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ब्राह्मणों व धार्मिक स्थलों के लिए फीका रहा सूर्यग्रहण मेला

कुरुक्षेत्र, 4 जनवरी (हप्र)। आज यहां लगा सूर्यग्रहण मेला तो हो गया है लेकिन इस बार का सूर्यग्रहण यहां के ब्राह्मणों तथा धार्मिक स्थलों के लिए काफी फीका रहा। मेले में सोना-चांदी तथा अच्छा पैसा दान करने वाले श्रद्धालुओं का अभाव रहा। मेले में अधिकतर कुरुक्षेत्र नगर तथा आसपास के जिलों के लोग ही आ […]
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सूर्यग्रहण के अवसर पर ब्रह्मसरोवर के जिन घाटों पर कम श्रद्धालु रहे उनका दृश्य। छाया : हप्र

कुरुक्षेत्र, 4 जनवरी (हप्र)। आज यहां लगा सूर्यग्रहण मेला तो हो गया है लेकिन इस बार का सूर्यग्रहण यहां के ब्राह्मणों तथा धार्मिक स्थलों के लिए काफी फीका रहा। मेले में सोना-चांदी तथा अच्छा पैसा दान करने वाले श्रद्धालुओं का अभाव रहा। मेले में अधिकतर कुरुक्षेत्र नगर तथा आसपास के जिलों के लोग ही आ पाये। पहले जैसे मेलों की तरह कोई वीआईपी तो मेले में आया ही नहीं। साथ ही किसी ऐसे बड़े व्यक्ति के भी मेले में आने का समाचार नहीं है जिसने यहां की किसी संस्था, धार्मिक स्थल या ब्राह्मण इत्यादि को बहुत अधिक दान दिया हो। सूर्यग्रहण लगने से लगभग 15 मिनट पूर्व सन्निहित सरोवर पर खड़े तीर्थ परोहित सभा के अध्यक्ष राजेन्द्र शर्मा ने बताया कि उन्होंने आज 20 रुपये की चाय भी अपने पल्ले से पी है।
उन्होंने पूछने पर बताया कि पिछले सूर्यग्रहणों की अपेक्षा इस बार कम यात्रियों के आने का सबसे बड़ा कारण श्रद्धालुओं में इस बात को लेकर असमंजस की स्थिति बनी रही कि इस बार केवल स्पर्श ग्रहण है और स्पर्श ग्रहण केवल 6 प्रतिशत होने के कारण शायद ही कुरुक्षेत्र में मेला लग पाये। उन्होंने यह भी कहा कि इसी असमंजस के कारण प्रशासन भी देर से जागा और मेले का प्रचार भी कम हुआ। परिणामस्वरूप आसपास के ही लोग यहां आ पाये। उन्होंने सन्निहित सरोवर पर बैठे और भी कई पंडितों  का हवाला देते हुए बताया कि पहले ग्रहणों के अवसर पर तीर्थ पुरोहितों के पास इतना दान आ जाता था कि उनकी वर्ष भर की रोटी उस दान से चल जाती थी लेकिन इस बार ऐसा नहीं लगा रहा है।
वैसे भी देखने में आया कि उस समय तक सन्निहित सरोवर के मुख्य घाट  पर सूर्य नारायण मंदिर के पास सैकड़ों की संख्या में ही श्रद्धालु उपस्थित थे। महिलाओं की दो-तीन टोलियां ही भगवान के भजन गाने में लगी हुई थी। यह भी देखने में आया कि जब भी कोई इक्का-दुक्का श्रद्धालु वहां बैठे ब्राह्मणों या भिखारियों को कुछ दान देने लगता था तो भिखारी झुंड के झुंड  इकट्ठे होकर उस पर टूट पड़ते थे जबकि पहले के ग्रहण के मेलों में इस प्रकार का दृश्य कभी देखने को नहीं मिला। सन्निहित सरोवर के पास स्थित दुखभंजन मंदिर पर भण्डारा लगाने वाले श्रद्धालु संजीव सीकरी, मनोहरलाल मित्तल तथा धर्मपाल सिंगला ने बताया कि दुखभंजन मंदिर के पास तो उनके भण्डारे में बहुत कम लोग आये लेकिन अब 3 बजे के आसपास भण्डारा ठीक चला। 3 बजे तक सन्निहित सरोवर के आसपास यह भी देखने में आया कि वहां आने-जाने वाले आराम से आ जा रहे थे और पुलिस वाले भी आराम से खड़े थे और उसके साथ लगती मुख्य सड़क पर ट्रैफिक भी आराम से चल रहा था, केवल सामने ही स्थित छठी पातशाही गुरुद्वारा के पास थोड़ी भीड़ थी लेकिन जैसे ही पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन तथा नया उदासीन के महंतों और साधुओं और उनके अनुयायियों का जलूस वहां से आया तो थोड़ी भीड़ बढ़ गई थी।
सरोवर के आसपास भी श्रद्धालुओं की भीड़ एकत्रित हो गई थी और कुरुक्षेत्र नगर तथा पुराना बस अड्डा की ओर से भी श्रद्धालु आते दिखाई दिये तो वहीं खड़े एक ब्राह्मण हरिनारायण भारद्वाज बोले कि भारतवर्ष आस्था का देश है और ऐसी बात नहीं कि ग्रहण का मेला न भरे। लोग यहां के पवित्र सरोवरों में आस्था की डुबकी तो लगायेंगे ही और मोक्ष होते-होते ऐसा हुआ भी।
सूर्यग्रहण के चलते श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन तथा नया उदासीन के महंतों महेश मुनि, ब्रह्मदास, महंत लवचन्द्र दास, शुक्रताल से आये स्वामी ध्यानदास, ब्रह्मऋषि इत्यादि के नेतृत्व में सैकड़ों की संख्या में उनके श्रद्धालुओं ने सबसे पहले सन्निहित सरोवर में स्नान किया और उसके बाद वे जयकारे बुलाते हुए, शंखनाद करते हुए तथा नाचते गाते ब्रह्मसरोवर पर पहुंचे और वहां उन्होंने सूर्य भगवान की पूजा अर्चना की तथा स्नान ध्यान किया। मोक्ष के बाद ही उन्होंने ब्रह्मसरोवर  से अपने अखाड़े की ओर प्रस्थान किया। ब्रह्मसरोवर पर विशेष रूप से बनाये गये घाट पर कुछ नागा बाबों ने स्नान किया।
वैसे अखिल भारतीय श्री खेड़ापति हनुमान जी जयपुर, दिव्य ज्योति संस्थान, रामकृष्ण दास वचानवाले बाबा, सीताराम नाम बैंक अम्बाला शहर, हरियाणा विरक्त वैष्णव मंडल के बाबा  रामकिशोर तथा गोपालदास, गीताधाम, दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर, ब्रह्मपुरी आश्रम, वरदराज मंदिर के पास एक सामाजिक संस्था तथा अन्य लोगों द्वारा भी जहां कहीं भण्डारे लगाये गये थे, वहां कोई ज्यादा भीड़ नजर नहीं आई। मेला क्षेत्र में नंदा जी संस्थान के पास वन विभाग द्वारा भण्डारों के लिए बेची जाने वाली लकड़ी में से भी सांय 4 बजे तक केवल 10-12 क्विंटल लकड़ी ही बिक पाई थी। वहां ड्यूटी पर तैनात पूर्णसिंह नामक कर्मचारी ने बताया कि वे देने के लिए लगभग 180 क्ंिवटल लकड़ी लेकर आये हैं। उन्होंने आशा जताई कि शायद आज शाम को उनकी लकड़ी की कुछ खपत हो सकेगी।
इसके अलावा यह भी सुनने में आया कि इस बार कोई बड़ा दान देने वाला व्यक्ति यहां नहीं आया। सन्निहित सरोवर पर बैठे बलजिन्द्र नामक एक तीर्थ पुरोहित ने बताया कि आज का सूर्यग्रहण एक बड़ी अमावस्या के रूप में ही लगा है। ब्रह्मसरोवर पर खिलोने बेच रहे एक दुकानदार ने बताया कि वह इतने खिलोने तो पानीपत में प्रतिदिन बेच देता है जितने खिलोने आज उसने इस मेले में बेचे हैं। ब्रह्मसरोवर के पास बैठे अस्थाई दुकानदारों में से कइयों ने कहा कि इस बार उनका मेला काफी फीका रहा है। मेला मुख्य रूप से लगभग 2-3 घंटे ही रह पाया। मेले में पहले के मेलों की अपेक्षाकृत बहुत कम लोग आये और जो आये भी वे भी ग्रहण लगने के समय पहुंचे और मोक्ष होते ही यहां से प्रस्थान कर गये।
एक अस्थाई दुकानदार ने बताया कि अब शायद मेलों में खरीददारी का टै्रंड भी कम हो गया है। वैसे भी इस बार मेले में कोई सांग, नौटंकी, झुले या अन्य लोगों के आकर्षण का केन्द्र बनने वाला कोई ऐसा समागम इत्यादि देखने को नहीं मिला जिससे लोग यहां ठहरते। सर्दी भी लोगों की कमी का एक कारण रही है। वैसे पिछली बार भी जनवरी मास में ही सूर्यग्रहण था और वह भी दिन में ही था लेकिन पिछली बार लगभग 10 लाख लोग यहां आये थे।
श्री ब्राह्मण एवं तीर्थोद्वार सभा के अध्यक्ष जयनारायण शर्मा, महासचिव राजेश जोशी तथा अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा के अध्यक्ष श्रीप्रकाश मिश्रा ने आज के सूर्यग्रहण के शांतिपूर्वक सम्पन्न होने पर संतुष्टि जताई है। इन सभी ने प्रशासन का भी धन्यवाद किया है। इनका कहना है कि प्रशासन ने बहुत थोड़े समय में संतोषजनक प्रबन्ध किया हुआ था। कुल मिलाकर सभी का यह विचार रहा कि शुरू में असमंजस होने के बाद भी काफी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचे और आस्थाएं हावी रही।

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