देवप्रयाग से ऋषिकेश तक आचमन लायक भी नहीं गंगाजल
राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 26 जून। पतित पावनी गंगा का जल देवप्रयाग में आचमन के लायक भी नहीं रहा। गंगा जल के एक हालिया अध्ययन में यह खुलासा हुआ है। अध्ययन के अनुसार गंगाजल का रासायनिक प्रदूषण भले ही घटा हो, लेकिन बैक्टीरियल प्रदूषण के कारण वह कई स्थानों पर इंसान के उपयोग और खेती के लायक भी नहीं रह गया है। उत्तराखंड के गंगोत्री से लेकर पश्चिमी बंगाल के माल्दा तक नौ जगहों पर लिये गये गंगा जल के नमूनों के अध्ययन से यह तथ्य सामने आया है।
गौरतलब है कि गंगा के निर्मल- अविरल प्रवाह और उस पर बन रहे बांध आजकल देश और प्रदेश में बहस के विषय बने हुए हैं। यही नहीं गंगा में गिरने वाले शहरों के सीवर को अभी पूरी तरह रोका नहीं जा सका है, जो कि गंगा जल के प्रदूषण का एक बहुत बड़ा कारक है। पानी व पर्यावरण के एक विशेषज्ञ संस्थान श्रीराम इंस्टीट्यूट फफर इंडस्ट्रियल रिसर्च की ओर से मोस्ट प्रोबेबल नंबर (एमपीएन) तकनीक से किए गए अध्ययन के मुताबिक गंगाजल बीमारियों को न्योता देने वाला पानी बन गया है और उसमें कोलीफदर्म बैक्टीरिया (ई-कोली) भारी मात्रा में है। श्रीराम इंस्टीट्यूट से उत्तराखंड जल संस्थान का भी समझौता है। खतरनाक बात यह है कि उत्तराखंड में देवप्रयाग और उससे नीचे बसे शहरों के पास बह रही गंगा के पानी का प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। श्रीराम इंस्टीट्यूट फफर इंडस्ट्रीयल रिसर्च ने 2010, 2011 और 2012 में यानी लगातार तीन साल गंगोत्री, देवप्रयाग, ऋषिकेश, हरिद्वार, कानपुर, इलाहाबाद, मिर्जापुर, वाराणसी, पटना और माल्दा में गंगा जल के नमूने लेकर उसके प्रदूषण की परख की है।
एमपीएन तकनीक में मिट्टी, पानी और कृषि उत्पादों में मौजूद कीटाणुओं व जीवाणुओं की संख्या के आधार पर प्रदूषण को मापा जाता है। अध्ययन के मुताबिक हालांकि पिछले तीन वर्षो में गंगा में रासायनिक प्रदूषण तो घटा है लेकिन जीवाणुओं, कीटाणुओं की वजह से होने वाला प्रदूषण खतरनाक स्तर पर पहुंच रहा है। हालांकि केंद्र सरकार के जवाहरलाल नेहरू नेशनल अरबन रिन्यूएअल मिशन (जेएनएनयूआरएम) के तहत इन सभी शहरों में सीवर नेटवर्क व सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लग रहे हैं, लेकिन घरेलू गंदगी यानी गंगा में मिलने वाला सीवर गंगा को मार रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक गंगा जल बीमारियों का अड्डा बन रहा है। कई जगह यह पीने ही नहीं बल्कि नहाने यहां तक कि खेती के लायक भी नहीं रहा। अध्ययन के मुताबिक इस प्रदूषण की वजह से गंगा में पाई जाने वाली गंगा डाल्फिन व महाशीर जैसी कई मछली प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर हैं। 2010-11 के अध्ययनों में भी पाया गया कि गौमुख से केवल 20 किमी दूर गंगोत्री से ही गंगा प्रदूषित होने लगती है। इस साल अध्ययन में गंगोत्री में 100 मिलीलीटर गंगाजल में एमपीएन 26 पाया गया। यानी वह अभी पीने लायक है। देवप्रयाग और ऋषिकेश में गंगा जल पीने लायक नहीं पाया गया है। हरिद्वार में तो हालत और खराब है और अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक वहां गंगा का पानी तो नहाने लायक भी नहीं है।