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चंडीगढ़ का छोरा बिल गेट्स का सरदार

कामयाबी कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो और लक्ष्य साफ हो तो मंजिल मिल ही जाती है। सच्चाई, लगन और कड़ी मेहनत के साथ अगर ईमानदारी और धैर्य भी जुड़ जाये तो फिर सोने पे सुहागा हो जाता है। चंडीगढ़ के गुरदीप सिंह पाल में ये सब खूबियां हैं और इसी कारण आज वह माइक्रोसाफ्ट […]
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कामयाबी

कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो और लक्ष्य साफ हो तो मंजिल मिल ही जाती है। सच्चाई, लगन और कड़ी मेहनत के साथ अगर ईमानदारी और धैर्य भी जुड़ जाये तो फिर सोने पे सुहागा हो जाता है। चंडीगढ़ के गुरदीप सिंह पाल में ये सब खूबियां हैं और इसी कारण आज वह माइक्रोसाफ्ट जैसी कंपनी की एक इकाई ‘स्काइप’ में वाइस प्रेजीडेंट बन गये हैं।

जोगिंद्र सिंह
कुछ कर गुजरने की तमन्ना हो और लक्ष्य साफ हो तो मंजिल मिल ही जाती है। सच्चाई, लगन और कड़ी मेहनत के साथ अगर ईमानदारी और धैर्य भी जुड़ जायें तो फिर सोने पे सुहागा हो जाता है। चंडीगढ़ के गुरदीप सिंह पाल में ये सब खूबियां हैं और इसी कारण आज वे माइक्रोसाफ्ट जैसी कंपनी की एक इकाई ‘स्काइप’ में वाइस प्रेजीडेंट बन गये हैं। बिट्स-रांची से बीटेक करने गये चंडीगढ़ के गुरदीप सिंह पाल  ने वहां जब पहली बार कंप्यूटर की झलक पायी तो वह उसका दीवाना हो गया और ठान लिया कि वह कंप्यूटर में ही अपना करिअर बनायेगा। बस इसके बाद उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। एमटेक ओरेगन यूनिवर्सिटी से करने के बाद माइक्रोसाफ्ट ज्वाइन कर लिया और उसके उच्च पद पर आसीन हो गया।
एक फौजी के बेटा और चंडीगढ़ में जन्मा साफ्टवेयर इंजीनियर गुरदीप सिंह पाल ‘स्काइप’ का वाइस प्रेजीडेंट बनकर परदेश में भी एक असरदार सरदार बन गया हैं। बिल गेट्स की माइक्रोसाफ्ट कंपनी ने करीब दो साल पहले 508 अरब रूपये में ही मुफ्त वॉयस मैसेजिंग और अंतर्राष्ट्रीय कॉल सेवा देने वाली कंपनी ‘स्काइप’ का अधिग्रहण किया था। कंपनी के अधिग्रहण के लिए बातचीत करने वाले दल में भी गुरदीप की मुख्य भूमिका रही। 47 वर्षीय गुरदीप सिंह पाल का सफर बड़ा ही रोचक और  प्रेरणादायी है।
17 अप्रैल, 1966 को चंडीगढ़ के सेक्टर 8 के मकान नंबर 40 में जन्मे पाल बचपन से ही शांत स्वभाव वाले धैर्यवान और मितभाषी रहे हैं। वे अपने काम के द्वारा ही बचपन से अपने बड़ों का भरोसा जीतते गये। एलकेजी और यूकेजी विवेक हाई स्कूल, चंडीगढ़ से की जबकि कक्षा चौथी तक सेंट जोन्स स्कूल में पढ़े। 1977 में पिता गजिंदर सिंह पाल सेना में थे लिहाजा देहरादून तबादला होने पर आगे की पढ़ाई देहरादून के कैंब्रियन हाल से हुई। फिर 1980 में यूएन फोर्सिस की ओर से उन्हें कोलकाता भेज दिया गया जिस पर परिवार भी वहींं चला गया। गुरदीप ने यहीं सेंट थॉमस स्कूल से दसवीं पास की और बारहवीं फे्रंच स्कूल लॉ मार्टीनियर से पास की। यहां रहते हुए उन्होंने इंग्लिश लिटरेचर खासतौर पर फिक्शन जमकर पढ़ा और दसवीं में अंग्रेजी में टॉप भी किया। हर युवा की तरह भविष्य को लेकर उनका भी रोज मन बदलता था। फौजी पिता के कारण पहले वे सेना में जाना चाहते थे, सिलेक्ट भी हो गये मगर फिर मन बदला और डेंटल कालेज से बीडीएस करने की सोची। मां तेजिंदर कौर ने अपने लाडले को अलग फील्ड में जाने को प्रेरित किया और कहा कि वे उसके ब्रेन को बर्बाद नहीं होने देंगी। मां के आग्रह पर उसने इंजीनियर बनने की ठानी। तभी उन्हें रांची के बिड़ला इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नालोजी एंड साइंस (बिट्स) में कंप्यूटर देखा और यह जानकर युवा गुरदीप खुशी से उछल पड़ा कि वह कम्प्यूटर पर हाथ भी आजमा सकेगा। यहीं से उन्होंने साफ्टवेयर इंजीनियर बनने की राह पकड़ ली। उस जमाने में कम्प्यूटर की झलक पा लेना ही बड़े गौरव की बात होती थी। यहां से बीटेक करने के बाद स्कालरशिप पर गुरदीप सिंह अमेरिका की ओरेगन यूनिवर्सिटी से एमटेक करने चला आया। यहां पर उसकी योग्यता देख यूनिवर्सिटी ने पूरा खर्च देने का ऑफर दिया। यहीं से 1990 में माइक्रोसाफ्ट ज्वाइन कर लिया। गुरदीप सिंह के बड़े भाई गुरप्रीत सिंह पाल भी माइक्रोसाफ्ट में ही ऊंचे ओहदे पर हैं। उन्होंने एमटेक करने के लिए बड़े भाई की भी मदद की।
गुरदीप सिंह पाल के खाते में नेटवर्किंग, वीओआईपी और कोलेबोरेशन के क्षेत्र में करीब दो दर्जन पेटेंट हैं। ‘इन्फोर्मेशन वीक’ ने 2008 में पाल को 15 ऐसे इनोवेटरों में शामिल किया था जो कुछ नया कर सकते हैं। वह हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू द्वारा प्रकाशित शोध ‘इंस्टीट्यूशनल मेमोरी गोज डिजीटल’ के सह-लेखक भी हैं, जिसे दावोस में विश्व आर्थिक मंच 2009 में प्रस्तुत किया गया था। माइक्रोसाफ्ट में कारपोरेट वाइस प्रेजीडेंट पाल ने अपनी कंपनी के लिए कई अन्य कंपनियों के अधिग्रहण एवं प्रौद्योगिकी सांझेदारियों का नेतृत्व भी किया। स्काइप और लिंक कम्युनिकेशन के उत्पाद, इंजीनियर और संचालन प्रमुख बनने वाले श्री पाल को 2500 से ज्यादा डेवलपर की टीम की अगुवाई करनी होगी। काम के मामले में बिल गेट्स ही उनके प्रेरणास्रोत हैं। विंडो एनटी डेवलप करने वाली टीम का हिस्सा रहे गुरदीप ने 1993 में बतौर साफ्टवेयर इंजीनियर विंडो एनटी 3.1 का पहला वर्जन भी तैयार किया। फिर सभी विंडो एक्सपी 2001 पर और विंडो नेटवर्किंग के जनरल मैनेजर के रूप में डिजाइन एवं कोर नेटवर्किंग टेक्रोलॉजिज जैसे – पीपीपी, टीपीसी/आईपी, यूपीएनपी, वीपीएनएस, रूटिंग, वाई-फाई और आपरेटिंग सिस्टम पर भी काम किया। उद्योग में पहले वीपीएस प्रोटोकॉल (पीपटीपी) के सह-लेखक भी हैं, जिसे पीसी मैगजीन की ओर से 1996 में प्रतिष्ठित इनोवेशन अवार्ड मिला। उन्होंने 1990 में नेटवर्किंग के क्षेत्र में द इंटरनेट इंजीनियर टास्क फोर्स बारे कई डाक्यूमेंट और स्टैंडर्ड तय किये।
कभी गला काट होड़ में भरोसा न रखने वाले गुरदीप को पता है कि सफलता केवल कड़ी मेहनत से ही मिलती है इसलिए उन्होंने कभी कोई शार्टकट भी नहीं अपनाया। गुरदीप सिंह पाल की मां तेजिंदर कौर का कहना है कि गुरदीप कभी दूसरों के कंधे पर चढ़कर आगे बढऩे में विश्वास नहीं करता बल्कि कुछ पाने के लिए अपने भीतर से ही सर्वश्रेष्ठ देने की सोचता है। यही कारण है कि माइक्रोसाफ्ट में टीम उनको प्यार भी करती है और उन पर यकीन भी करती है। फिलहाल पत्नी सीमा और दो बेटों आदित्य सिंह (11) व विवेक सिंह (8) के साथ सिएटल में रह रहे गुरदीप को अब तीन सप्ताह लंदन और एक सप्ताह सिएटल में बिताना होगा। छह माह के बाद नया सत्र आने पर ही वे परिवार को लंदन शिफ्ट करने की सोचेंगे। आजकल चंडीगढ़ के सेक्टर 33 के मकान नंबर 1525 में रह रहे  गुरदीप के पिता ब्रिगेडियर (अवकाश-प्राप्त) गजिंदर सिंह पाल बड़े फख्र से बताते हैं कि उनका बेटा शुरू से ही पढ़ाकू टाइप था, उसमें गज़ब का धैर्य था। पिता गजिंदर सिंह पॉल का कहना है कि गुरदीप काम करते हुए कभी थकता नहीं, हमेशा कूल रहता है और कभी अपना टेम्पर लूज नहीं करता।
जात-पात को नहीं मानते
गुरदीप सिंह पाल हालांकि पूरी तरह धार्मिक हैं और रोज पाठ करते हैं मगर वे जात-पात में विश्वास नहीं करते। उनकी पत्नी सीमा राजस्थान के बीकानेर से हैं। सीमा भी उनके साथ ही माइक्रोसाफ्ट में काम करती थी। दोनों में दोस्ती हुई और फिर प्यार शादी में बदल गया। उनके दो बेटे आदित्य सिंह और विवेक सिंह को भी पिता की तरह फुटबाल, क्रिकेट के अलावा तैराकी व घुड़सवारी का शौक है। बच्चे छोटे होने की वजह से सीमा ने शादी के बाद घर पर रहकर उनकी परवरिश को ही तरजीह दी। गुरदीप को रीडिंग के अलावा कार्टून बनाने और ड्राइंग का भी शौक है। मां तेजिंदर कौर बताती हैं कि साढ़े चार साल की उम्र में गुरदीप ने रेलवे स्टेशन का एक सीन बनाया जिसमें बड़ी बारीकी से लोहे का जंगला और स्टेशन पर रेहड़ी का चित्र बनाया था।

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जन्मदिन की एक तारीख
एक और खास बात गुरदीप का जन्म अप्रैल माह (17 अप्रैल, 1966) में हुआ, उनके बड़े भाई का जन्म भी अप्रैल (27 अप्रैल, 1964) में ही हुआ। इसी तरह दोनों बेटों का जन्म फरवरी माह में हुआ। आदित्य सिंह 25 फरवरी, 2002 को और विवेक सिंह 15 फरवरी, 2005 को हुआ।

मां बोली-वह एक गुड ईटर है
खाने-पीने के शौकीन गुरदीप को  बचपन से लजीज व्यंजनों से बेहद प्यार रहा है। मां तेजिंदर कौर के चेहरे पर यह बताते हुए खुशी तैर गयी कि वह कभी दाल-सब्जी कटोरी में नहीं लेता था बल्कि डोंगा भरकर लेता था।   वह एक ‘गुड ईटर’ है। उसमें एक बात जरूर है वह परिवार और काम में सामंजस्य बिठाकर रखता है।

सफलता का राज
गुरदीप सिंह के मामा रविंदर सिंह आहलूवालिया पिछले 50 वर्षों से अमेरिका में रह रहे हैं। अमेरिका में पढ़ाई करने जाने और वहीं पर सेटल होने के पीछे एक कारण उनके मामा भी रहे। इन दिनों चंडीगढ़ में गुरदीप के घर आये रविंदर आहलूवालिया का कहना है कि गुरदीप एकदम शांत स्वभाव वाला है मगर वह परिपक्व फैसले लेता है।  आहलूवालिया का कहना है कि गुरदीप की सफलता का राज उसका काम के प्रति प्रतिबद्धता है। वे पहले किसी काम की प्लानिंग करते हैं फिर डबल फॉलोअप और फिर वेरीफिकेशन करके उसे डिलीवर करते हैं। अमेरिका में एक इंश्योरेंस कंपनी में काम करने वाले गुरदीप के मामा का कहना है कि गुरदीप कंपनी की बातें (सीक्रेट) किसी से नहीं शेयर करते। उन्होंने बताया कि जब वे स्काइप को खरीदने के लिए माइक्रोसाफ्ट की ओर से जाने वाले प्रतिनिधिमंडल में जा रहे थे तो एक दिन पहले उनके पास आये और रात को वहीं रहे। उन्होंने वहां से पॉल वाल्टो (स्काइप आफिस) की दूरी पूछी और सुबह उसी हिसाब से वहां से चलने की योजना बनायी। डील होने के बाद ही बताया कि माइक्रोसाफ्ट ने स्काइप को खरीद लिया है।

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