जीरो से हीरो
बाल कहानी
शील कौशिक
चित्रांकन : संदीप जोशी
उमा को जेब खर्ची नहीं मिलती थी। उमा सोचती कि उसकी मम्मी उसे जेब खर्ची क्यूं नहीं देती? जब वह घर आकर अपनी मम्मी को बताती कि उसकी सभी सहेलियां अपनी जेब खर्ची से रास्ते में तरह-तरह की चीजें खरीद कर खाती हैं तो मम्मी उसे डांट देती। उसे लगता कि मम्मी उसे जरा भी प्यार नहीं करती तथा भाई को सारा दिन लाड़-प्यार करती है। मम्मी उसके सामने ही भाई को खूब सारी जेब खर्ची देती। इस बात से अंदर ही अंदर उमा के मन में विद्रोह पनप गया।
एक दिन उसने रसोई की सेल्फ पर कुछ रुपये रखे देखे। उसने वो चुपचाप उठा लिए और स्कर्ट की पॉकिट में रख लिए। उस दिन स्कूल से वापिस आते समय उसने भी बर्गर खाया और कोक पी। अब तो यह रोजाना का सिलसिला हो गया। वह कभी पापा की शर्ट-पैंट से तो कभी मम्मी के कहीं भी रखे पैसे उठा लेती। मां की आदत थी कि वो गली में सब्जी व जरूरत का सामान लेने के लिए इधर-उधर खुले पैसे रखे रहती थी। धीरे-धीरे जरूरत पड़ने पर वहां पैसे न मिलने पर उन्हें शक हो गया कि हो ना हो, कोई तो पैसे उठाता है। उसके पिता ने भी यही आशंका प्रकट की कि कोई तो है, जो मेरी शर्ट-पैंट से पैसे निकालता है। शक की सूई उमा पर आ टिकी। मां ने उसकी खूब पिटाई की और पिटने पर आखिर उमा ने स्वीकार कर ही लिया। उस दिन के बाद उसने पैसे चुराने बंद कर दिए। परंतु जब भी वह अपनी सहेलियों को खुले हाथ से खर्च करते देखती तो उसके मन में एक हूक सी उठती। पर वह बेबस थी।
एक दिन उसे एक तरकीब सूझी। उमा बहुत तेज दौड़ती थी। वो स्कूल जाते-आते समय सहेलियों से शर्त लगाती कि जो उस सामने वाले खंभे को छूकर वापिस पहले आएगा वो दस रुपये जीत जाएगा।
इसमें उमा ही जीती और उसने दस रुपये उनसे ले लिए। कभी वो स्वयं को पकड़ने के लिए कहती और दस मिनट तक न पकड़े जाने की स्थिति में दस रुपये जीत जाती। अब वह संतुष्ट थी।
एक दिन स्कूल में प्रार्थना के समय पीटी टीचर ने खो-खो की टीम के लिए लड़कियों का चुनाव करना था। सभी ने अपनी क्लास की उमा का नाम लेते हुए बताया कि सर उमा बहुत तेज दौड़ती है और उसे कोई पकड़ भी नहीं पाता।
वह पीटी मास्टर द्वारा ली गई परीक्षा में सफल हो गई और खो-खो की टीम में चुन ली गई। उसने घर जाकर इस विषय में अपनी मां को बताया तो वह छूटते ही बोली-कौन सा तू मैडल जीत कर आएगी। शाम को यहीं मोहल्ले में बच्चों के साथ खेल लिया कर।
वह बोली-ओह मां, समझती क्यों नहीं, मेरा चयन टीम में हुआ है। यह कोई गली का खेल नहीं।
अब छुट्टी के बाद अकसर वह अभ्यास के लिए रुक जाती और इसी चक्कर में उसका अपनी सहेलियों का साथ छूट गया। वो उनसे अब केवल कक्षा में ही मिलती और आधी छुट्टी के समय साथ भोजन करती। उमा अब बहुत अच्छा खेलने लगी। धीरे-धीरे उसने टीम में अपना उच्च स्थान बना लिया और जल्दी ही वो खो-खो टीम की कप्तान भी चुन ली गई। उसकी सहेलियां अब उसे पहले से अधिक प्यार व सम्मान देने लगीं।
इस बार उनके स्कूल की खो-खो टीम ने राज्यभर में प्रथम स्थान पाया तो समस्त शहर में खुशी की लहर दौड़ गई। सभी उमा पर गर्व कर रहे थे और उसके खेल की प्रशंसा भी। स्कूल की प्रिंसीपल भरी सभा में उमा को सम्मानित करना चाहती थी। उसने उमा के माता-पिता को स्कूल में आने के लिए फोन किया। उमा की मां ने तो कभी उस पर भरोसा किया ही नहीं। इसलिए उसकी मां का माथा ठनका और उमा को कहने लगी- कहीं तूने स्कूल में चोरी तो नहीं की।
नहीं मां, कैसी बात करती हो-उमा बोली।
तो तू जरूर फेल हो गई होगी-मां फिर बोली।
मुझे नहीं पता मां, आप जब स्कूल आएंगी तो सब पता चल जाएगा।उमा ने उत्तर दिया।
प्रिंसीपल ने भरी सभा में उमा की प्रशंसा के पुल बांधे और उसे 51000 रुपये का इनाम सरकार की ओर से दिया गया। उन्होंने कहा-धन्य हैं वो मां-बाप जिनकी बेटी उमा है। ऐसी बेटी भगवान सबको दे। करतल ध्वनि से सभी ने तालियां बजाई।
उमा के माता-पिता ने तो कभी सपने में भी न सोचा था कि उनकी बेटी इतनी लायक है, उसकी वजह से उन्हें भी इतना सम्मान मिलेगा। उन्होंने उमा को छाती से लगाया और प्रण किया कि अब से बेटी हम दोनों तुम्हारी जरूरतों का, तुम्हारा पूरा ख्याल रखेंगे, तुम्हारे भाई को हम आंखों पर बैठाए रहे और वो नालायक होता गया। पर तुमने तो हमारी दुत्कार, फटकार को भी सफलता में बदल दिया। हम बहुत खुश हैं। दोनों ने उसे बांहों में भर लिया।