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गैरसैण में कैबिनेट : नाटक या हकीकत!

राजेन्द्र जोशी देहरादून, 30 अगस्त। उत्तराखण्ड के करोड़ों रुपये खर्च कर प्रदेश सरकार गैरसैण में कैबिनेट का नाटक करने जा रही है, लेकिन सरकार के इस फैसले से पहाड़ के लोगों अथवा राज्य के लिए कुर्बान होने वाले उन शहीदों को क्या उनका उत्तराखण्ड और उसकी राजधानी गैरसैण मिलेगी यह सवाल आज भी यक्ष प्रश्न […]
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राजेन्द्र जोशी
देहरादून, 30 अगस्त। उत्तराखण्ड के करोड़ों रुपये खर्च कर प्रदेश सरकार गैरसैण में कैबिनेट का नाटक करने जा रही है, लेकिन सरकार के इस फैसले से पहाड़ के लोगों अथवा राज्य के लिए कुर्बान होने वाले उन शहीदों को क्या उनका उत्तराखण्ड और उसकी राजधानी गैरसैण मिलेगी यह सवाल आज भी यक्ष प्रश्न बनकर खड़ा है। गैरसैण को राजधानी बनाने का सपना लिये नया राज्य उत्तराखंड के लिए जहां सैकड़ों लोगों ने अपनी जान दे दी, राज्य बने 12 साल होने को हैं, राज्य में दोनों ही बड़े राजनीतिक दलों की सरकारों ने न तो उन शहीदों के शहादत की कद्र की और न पर्वतीय क्षेत्र के लोगों की भावनाओं की, ऐसे सवाल उठता है कि कहीं यह कैबिनेट बैठक राज्यवासियों की भावनाओं के जख्मों पर नमक छिड़कने का काम तो नहीं करेगी?
उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने आगामी दो अक्तूबर को गैरसैण में प्रस्तावित कैबिनेट बैठक को लेकर तैयारियां शुरू कर दी है। इसकी तैयारी के लिए बीते दिन गैरसेंण, कालेश्वर, कर्णप्रयाग, गोचर सहित चौखुटिया तक के सभी सरकारी बंगले, जिनमें लोकनिर्माण विभाग, फारेस्ट, आईटीबीपी तथा गढ़वाल मण्डल विकास निगम आदि शामिल हैं, को दुरुस्त करने के निर्देश जिला प्रशासन व कमिश्नर को दिये हैं। लेकिन राजनैतिक हलकों में इस बात की खासी चर्चा है कि कहीं ये पहाड़ के लोगों के साथ छलावा तो नहीं आखिर इससे पहाड़ के लोगों को क्या मिलेगा, यह सबसे बड़ा राजनैतिक सवाल यही उठ रहा है। पहाड़ के लोगों का कहना है कि हिमाचल में धर्मशाला की तर्ज पर यदि राज्य सरकार गैरसैण को ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप विकसित करती है तो पहाड़वासियों को यह आभास तो होगा कि चलिए पूरी नहीं तो आधी राजधानी तो मिली। लेकिन राज्य सरकार की मंशा पर राज्य के पर्वतीय क्षेत्र के लोगों को अभी भी यकीन नहीं हो रहा है। राज्यवासियों को लगने लगा है कि पहले राज्य मिला लेकिन जो मिला वह उनके सपनों का राज्य नहीं है। फिर नेता मिले वे भी राज्यवासियों की भावनाओं की कद्र नहीं कर पाये, इतना ही राज्यवासियों के दिलों में सबसे बड़ी चोट तब लगी जब पर्वतीय क्षेत्र की छह विधानसभायें क्षेत्रफल को आधार न मानते हुए जनसंख्या के आधार पर तराई में चली गयी और राज्य के नेताओं के मुंह से उफ तक नहीं निकली।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दो अक्तबर को गैरसैण में होने वाली कैबिनेट की बैठक में जहां मुख्यमंत्री, मंत्रिमंडल के सभी 11 सदस्य व राज्य की अफसरशाही राज्य में के अतिथिगृहों में अतिथि बनकर रहेंगे। इसका भी तो संदेश जनता में जाएगा वहीं यह भी जानकारी मिली है कि मुख्यमंत्री सहित अधिकांश मंत्री व अधिकारी राज्य सरकार के स्टेट प्लेन से गौचर तक जाएंगे वहां से मुख्यंमत्री व कुछ और लोग हैलीकाप्टर से गैरसैण लैंड करेंगे शेष गौचर से कारों से गैरसैण पहुंचेंगे। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठ खड़ा हो रहा है कि क्या राज्य के नेता तथा अफसर शाही जब राज्य के शहीदों की सोच की राजधानी, देहरादून से गैरसैण तक कार से नहीं जा सकते तो इन्हें उत्तराखण्ड के लोगों की वास्तविक स्थिति की जानकारी कैसे मिलेगी कि आखिर वे किस हाल में पहाड़ों में रह रहे हैं।
सवाल उठ रहे हैं कि गैरसैण में 2 अक्तूबर को होने जा रही कैबिनेट बैठक क्या प्रदेशवासियों के सपनों को साकार करेगी या मुलायम सिंह के शासनकाल के दौरान मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा कांड की तरह उनकी भावनाओं से खिलवाड़ तो नहीं करेगी।

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