है। पौराणिक ग्रीक कथा ‘परसीयस एंड दा गौरगन’ से देवी सूलिस और रोमन देवी मिनरवा से गौरगन के संबंध का पता चलता है।

सूलिस मिनरवा मंदिर

ऑडिटोरियम में लाइटें पुन: जल पड़ीं और हम पुन: वर्तमान में लौट आए। सीढ़ियों से नीचे उतरकर हम प्राचीन मंदिर के अवशेषों को निकट से देखने गए जो 2000 वर्ष पुरानी उत्कृष्ट शिल्पकला का उदाहरण है। एक कोने में उल्लू पक्षी की पत्थर नक्काशी दिखी, जो प्राचीन रोमन देवी मिनरवा का पवित्र पक्षी था। इसे भी संयोग ही कहेंगे कि हिन्दू अवधारणाओं के अनुसार उल्लू पक्षी देवी लक्ष्मी का वाहन माना जाता है। अब तक रोमन मंदिर के विषय में इतनी जिज्ञासा उत्पन्न हो गई थी कि हम मुख्य संग्रहालय हॉल को छोड़ कर उसकी दायीं दिशा में स्थित टेम्पल कोर्टयार्ड की ओर चल पड़े। समय की चपेट से प्राचीन मंदिर की केवल तीन लम्बी पत्थर की सीढ़ियां ही बच सकी हैं। शानदार सूलिस मिनरवा मंदिर का आकर्षक स्कैच दीवार पर लगा था। हमें लगा कि उस समय इन सीढ़ियों से होते हुए ग्रेट-ऑलटर तक पहुंचा जाता था, जहां देवी की लालित्यपूर्ण प्रतिमा स्थापित थी। स्कैच में दो अन्य छोटे मंदिर उल्लेखनीय हैं-एक सूर्य देव का सोल मंदिर और एक चन्द्र देव का लूना मंदिर जो देवी के मुख्य मंदिर के दोनों ओर दूसरी सदी में निर्मित किए गए थे। जैसे ही हम अतीत से लौटे, देवी-सूलिस मिनरवा के सिर ने अाकर्षित किया। सुंदर मुख पर आज भी अलौकिक प्रकाश है जो हमें कांच के स्टैंड के भीतर से दिखा।
सिर का भाग 1727 की खुदाई के समय बाथ नगर से प्राप्त हुआ जिसे जानबूझ कर देवी प्रतिमा के निचले भाग से काट कर या तोड़ कर अलग किया गया था। देवी की प्रतिमा के अवशेष के समक्ष खड़े होकर हमने पाया कि ये तो हिन्दू देवियाें सम हैं। देवी मिनरवा और देवी सूलिस दोनों ही विद्या, बुद्धि और संस्कृति की देवियां हैं जो ग्रीक देवी-ऐथिना के समान हैं और जिन्हें आप देवी सरस्वती मान सकते हैं। मिनरवा बृहस्पति ग्रह की पुत्री मानी जाती हैं।

प्लेट्स पर अंकित श्राप

इसके अतिरिक्त यहां 130 प्लेट्स सजी थीं जिन पर श्राप अंकित थे। अपने शत्रुओं के विनाश के लिए अपनी प्रार्थना या श्राप प्लेट्स पर खुदवा कर देवी को अर्पित किए जाते थे जो उन्हें शत्रु तक पहुंचाती थी। लेड की प्लेट्स पर लिखे कुछ श्रापों का अंग्रेजी में अनुवाद कर संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया था। प्राचीन काल में इन कर्स प्लेट्स को इस विश्वास के साथ पवित्र झरने में फेंक दिया जाता था कि देवी सूलिस-मिनरवा दोषियों को सजा देगी। संग्रहालय में जुपिटर (बृहस्पति), मरक्यूरी (बुध), तीन मुखों वाली मदर-अर्थ (धरती मां) भी हैं जिनका संबंध 3 मुखों वाली केलटिक देवी से है जो हमारी संस्कृति की 3 देवियों समान ही है। हिन्दू संस्कृति से अनेक समानताएं सहज ही दिखाई पड़ती हैं। दूसरी समानता यह पायी गयी कि जैसे हिंदू धर्म में अक्सर पवित्र नदियों, कुओं और तालाबों में सिक्के, आभूषण आदि अर्पित करते हैं, उसी प्रकार प्राचीन केल्ट जाति एवं रोमन्स की भी ऐसी परम्परा थी। इस झरने में भी श्रद्धालुओं द्वारा फेंके गए अनेक सिक्के पाए गए।
संग्रहालय से बाहर आते ही हमें सामने एमेरेल्ड सा हरा ग्रेट-बॉथ दिखा। आयताकार शेप का यह बॉथ आज खुले आकाश के नीचे है, क्योंकि ऊपरी टैरेस का ऐट्रियम शताब्दियों पूर्व ढह चुका था। वहां से हमारा टूअर आरंभ हुआ था और ऊपर से हमें रोमन-बाथ की प्रथम झलक मिली थी। हमें फिर सदियों पूर्व वाले रोमन-बाथ का ध्यान आया, जब यहां श्वेत वस्त्रों में स्त्री-पुरुष बड़ी संख्या में आते थे और बीमारियां भगाने वाले जल में स्नान करते थे। शायद यह स्थल तब भी ऐसा ही दिखता होगा जैसा आज हम देख रहे हैं। हां, नीचे के आयताकार कॉरीडोर के पत्थर बहुत घिस चुके थे। उत्तम शिल्पकारों, हस्त कलाकारों और श्रमिकों के कड़े परिश्रम से ग्रेट बाथ का निर्माण किया गया होगा। प्राचीन समय की इंजीनियरिंग कला का यह उत्तम उदाहरण है। केवल रस्सी-पुली के उपयोग से 100 किलो तक के वजन के विशाल पत्थरों को रोमन-ग्रेट बाथ के निर्माण के लिए उठाया जाता था।

रोमन बाथ और सिंधु नदी सभ्यता

हमारे बाईं ओर रोमन-बाथ्स के छोटे-छोटे कक्ष थे, जिनका जल मुख्य ग्रे-बाथ से खींचा जाता था। वहां हमने पढ़ा कि रोम-सभ्यता में स्नान गृहों की परम्परा ईसा से दो शताब्दियों पूर्व की है। तब हमें भारत की सिंधु नदी सभ्यता के नगर मोहनजोदड़ो का स्मरण हो आया, जो ईसा से 25 शताब्दी पूर्व में निर्मित किया गया था और वहां भी खुदाई में विशाल सार्वजनिक ग्रेट-बाथ पाये गये थे। फिर हम दाईं ओर स्थित छोटे कक्षों वाले रोमन बाथ पहुंचे जहां पर हाईपोकोस्ट ढंग से घर के फर्श और दीवारों को गरम किया जाता था ताकि इंगलैंड की कड़ाके की ठंड से बचा जा सके। हमारे आश्चर्य की सीमा न रही जब हमने इस अनूठे विज्ञान के विषय में जाना जो हज़ारों सालों से उपयोग में था। हमारी रोमन्स के संग यात्रा का यहीं अंत हुआ और साथ ही प्राचीन रोमन बाथ, लुप्त हुए देवी सूलिस-मिनरवा के भव्य मंदिर तथा प्रागैतिहासिक झरने की यात्रा का भी। यहां हमने फ्री-स्पा-वॉटर क्षेत्र से अरोग्यता प्रदान करने वाला जल पीया। पास ही संबंधित साहित्य की दुकान थी, जहां से हमने छोटे आकार की सुंदर नक्काशी से बनी देवी सूलिस-मिनरवा की एक प्रतिमा खरीदी। साथ ही अद्भुत गौरगन के मुख का मैगनेट भी लिया। बाहर कैफे में बैठे, मेरा ध्यान बार-बार संसार के विभिन्न देशों के देवी-देवताओं की तरफ जाता रह।

Advertisement
×