दुनिया भी जाने कुरुक्षेत्र
हरियाणा की सांस्कृितक राजधानी धर्मनगरी कुरुक्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र में स्थािपत करने की कोिशश फिर तेज हुई है। संसद में मुद्दा उठने व संस्कृित मंत्री के दौरे के बाद नई उम्मीद जगी है। इसकी समृद्ध सांस्कृितक व धािर्मक िवरासत का उल्लेख मेगस्थनीज से लेकर ह्वेनसांग ने अपने विवरणों में किया है। हड़प्पा कालीन अवशेषों ने इसकी पुिष्ट की है। भगवत गीता की रचना स्थली कुरुक्षेत्र के महाभारतकालीन प्रतीक चिन्ह इसे विश्व मानचित्र में आधार देते हैं। कृष्णा सर्किट में शािमल होने से इसका महत्व और बढ़ा है। ऐसी तमाम कोिशशों और इसके तािर्कक आधार बता रहे हैं
डॉ. महासिंह पूिनया
पिछले दिनों कुरुक्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय धार्मिक पर्यटन स्थल बनाने, गीता की भूमि ज्योतिसर में वट वृक्ष को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा दिए जाने का मुद्दा लोकसभा में उठा। जिसके उपरांत 23 मार्च को केन्द्र सरकार के संस्कृति, पर्यटन एवं नागरिक उड्डयन मंत्री डॉ. महेश शर्मा ने धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र का अवलोकन किया। उन्होंने घोषणा की कि आने वाले दिनों में कुरुक्षेत्र अंतरराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर स्थापित होगा। धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र को ही अंतरराष्ट्रीय स्तर के धार्मिक पर्यटन केन्द्र के रूप में क्यों स्थापित किया जाना चाहिए ? यहां की भूमि से रची गई श्रीमद्भगवद् गीता को राष्ट्रीय ग्रंथ क्यों बनाया जाना चाहिए? स्कूलों में गीता पाठ्यक्रम क्यों लागू किया जाना चाहिए? एेसे तमाम सवालों के जवाब कुरुक्षेत्र का पौराणिक एवं ऐतिहासिक अवलोकन से ही तलाशे जा सकते हैं।
कुरुक्षेत्र प्राचीन काल से ही भारतीय सभ्यता, संस्कृति व आध्यात्मिक चिन्तन का उद्गम स्थल रहा है। पुराणों के अनुसार भू-प्रजापति ब्रह्मा को ज्ञान स्वरूप वेद भगवान का दर्शन इसी पावन धरा पर हुआ। मान्यता है कि प्राचीन सभ्यता वैदिक संस्कृति की शुरुआत भी इसी स्थली से हुई। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार मान्यता है िक देवताओं ने इसी भूमि पर सरस्वती के किनारे यज्ञ कर विश्व में वैदिक संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया। शास्त्रों के अनुसार कुरुक्षेत्र द्वादश यौजन अर्थात 48 कोस क्षेत्र में फैला महाजन प्रदेश था। पौराणिक काल में इस प्रदेश को ब्रह्मवर्त, ब्रह्मवेदि, नागहृद, समन्तपंचक और राजा कुरु की भूमि कर्षण के पश्चात कुरुक्षेत्र कहा गया। श्रीमद्भगवद् गीता के प्रथम श्लोक में धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे कहा जाना इसी तथ्य का परिचायक है। इतिहासकार कनिंघम के शब्दों में -प्राचीनकाल में वैदिक लोगों की संस्कृति एवं कार्यकलापों का केन्द्र कुरुक्षेत्र था। वामन पुराण के अनुसार कुरुक्षेत्र वह स्थल है जहां महाराज कुरु के अष्टांग, महान धर्म, तप, सत्य, दया, क्षमा, शील, दान, योग एवं ब्रह्मचर्य आदि की व्याख्या हुई। ऋग्वेद में वर्णित महाराज पुरुरवा एवं उर्वशी का पुन: मिलन भी इसी भूमि पर हुआ। यहीं पर शर्यणावत (प्राचीन कुरुक्षेत्र प्रदेश) में इन्द्र ने वृतासुर का वध किया। इसी पावन धरा पर महर्षि दधीचि ने इन्द्र को अस्थि दान में दी। यहीं पर भगवान परशुराम व भीष्म का युद्ध हुआ। आर्यों व अनार्यों के बीच लड़ाइयां भी कुरुक्षेत्र के मैदान में हुईं। इसी क्षेत्र में कौरव व पांडवों के बीच महाभारत का भयंकर युद्ध हुआ और यहीं पर योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने भगवत गीता का शाश्वत संदेश देकर अर्जुन को गांडीव उठाने के लिए कर्मयोग हेतु प्रेरित किया।
इतिहासकार डॉ. आर.सी. मजूमदार के अनुसार ब्राह्मण ग्रंथों की रचना भी कुरुक्षेत्र में ही हुई। शतपथ ब्राह्मण में कुरुक्षेत्र को अग्िन, इन्द्र, सोम, मख, विष्णु और विश्व देवों की यज्ञ भूमि कहा है। यह वो धरा है जिसका ऋग्वेद से लेकर महाकवि कालिदास तक प्रभाव बना रहा। इस प्रकार कुरुक्षेत्र धर्मभूमि, कर्मभूमि के साथ-साथ प्रेमभूमि के रूप में भी प्रसिद्ध रही है। धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण का सूर्यग्रहण के मेले पर ब्रजवासियों एवं राधिका से मिलने का ब्योरा भी मिलता है। इतना ही नहीं, श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम सरस्वती तट के रास्ते से कुरुक्षेत्र पहुंचे थे, इसके प्रमाण भी ग्रंथों में देखने को मिलते हैं।
प्रामाणिकता एवं पुरातात्विक दृष्टि से यह सिद्ध हो चुका है कि कुरुक्षेत्र प्राचीन सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में स्थापित रहा है, इतिहासकारों ने जब यहां पर दौलतपुर, मिर्जापुर और भगवानपुर आदि स्थलों का उत्खनन किया तो यहां से पूर्व हड़प्पा 2500 ई.पू. से 2000 ई.पू. तथा हड़प्पाकालीन संस्कृति (2200 से 1800 ई. पू.) के प्रमाण पुरातात्विक स्थलों से सामने आए। इससे साबित हुआ कि इस क्षेत्र की संस्कृति का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। यहां से खुदाई में निकली पुरातात्विक सामग्री का इतिहास ईसा. से 1800 वर्ष पूर्व सिंधु घाटी सभ्यता से मिलता-जुलता है। वैदिककाल के पश्चात बुद्धकाल में भी इस स्थल की सांस्कृतिक महत्ता रही। बौद्धधर्म के उत्कर्ष काल में ईसा. से 500 वर्ष पूर्व कुरुक्षेत्र 16 जनपदों में कुरु जनपद के नाम से प्रसिद्ध था। महात्मा बुद्ध के एक बार कुरुक्षेत्र के भ्रमण का उल्लेख पाणिनी के अष्टाध्याय में मिलता है। चन्द्रगुप्त मौर्य के काल में कुरुक्षेत्र का महत्व और बढ़ा। यूनानी विद्वान मैगस्थनीज ने अपने यात्रा विवरण में कहा कि सरस्वती तट का यह प्रदेश जिसे कुरुक्षेत्र कहते हैं, रमणीय एवं शान्त है। कला और विद्या राज्य की छत्रछाया में फल-फूल रही हैं। कुरुक्षेत्र में सम्राट अशोक द्वारा निर्मित स्तूप से यह सिद्ध होता है कि यह स्थल महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल था। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी कुरुक्षेत्र के स्तूप का उल्लेख किया है। मौर्य साम्राज्य के पश्चात इस क्षेत्र पर यवनों का अधिकार हुआ। समुद्रगुप्त और चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के साम्राज्य में कुरुक्षेत्र शामिल था। छठी शताब्दी के उत्तरार्ध में वर्धनों के उत्थान के साथ यह क्षेत्र धार्मिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में विकसित हुआ। राजकवि बाणभट्ट के चित्रण में इसका पूरा ब्योरा मिलता है। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने लेखन में महाभारत युद्ध व गीता ग्रंथ का ब्योरा प्रस्तुत किया है। प्रतिहारों के शासन काल में कुरुक्षेत्र तथा पिहोवा स्थल घोड़ों के व्यापारिक केन्द्र के रूप में भी प्रसिद्ध रहा।
सम्राट महेन्द्रपाल के अभिलेख से इस प्रदेश का तोमर वंश से सम्बंधों का पता चलता है। इस अभिलेख में कुरुक्षेत्र और उसकी पावन नदी सरस्वती का भी वर्णन है। इसके पश्चात 11वीं शताब्दी में इस भू भाग पर तुर्कों का आक्रमण हुआ और यहां के तीर्थों को नष्ट किया गया। 12वीं शताब्दी में चौहानों के शासन में यह प्रदेश पुन: उन्नति के मार्ग पर चला। उसके पश्चात यह प्रदेश मुग़लों के अधीन आ गया। थानेश्वर के प्रसिद्ध सूफी संत कुतुब जलालुदीन अकबर के समकालीन थे। 1556 और 1581 में उनकी अकबर से दो बार मुलाकात हुई। स्वयं मुगल सम्राट अकबर का सूर्यग्रहण के मेले पर कुरुक्षेत्र में दो बार आगमन का वर्णन भी इतिहास में मिलता है। सिखों के गुरुओं गुरुनानक देव, गुरु अमरदास, गुरु रामदास, गुरु हरगोबिंद सिंह, गुरु हरराय, गुरु हरकिशन, गुरु तेग बहादुर व गुरु गोबिंद सिंह की कुरुक्षेत्र यात्राओं का वर्णन मिलता है। सूफियों की धरती के रूप में भी यह स्थल प्रसिद्ध रहा है। यही कारण है कि यहां पर दारा शिकोह के धार्मिक सूफी गुरु शेख चेहली की मज़ार भी यहां पर स्थापित है।
यहां पर मुस्लिम लेखक अहमदबख्श थानेसरी ने हिन्दुओं के ग्रंथ रामायण की हरियाणवी संस्कृति से रचना कर नए आयाम स्थापित किए। इस प्रकार कहा जा सकता है कि कुरुक्षेत्र पौराणिक, पुरातात्विक, ऐतिहासिक दृष्टि से हिन्दुओं, मुसलमानों, सिखों व सूफियों का धार्मिक पर्यटन केन्द्र रहा है। जिसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं।
इसलिए पौराणिक महत्व के इस स्थल को धार्मिक पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हरियाणा की सांस्कृतिक राजधानी धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र की विशिष्ट पहचान बन सके। आवश्यकता है कुरुक्षेत्र में स्थापित संग्रहालयों एवं पर्यटन स्थलों को भारत के पर्यटन विभाग द्वारा अतुल्य भारत (इन क्रेडिबल इंडिया) की वेबसाइट से जोड़ने की ताकि विदेशी पर्यटक यहां आ सकें। दिल्ली से उत्तर भारत में जाने वाले सभी पर्यटकों के पहले पड़ाव के लिए कुरुक्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय स्तर के धार्मिक पर्यटन केन्द्र के रूप में विकसित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त आधुनिक सुविधाओं के साथ पिपली से लेकर ज्योतिसर तक महाभारत एवं गीता विषयक चौक स्थापित किए जाने चाहिए ताकि बाहर से आने वाले पर्यटकों को महसूस हो सके कि वे गीता की भूमि पर विचरण कर रहे हैं। स्थान-स्थान पर आधुनिक सुविधाओं के साथ सूचना केन्द्र होने चाहिए, जिनमें महाभारत, गीता एवं कुरुक्षेत्र से सम्बन्धित साहित्य एवं सांस्कृतिक सामग्री उपलब्ध हो। विदेशी पर्यटकों के लिए गाइडों की प्रशिक्षण व्यवस्था होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त विदेशी तर्ज पर खुली बसें व विशेष घोड़ा-बग्गी पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र बन सकती हैं। सोशल मीडिया के माध्यम से कुरुक्षेत्र को अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर स्थापित करने की परियोजनाएं बनाई जा सकती हैं। आवश्यकता है युवाओं को अपनी गौरव एवं गरिमामयी संस्कृति से जोड़कर उनके सुनहरे भविष्य को सुरक्षित करना, नहीं तो आने वाली पीढि़यां हमें कभी भी माफ नहीं कर पाएंगी।
कुरुक्षेत्र में बनेगा राजकीय संग्रहालय
हरियाणा का अपना कोई राजकीय संग्रहालय नहीं है, जबकि हरियाणा में पुरातात्विक खजाना अथाह रूप में है। हाल ही में हरियाणा सरकार ने अपने बजट में कुरुक्षेत्र में राजकीय संग्रहालय स्थापित करने के लिए 20 करोड़ रुपए की राशि का प्रयोजन रखा है। यदि हरियाणा का राजकीय संग्रहालय कुरुक्षेत्र में स्थापित होता है तो इससे भी कुरुक्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
कुरुक्षेत्र कृष्ण सर्किट
देशभर के पर्यटन स्थलों को लेकर केन्द्र सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने 5 सर्किट जोन बनाए हैं। उनमें से कुरुक्षेत्र को कृष्णा सर्किट जोन के तहत शामिल किया गया है। प्रत्येक सर्किट में बढ़ावा देने के लिए 100-100 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रावधान किया गया है। इन पांचों सर्किटों पर दो अन्य योजनाओं के माध्यम से 200 करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। इस आशय की घोषणा 23 मार्च को केन्द्रीय संस्कृति पर्यटन एवं नागरिक उड्डयन मंत्री डॉ. महेश शर्मा ने की।
हेरिटेज यात्रा
कुरुक्षेत्र सर्वधर्म स्थली है। यहां पर अनेक संग्रहालय, मन्दिर, गुरुद्वारे व सरोवर स्थापित हैं। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए स्थाणेश्वर मन्दिर, मां भद्रकाली मन्दिर, शेख चेहली का मकबरा, सिखों के गुरुद्वारों, पेनोरमा, श्रीकृष्ण संग्रहालय, गुलजारी लाल नंदा संग्रहालय, ब्रह्मसरोवर, धरोहर हरियाणा संग्रहालय, 1857 का संग्रहालय, बौद्ध स्तूप, कल्पना चावला केन्द्र, गीता की स्थली ज्योतिसर, सभी को जोड़कर पर्यटकों के लिए हेरिटेज वॉक व हेरिटेज यात्रा की योजना लागू कर पर्यटकों को आकर्षित किया जा सकता है।
6000 वर्ष पुराना अक्षय वट वृक्ष
सन् 1952 में अमेरिका के वैज्ञानिक डॉ. टी. वॉलर बॉल बैंक ने कुरुक्षेत्र की यात्रा की थी। वे इस वट वृक्ष से बहुत प्रभावित हुए थे। इस अक्षय वट की शाखा का कुछ हिस्सा वह अपने साथ ले गए। दो वर्षों तक उन्होंने निरंतर परीक्षण किया और अंतत: इस परिणाम पर पहुंचे कि यह वटवृक्ष 6000 वर्षों से भी अधिक पुराना है। इस प्रकार ज्योतिसर स्थित यह वटवृक्ष श्रीमद्भगवद गीता के दिव्य संदेश का गवाह है। वट वृक्ष को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने के लिए ए.एस.आई. के एक्ट 1958 की धाराओं के तहत निर्णय लिया जाना है। पूरे भारत में 3685 राष्ट्रीय धरोहर हैं। कुरुक्षेत्र में शेख चेहली का मकबरा, नाभा हाऊस, हर्ष का टीला, कर्ण का टीला, अमीन स्थित ब्रिटिशकाल का स्थल व मुग़ल कालीन पांच कोस मीनारें राष्ट्रीय धरोहर हैं।
सरस्वती हेरिटेज बोर्ड के लिए 100 करोड़
हरियाणा सरकार ने सरस्वती हेरिटेज बोर्ड का प्रस्ताव हरियाणा विधानसभा में पास कर इसके लिए 100 करोड़ की राशि का प्रावधान किया है। इसके माध्यम से आदिबदरी से लेकर कुरुक्षेत्र, पिहोवा से होते हुए गुजरात तक सरस्वती विरासत को फिर से पुनर्जीवित किया जाएगा। यदि यह योजना सही रूप में लागू होती है। तो इससे भी कुरुक्षेत्र के धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
प्रारूप केन्द्र को सौंपा
थानेसर के विधायक सुभाष सुधा ने कुरुक्षेत्र शहर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यटन केन्द्र के रूप में स्थापित करने के लिए थीम पार्क में महाभारत साइट बनाने, अमीन, ज्योतिसर, दयालपुर, किरमच, मिर्जापुर में कर्ण के टीले, ब्रह्मसरोवर पर लाइट एण्ड साउंड शो स्थापित करने, गीता जयंती को राष्ट्रीय उत्सव बनाने, श्रीकृष्ण संग्रहालय को राष्ट्रीय संग्रहालय का दर्जा देने सम्बन्धी 50 करोड़ की परियोजनाओं का प्रारूप केन्द्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री को सौंपा है।