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टी-हाउस में होने वाले ‘सुरक्षित’ दंगे

टी-हाउस में लड़कियां नहीं आतीं, पत्नियां आती हैं, कभी-कभी ही। कोई लड़की आती भी है कभी-कभार तो अपने मां-बाप के साथ, सहमी-सकुचाई। शायद यही वजह है कि कनाट-प्लेस के प्रत्येक रेस्तरां के सामने वेणियां और गजरे बेचनेवालों की भीड़ टी-हाउस के बाहर नहीं मिलेगी।
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आत्मकथ्य

गालिब छुटी शराब/रवींद्र कालिया

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टी-हाउस में लड़कियां नहीं आतीं, पत्नियां आती हैं, कभी-कभी ही। कोई लड़की आती भी है कभी-कभार तो अपने मां-बाप के साथ, सहमी-सकुचाई। शायद यही वजह है कि कनाट-प्लेस के प्रत्येक रेस्तरां के सामने वेणियां और गजरे बेचनेवालों की भीड़ टी-हाउस के बाहर नहीं मिलेगी। टी-हाउस के बाहर रेलिंग के साथ-साथ ठंडा जल या ईवनिंग न्यूज या पेन बेचनेवाले ही मिलेंगे या फिर जूते पालिश करनेवाले जो अक्सर मंदी की शिकायत करते हैं। टी-हाउस के मुख्य प्रवेश द्वार के बिल्कुल साथ एक पानवाला बैठता है, जो चरणमसी की तरह एक तरह से पूछताछ विभाग का काम करता है और ‘उधार मुहब्बत की कैंची है’ में जिसका दृढ़ विश्वास होता जा रहा है। वह किसी भी समय बता सकता है कि नागार्जुन टी-हाउस कब आनेवाले हैं, राकेश टी-हाउस में बैठे हैं या जा चुके हैं, रमेश गौड़ (दिवंगत) को कहीं से पारिश्रमिक आया या नहीं, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना (दिवंगत) कब से कनाट-प्लेस नहीं आए, जगदीश चतुर्वेदी की नई योजनाएं क्या हैं, जवाहर चौधरी (दिवंगत), अजित कुमार और डॉ. देवी शंकर अवस्थी (दिवंगत) टी-हाउस कम क्यों आते हैं, प्रयाग शुक्ल ‘रानी’ से अलग क्यों हो गए या ‘दस कहानियां’ का नया अंक कब आनेवाला है? यह सच है कि उन लोगों के बारे में उसकी जानकारी हमेशा अपर्याप्त होती है, जिन लोगों को उसका उधार चुकाना होता है। उदाहरण के लिए, वह कहेगा कि श्री ‘क’ कई दिनों से कनाट-प्लेस की तरफ नहीं आ रहे हैं, जबकि श्री ‘क’ दूसरे दरवाजे से रोज टी-हाउस आते हैं और दूसरे दरवाजे से ही रोज वापस भी जाते हैं। दरअसल टी-हाउस के तीनों दरवाजे अलग-अलग अर्थ रखते हैं। तीसरा दरवाजा एक साथ किचन, टायलट और ‘वेजेटेरियन’ में ले जाता है। जब कोई व्यक्ति बहुत देर तक तीसरे दरवाजे से वापस न आए, तो इसका सीधा-सादा एक ही अर्थ होता है कि वह ‘वेजेटेरियन’ में बैठा ‘स्टफ्ड परांठा’ खा रहा है। दूसरों के सिगरेट और दूसरों की कॉफी पीकर परांठा खाने या सुस्ताने के लिए ‘वेजेटेरियन’ से बेहतर और कोई जगह नहीं हो सकती।
टी-हाउस में कभी-कभी दंगा भी हो जाता है। यह दंगा शराब के नशे में भी हो सकता है और मंटो की किसी कहानी को ले कर भी। दंगे यहां आतिशबाजी की तरह फूटते हैं और कुछ क्षण बाद आतिशबाजी की तरह ही ठंडे भी हो जाते हैं। ज्यादा नुकसान नहीं होता। किसी मेज का कोई शीशा टूट जाता है या किसी दीवार पर कोई गिलास। किसी के मुंह पर तमाचा पड़ता है और कोई तमतमा कर रह जाता है या दांत पीस कर। इसके बावजूद टी-हाउस एक सुरक्षित जगह है। महानगर का अकेलापन इस हद नहीं है कि कोई अकेला पड़ा कराहता रहे। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो किसी के भी साथ किसी भी वक्त सहायतार्थ अस्पताल या थाने जा सकते हैं। एक प्रतिष्ठित लेखक (मोहन राकेश) पर किसी अराजक तत्व ने हमला कर दिया था तो टी-हाउस एकदम खाली हो गया था। सभी भाषाओं के लेखकों के झुंड के झुंड प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के बंगले पर पहुंच गए थे और लेखकों का शिष्टमंडल उनसे मिला था। एक कहानी के एक क्रुद्ध पात्र ने जनपथ के पास एक लेखक (खाकसार) की पिटाई कर दी और लेखक घायल हो गया था, टी-हाउस के दोस्तों की भीड़ रात देर तक इर्विन अस्पताल में बैठी रही थी और सुरेंद्र प्रकाश ने कई लीटर पेट्रोल खर्च कर हमलावर कवि को ढूंढ़ निकाला था। मगर यह जरूरी नहीं कि क्रुद्ध कवि ही टी-हाउस आते हैं, कभी-कभी टी-हाउस में प्रशंसक भी आते हैं और अपने प्रिय लेखक तथा उसके प्रिय मित्र को हैंबर्गर या मसाला दोसा खिला कर या कॉफी पिला कर लौट जाते हैं। यह दूसरी बात है कि टी-हाउस में मिलनेवाला प्रशंसक, प्रशंसक नहीं रहता और दुबारा टी-हाउस भी नहीं आता।
टी-हाउस के बारे में बहुत किंवदंतियां प्रचलित हैं। जैसे , ‘फांसी पानेवाले एक व्यक्ति ने टी-हाउस में कॉफी पीने की अंतिम इच्छा प्रकट की थी और उसे टी-हाउस लाया गया था।’ , ‘नई कहानी का जन्म टी-हाउस में हुआ था।’ , ‘हमदम अब तक टी-हाउस में कॉफी के पांच-हजार प्याले पी चुका है।’ , ‘अमुक का टी-हाउस में प्रेम हुआ था और अमुक ने अपनी पत्नी को तलाक देने का अंतिम निर्णय टी-हाउस में किया था।’ ये किंवदंतियां’ नए मुसलमानों को आकर्षित करने के लिए फैलाई जाती हैं।
हिंदी समय डॉट कॉम से साभार
अगले अंक में पढ़ें : अब न टी-हाउस, न साहित्यिक माहौल

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