कन्या भ्रूण हत्या कानून
सुमन बाजपेयी
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 मानवीयता और रजिस्टर्ड डॉक्टरों को गर्भपात का अधिकार प्रदान करता है। लिंग चयन प्रतिबंध अधिनियम, 1994 गर्भधारण से पहले या उसके बाद लिंग चयन पर प्रतिबंध लगाता है। यही कानून कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए प्रसव से पहले लिंग निर्धारण से जुड़े टेस्ट पर भी प्रतिबंध लगाता है। गर्भाधान और प्रसव से पूर्व पहचान करने की तकनीक अधिनियम (पीसीपीएनडीटी) कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार देता है।
क्या कहता है कानून
* पीसीपीएनडीटी एक्ट 1994 के तहत गर्भाधारण पूर्व या बाद लिंग चयन और जन्म से पहले कन्या भ्रूण हत्या के लिए लिंग परीक्षण करना गुनाह है।
* भ्रूण परीक्षण के लिए सहयोग करना, विज्ञापन देना कानूनी अपराध है। इसके तहत 3 से 5 साल तक की जेल व 10 हजार से 1 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
* किसी भी गर्भवती का जबरन गर्भपात करवाना अपराध है। ऐसा करने पर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।
* गर्भवती महिला की मर्जी के बिना, धारा 313 के तहत गर्भपात करवाने वाले को उम्रकैद की सज़ा हो सकती है।
* गर्भपात करने के मकसद से किये गए कार्यों से (धारा 314 के तहत) अगर महिला की मौत हो जाती है तो दस साल की जेल या जुर्माना हो सकते हैं।
* इसके अलावा आईपीसी की धारा 315 के तहत शिशु को जीवित पैदा होने से रोकने के मकसद से किया गया हर एक कार्य अपराध होता है, ऐसा करने वाले को दस साल की सजा या जुर्माना दोनों हो सकता है।
* धारा 312 से 318 के तहत गर्भपात करना, बच्चे के जन्म को रोकना, अजन्मे बच्चे की हत्या करना (धारा 316), नवजात शिशु को त्याग देना (धारा 317), बच्चे के मृत शरीर को छुपाना या इसे चुपचाप नष्ट करना (धारा 318) दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है।
1 अप्रैल, 1972 को लागू हुआ एमटीपी एक्ट
वर्ष 1964 में स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक समिति का गठन किया। शांतिलाल शाह नाम से गठित इस समिति को महिलाओं द्वारा की जा रही गर्भपात की कानूनी वैधता की मांग के मद्देनजर महिला के प्रजनन अधिकार के मानवाधिकार के मुद्दों पर विचार करने का काम सौंपा गया।
वर्ष 1971 में संसद में गर्भ की चिकित्सकीय समाप्ति अधिनियम, 1971 (एमटीपीएक्ट) पारित हुआ जो 1 अप्रैल, 1972 को लागू हुआ और इसे उक्त अधिनियम के दुरुपयोग की संभावनाओं को ख़त्म करने के उद्देश्य से गर्भ की चिकित्सकीय समाप्ति संशोधन अधिनियम (2002 का न. 64) के द्वारा 1975 और 2002 में संशोधित किया गया।
गर्भ की चिकित्सकीय समाप्ति अधिनियम केवल आठ धाराओं वाला छोटा अधिनियम है। यह अधिनियम महिला की निजता के अधिकार, उसके सीमित प्रजनन के अधिकार, उसके स्वस्थ बच्चे को जन्म देने के अधिकार, उसका अपने शरीर के सम्बन्ध में निर्णय लेने के अधिकार की स्वतंत्रता की बात करता है। यह अधिनियम गर्भपात करने वाले चिकित्सकों की योग्यता का भी निर्धारण करता है और केवल सरकारी लाइसेंस प्राप्त केन्द्रों पर ही गर्भपात कराया जा सकता है।
इस अधिनियम के प्रावधानों का उद्देश्य अवैध गर्भपात के ख़तरों को कम करना है जो कि नीम-हकीमों के अप्रशिक्षित हाथों से गर्भपात करने पर किसी महिला के जीवन और सेहत के लिए ख़तरनाक बन सकता है।
पीएनडीटी अधिनियम 2002, दिसंबर में अस्तित्व में आया। बाद में इस अधिनियम को गर्भाधान पूर्व-प्रसव पूर्व परीक्षण तकनीक (लिंग चयन प्रतिबन्ध) अधिनियम कहा गया। इसके बाद स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने प्रसव-पूर्व परीक्षण (दुरुपयोग का नियम एवं बचाव) अधिनियम 2003 ने 14 फरवरी को 1996 के नियम को विस्थापित कर दिया।
पीसी एंड पीएनडीटी अधिनियम ने सभी परीक्षण प्रयोगशालाओं के पंजीकरण को अनिवार्य बना दिया है।
इन हालात में अनुमति देता है कानून
* जब प्रेग्नेंसी की वजह से महिला की जान को खतरा हो ।
* महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को खतरा हो।
* प्रेग्नेंसी रेप के कारण हो।
* बच्चा गंभीर रूप से विकलांग या अपाहिज पैदा हो सकता हो।
* महिला या पुरुष द्वारा अपनाया गया कोई भी परिवार नियोजन का साधन असफल रहा हो।