कलम और रोशनी की स्याही
एन.के. गौड़
मेरा दाखिला ‘गद्दी-खेड़ी गांव’ के स्कूल में करवाया गया था। मां ने मुझे नहला-धुला कर तैयार किया और बाबूजी स्कूल छोड़ने गए। मेरी पहली कक्षा के मास्टर जुगती राम जी थे। बाबू जी मुझे कक्षा तक छोड़ कर चले गए। मैंने देखा कि मास्टर जी एक ऊंची-सी काठ की कुर्सी पर बैठे हुए थे और चाकू से सब बच्चों की बारी-बारी से कलम तराश रहे थे। कलम तराश कर अपनी कुर्सी के हत्थे पर रखकर कलम की नोक को टेढ़ी करके काट रहे थे। कलम तराशने का काम समाप्त हो जाता तो चाकू को मोड़ कर अपने कुर्ते की जेब में रख लेते। मास्टर जुगती राम एकदम काले थे। उनके मुंह में लंबे-लंबे दांत थे जो बाहर निकले हुए थे। उन्होंने एकदम सफेद धोती और कुर्ता पहना हुआ था। उनकी लंबी-सी नाक पर एक मोटा-सा चश्मा भी टंगा हुआ था। मेरे बस्ते में एक कायदे के अलावा और कुछ भी नहीं था। मुझसे मास्टर जी ने कहा कि कल कलम-दवात और अपनी तख्ती भी लाना। अगले दिन मैंने अपनी दादी से कहा कि मुझे तख्ती, कलम और दवात भी चाहिए। दादी ने घर के कबाड़ से एक पुरानी तख्ती ढूंढ़ी। शायद वह मेरे चाचा जी की रही होगी। कलम के लिए दो-तीन सरकंडे भी दिए। जब मैंने कहा कि दादी स्याही और दवात भी चाहिए। दादी ने घर में पड़ी एक छोटी-सी कांच की शीशी को धोया, तवे के पीछे जमी कालिख को अच्छी तरह से झाड़ा, उसे शीशी में डाला, उसमें थोड़ा-सा पानी मिलाया और ढक्कन लगाकर थोड़ा-सा हिलाकर मुझे दे दिया। तब क्या पता था कि इस तवे की कालिख से लिखें काले अक्षर ही मेरे जीवन को रौशन करने वाले हैं। मेरे पहले गुरु श्रीगुरु जुगती राम जी सदैव मेरी स्मृतियों में रहेंगे और उनको सदैव नमन करता रहूंगा।
स्कूल का पहला दिन सभी के लिए खास होता है। लापरवाह बचपन की बेपरवाह दिनचर्या से अनुशासित जीवन की शुरुआत। आप रोये भी होंगे या पहले ही दिन नन्हे-मुन्ने सहपाठियों से हिल-मिल गये होंगे। अगर आप भी स्कूल के प्रथम दिन की कुछ ऐसी खट्टी-मीठी यादें लहरें के पाठकों से शेयर करना चाहते हैं तो हमें लिखिए। हमारे ई-मेल पते पर अपना फाेटो-िचत्र संलग्न करना न भूलें। शब्द -संख्या 250-300 रहेगी। हमारा पता :
Dtfeature@tribunemail.com