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एक असफल कालिदास

मोहन राकेश के प्रसिद्ध नाटक : 'आषाढ का एक दिन' को आज भी बड़े- बड़े निर्देशकों द्वारा मंचित किया जाता है । यह नाटक मंचित करना किसी चुनौती से कम नहीं ।
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क्लासिक किरदार
‘आषाढ़ का एक दिन’
मोहन राकेश
कमलेश भारतीय

मोहन राकेश के प्रसिद्ध नाटक : ‘आषाढ का एक दिन’ को आज भी बड़े- बड़े निर्देशकों द्वारा  मंचित किया जाता है । यह नाटक मंचित करना किसी चुनौती से कम नहीं ।
सन 1958 के बसंत पर मोहन राकेश की लिखी भूमिका में नाटक मंचन पर भी चिंतन स्पष्ट होता है । बड़ी बात यह है कि इसमें भावना और यथार्थ का टकराव है । पहले अंक में यह टकराव मल्लिका के घर में ही होता है । कालिदास घायल हरिणशावक को लेकर आता है । कालिदास मल्लिका के घर में विलोम का आना पसंद नहीं करता । यह इस बात का प्रमाण है कि विलोम और कालिदास एक दूसरे के ठीक विपरीत पड़ते हैं । कालिदास विलोम के यथार्थ व सीधे  सवालों का सामना नहीं कर पाता और उसे जाने को कहा देता हैं । पर विलोम के सवाल  मल्लिका की मां अम्बिका की आंखों में भी दिखते हैं । कालिदास के जाते ही अम्बिका अपनी बेटी को बाहों में ले लेती हैंं । विलोम और अम्बिका मल्लिका के जीवन की पीड़ा और कालिदास के साथ प्रेम के चलते अपवाद को समझते हैं और विलोम इसी सवाल को उठाता है जबकि कालिदास सिर्फ और सिर्फ अपने तक सीमित है । विलोम और कालिदास में यही बहुत बड़ा फर्क है । नायक कालिदास है लेकिन हृदय में जगह बनाता है तो विलोम । कालिदास उज्जयिनी जाकर मल्लिका को भूल जाता है और राजसी ठाट बाठ में खो जाता है । जबकि विलोम चाहे मल्लिका से एकतरफा ही प्रेम करता है लेकिन वह मल्लिका और उसकी पीड़ा को समझकर निरंतर उसकी सहायता करता रहता है। कालिदास के उज्जयिनी चले जाने और अम्बिका के स्वास्थ्य के जर्जर होते जाने पर वह मल्लिका की परवाह किए वगैरह सहायता करता रहता है । जबकि कालिदास न केवल मल्लिका को उपेक्षित करता है बल्कि राजकुमारी प्रियंगुमंजरी से विवाह कर लेता है  और गांव प्रांत में आने पर भी मल्लिका से मिलने नहीं आता । उस समय भी विलोम अम्बिका केवल घर में मौजूद है जबकि मल्लिका की आस को निराशा में बदल कालिदास घोड़ा आगे बढ़ा ले जाता है । विलोम इस पर प्रतिक्रिया देता है कि मुझे खेद है कि मैं वर्षो से इस प्रतीक्षा में था । अपनी मित्रता पर भी भरोसा था।  अंतिम अंक में यह टकराव या कहें आमना सामना विलोम और कालिदास के बीच है । यह प्रेम और जीवन के व्यवहारिक पक्ष की टकराहट है। इसीलिए विलोम कहता है कि मल्लिका बहुत भोली है।  विलोम और कालिदास आमने सामने होते हैं विलोम स्पष्ट कहता हैं कि हम दोनों एक दूसरे को इतनी अच्छी तरह समझते हैं । मेरी प्रकृति में ऐसा कुछ भी नहीं जो तुमसे छिपा हो । कालिदास भी कहते हैं कि सभी विपरीत एक दूसरे के बहुत निकट पडते हैं । विलोम का कहना है कि कालिदास को अपनी आंखों में अपने हृदय का सत्य झांकता दिखाई देता है । सच ही है विलोम एक प्रकार से  इसे साबित भी कर देता है । विलोम , मल्लिका और कालिदास जब जब सामने पड़ते हैं तो मल्लिका प्रेम और भावना का प्रतिनिधित्व करती हैं तो विलोम यथार्थ का जबकि कालिदास न कश्मीर का राज काज संभाल पाता हैं और न ही लेखन। वह दोनों में डोलता हैं। वह चुपचाप कश्मीर छोड़ देता है।  इसीलिए विलोम का कहना उचित लगता है : कालिदास क्या है ? एक सफल विलोम और विलोम क्या है ? एक असफल कालिदास । सच । कितना कड़वा सच । जब कालिदास उज्जयिनी चला जाता है तब संकेत यही है कि विलोम ही मां बेटी को सहारा देता है । अम्बिका  को दवा तक उपलबध करवाता है । जो राज्य कर्मचारियों की आकृतियां दिखती हैं , वे जाने अनजाने मल्लिका के जीवन को प्रभावित कर जाती हैं । अंत में कश्मीर के राजनीतिक घटनाक्रम से जब कालिदास लौटता है और मल्लिका से मिलता है तब भी विलोम उसके सामने पड़ता है । कालिदास उसे फिर जाने के लिए कहता है । विलोम कहता है कि चला जाऊं क्योंकि तुम यहां लौट आए हो ? क्योंकि तुम्हारे अधिकार शाश्वत हैं ? समय ने औरों को भी सत्ता दी है । अधिकार दिए हैं । आज तुम यहां अतिथि हो । मैं नहीं और अपवाद की बात बताता है कि मल्लिका की बेटी की आकृति विलोम से मिलती है या ,,,,, यह संकेत ही काफी हैं कि विलोम ने कालिदास के साथ अपवाद के बावजूद मल्लिका की बेटी को नाम देकर समाज में कलंकित होने से बचाया। नाटक की शुरूआत और अंत भी आषाढ़ के एक दिन से होता है । जब नायिका मल्लिका घर में प्रवेश करती है और कहती है : आषाढ़ का पहला दिन और ऐसी वर्षा मां,,, पर मां व्यवहार कुशल है । वह मल्लिका को जीवन का व्यवहार सिखाना चाहती है लेकिन मल्लिका ने तो भावना में बह जाना ही सीखा है । असल में विलोम भी अम्बिका की तरह यही चाहता है कि यदि कालिदास उज्जयिनी जाता है तो पहले मल्लिका से परिणयन करे । पर मल्लिका कालिदास की उन्नति में किसी तरह की बाधा नहीं बनना चाहती । निक्षेप उसे मंदिर में कालिदास के पास ले जाता है और वह कालिदास को उज्जयिनी जाने को मानसिक रूप से तैयार कर देती है । विलोम और अम्बिका देखते रह जाते हैं । घर की अवस्था और इनमें रहने वालों की अवस्था एक सी धूमिल होती जाती है । स्वस्तिक और शंख फीके पड जाते हैं और अम्बिका विदा हो जाती हैं । विलोम मल्लिका को सहारा देता हैं या उसकी विवशता । इसमें राज्याश्रय पर निक्षेप का यह कथन बहुत गंभीर है : योग्यता केवल एक चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है , शेष पूर्ति प्रतिष्ठा द्वारा होती है । और अंत में मल्लिका बच्ची के रोने के स्वर के जवाब में कहती है : यह मेरा वर्तमान है । उसने कालिदास के लिखने के लिए पन्ने संभाल कर रखे थे पर कालिदास उन पन्नों को देखकर कहता है कि इन पर एक महाकाव्य की रचना पहले ही हो चुकी है । वह अथवा से आरंभ करना चाहता है परंतु सत्यता से परिचित होते ही कहता है कि समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता।
विलोम ही कालिदास के व्यक्तित्व व चरित्र को सामने लाता है । यह विलोम ही है जो कालिदास द्वारा उपेक्षित व अपवाद की मारी मल्लिका को सहारा देता है जोकि कालिदास का कर्त्तव्य था । परंतु कालिदास यदि मल्लिका को अपना लेता तो आषाढ काल एक दिन की रचना ही क्यों होती ? मल्लिका की भावना और विलोम का कालिदास को चुनौती देते रहना ही नाटक को आगे बढ़ाता रहता है । विलोम के बिना कालिदास की कैसी कल्पना और कालिदास के बिना विलोम कैसा ? विलोम का चरित्र बेशक एक तरफा प्यार करने वाला हैं पर वह इसके बावजूद कालिदास से अधिक दिल में जगह बनाता हैं और सदैव याद रहता हैं ।

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