चंदनवन का दशहरा
बाल कहानी
ललित शौर्य
चंदन वन के जानवर बड़े उत्सवधर्मी थे। वो सभी त्योहार धूमधाम से मनाते थे। होली, दीवाली,दशहरा हो या दुर्गा पूजा, सभी पर्वों पर जंगल को खूब सजाया जाता था। जंगल में मेले का आयोजन भी किया जाता था। चंदनवन में बड़े-बड़े झूले लगाए जाते थे। जंगल में सांस्कृतिक संध्या का आयोजन होता था, जिसमें जंगल के सभी जानवर हिस्सा लेते थे । दशहरे के अवसर पर जंगल में रामलीला का आयोजन होता था। जंगल के जानवर अलग-अलग किरदार निभाते थे। कोई राम बनता, कोई सीता, कोई लक्ष्मण, कोई रावण तो कोई कुंभकर्ण। रामलीला का मंचन देखने के लिए दूर-दूर से जानवर एकत्रित होते थे। चंदन वन की रामलीला दूर-दूर तक मशहूर थी।
इस वर्ष भी चंदन वन के जानवरों ने रामलीला का आयोजन रखा था। हर साल रामलीला के अंतिम दिन एक विशाल रावण के पुतले का दहन किया जाता था। पुतले का निर्माण लगभग 1 हफ्ते पहले से शुरू हो जाता था। इस बार रामलीला को और अधिक भव्य तरीके से करने का निर्णय लिया गया। चंदन वन रामलीला कमेटी के अध्यक्ष भोलू भालू ने कहा,’हम इस वर्ष रामलीला के मंचन को लेकर बहुत गंभीर हैं। हमें इस वर्ष पिछले वर्षों की तुलना में और अधिक श्रेष्ठ रामलीला करनी है। इसके लिए सारी तैयारियां अभी से करनी होंगी। पात्रों को अभिनय की बारीकियां सीखनी होंगी। उन्हें अपने संवाद कंठस्थ करने होंगे। जिससे अभिनय में जीवंतता आ सके।’
‘हां। हम सबको मिलकर सामूहिक प्रयास करना होगा। जिससे रामलीला और अधिक भव्य हो सके। हमें सुरक्षा की ओर विशेष ध्यान देना होगा, जिससे रामलीला के दौरान दर्शकों को किसी भी प्रकार की असुरक्षा का भाव महसूस न हो। , हक्कू हाथी ने कहा।
‘एक-एक जानवर को किसी न किसी व्यवस्था का प्रमुख बनाना होगा, जिससे काम आसानी से हो सके।’ शेरू शेर ने कहा।
सभी जानवर रामलीला की तैयारी में जुट चुके थे। दशहरे के मेले को लेकर सभी के अंदर बड़ा उत्साह था। जंगल में सिप्पी सियार भी रहता था। वह बड़ा चालाक था। वह चंदन वन में कुछ भी अच्छा होते नहीं देख सकता था। उसकी जंगल के किसी भी जानवर से नहीं बनती थी। वह हमेशा सभी को परेशान करता था। जंगल के छोटे-छोटे बच्चों को वह आए दिन डराता रहता। जंगल के अधिकांश जानवर सिप्पी के इस व्यवहार से बिल्कुल भी खुश नहीं थे। सिप्पी इस वर्ष दशहरे के मेले में कुछ गड़बड़ करने की सोच रहा था। उसने अपनी दोस्त लुक्कू लोमड़ी के साथ मिलकर योजना बनाई। उसने लुक्कू से कहा,’ हम इस बार चंदन वन की रामलीला में ऐसा कारनामा करेंगे कि सारे जानवर देखते रह जाएंगे।’
‘करना क्या है, सिप्पी भाई ये तो बताओ।’, लुक्कू ने पूछा।
सिप्पी ने लुक्कू के कान में कुछ फुसफुसाया। सिप्पी का प्लान सुनकर लुक्कू बड़ी खुश हुई। वे दोनों अपनी योजना में जुट गए।
दशहरे वाले दिन दोनों सुबह से ही रामलीला मैदान में इधर-उधर घूमने लगे थे। वो कभी रामलीला मंच के पास जाते तो कभी रावण के विशाल पुतले के पास। धीरे-धीरे शाम ढलने लगी थी। मैदान में भीड़ जुटने लगी।
सिप्पी ने लुक्कू को अलर्ट रहने को कहा। मौका देखते ही वो अपना काम करने वाले थे। अभी हल्का-हल्का अंधेरा होने ही वाला था। सिप्पी ने लुक्कू को इशारा किया। लुक्कू रावण के पुतले के पास गया और उसमें माचिस से आग लगाने लगा। रावण के पुलते में आग लगती, उससे पहले ही हक्कु हाथी ने लुक्कू को देख लिया। हक्कु ने लुक्कू को अपनी सूंड में लपेट कर पटक दिया। लुक्कू बड़ी जोर से चिल्लाया। तब तक बहुत सारे जानवर वहां इकट्ठे हो चुके थे। उन्होंने लुक्कू की जमकर पिटाई की। लुक्कू ने सिप्पी की ओर इशारा किया और कहा,’ये प्लान मेरा नहीं, सिप्पी का था। इतना सुनते ही शेरू शेर ने सिप्पी को दबोच लिया। सिप्पी माफ़ी मांगने लगा। शेरू ने कहा,’ सिप्पी तुमको समय से पहले रावण का पुतला जलाकर क्या मिल जाता।’ ‘मैं सोच रहा था अगर समय से पहले पुतले को जला दूंगा तो मेले में भगदड़ मच जायेगी। सब अपने घर लौट जाएंगे। अगले वर्ष से चंदन वन की रामलीला देखने कोई नहीं आएगा। सिप्पी ने डरते हुए कहा। शेरू को ये सुनकर बहुत गुस्सा आया। उसने और जोर से सिप्पी का पेट दबा दिया।
भालू दादा ने सिप्पी और लुक्कू को छोड़ने को कहा। हक्कु और शेरू ने उनको छोड़ दिया। वो वहीं जमीन पर पड़े हुए कराहने लगे। भालू दादा बोले, ‘अन्याय और पापी का यही हाल होता है। तुम दोनों हमेशा बुरा काम करते हो। बुरे काम बुरा नतीजा होता है। जिस तरह रावण ने अनाचार और अत्याचार किया। अधर्म का काम किया, परिणामस्वरूप उसका सर्वनाश हो गया। उसके मरने के इतने वर्षों बाद भी हम उसका पुतला जलाते हैं। रावण बुराई का प्रतीक है। तुम दोनों भी इस जंगल में बुराई के प्रतीक हो। यह त्योहार असत्य, पाप, अधर्म का रास्ता छोड़कर सत्य, पुण्य और धर्म के मार्ग पर चलने का है।’ सिप्पी और लुक्कू दोनों रोते हुए एक स्वर में बोले,’ हम आज संकल्प लेते हैं कि कोई भी गलत काम नहीं करेंगे। अच्छाई के मार्ग पर चलेंगे।’
उनकी बातों को सुनकर सभी जानवर मुस्कुराने लगे। रामलीला शुरू हो चुकी थी। अब सभी जानवर मंच की ओर जाने लगे। सिप्पी और लुक्कू भी एक कोने में बैठकर रामलीला देखने लगे। अब सभी रावण दहन का बेसब्री से इंतजार करने लगे।