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सत्य साईं बाबा और मृत्यु के बाद जीवन

स्मृति शेष जब वह जीवित थे, श्री सत्य साई बाबा, जिनके नश्वर शरीर को 27 अप्रैल को पुट्टापर्ती में समाधि दे दी गई, बहुत स्पष्ट थे कि उनके लिए मृत्यु अंत नहीं है। तीस वर्ष पूर्व उनके 55वें जन्म दिवस पर 23 नवंबर, 1980 को मुझे दिए गए साक्षात्कार के दौरान मैंने उनके पूछा कि […]
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राज चेंगप्पा प्रधान संपादक

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स्मृति शेष

27 अप्रैल को प्रशांति निलयम में महा समाधि से पूर्व सत्य साईं बाबा के पार्थिव शरीर पर राष्ट्रीय ध्वज उढ़ाते पुलिस कर्मी।

जब वह जीवित थे, श्री सत्य साई बाबा, जिनके नश्वर शरीर को 27 अप्रैल को पुट्टापर्ती में समाधि दे दी गई, बहुत स्पष्ट थे कि उनके लिए मृत्यु अंत नहीं है। तीस वर्ष पूर्व उनके 55वें जन्म दिवस पर 23 नवंबर, 1980 को मुझे दिए गए साक्षात्कार के दौरान मैंने उनके पूछा कि जब उनकी मृत्यु होगी तो उन्हें क्या होगा। उन्होंने उत्तर दिया ‘जीवन और मौत तो केवल शरीर के लिए है। मैं शरीर नहीं हूं। यह मेरे रूमाल की तरह है। यह मैं हूं। फिर भी मैं इससे बिछड़ता हूं। जब मेरी मौत होगी, मैं पुन: अवतरित हूंगा।’
मुझे याक्षिक समाचार पत्रिका ‘न्यू डेल्ही’ (जो अब बंद हो चुका है) द्वारा जन्म दिवस समारोह की रिपोर्ट करने भेजा गया था। प्रशांति निलयम, जहां लोग एकत्र हुए, तब एक सामान्य सा सभागार था, जहां मात्र एक हजार लोग समा सकते थे। तब भी बाबा की प्रसिद्धि बहुत फैली हुई थी और देश-विदेश से एक लाख से अधिक लोग निलयम में पहुंचे हुए थे। मैंने बेंगलुरु से पुट्टापर्ती के लिए बस पकड़ी तथा चार घंटे की यात्रा में श्रद्धालु बाबा की प्रशंसा में भजन  गाते  गए। मैं स्वीकार करता हूं कि इस प्रकार की भक्ति से मैं आश्चर्यचकित था।
जब मैं वहां पहुंचा प्रत्येक कोई बहुत सहायक था। सभागार के साथ लगते एक तम्बू में सोने के लिए मुझे बिस्तर दिया गया। वहां अमीर-गरीब बहुत से लोग थे, जिनमें रक्षा मंत्री के पूर्व वैज्ञानिक सलाहकार एस भार्गवंतम भी थे, जो यात्रियों को भोजन वितरित कर रहे थे।
जब मैंने कुछ श्रद्धालुओं से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि वे यहां इसलिए आए हैं, क्योंकि बाबा ने उन सभी की किसी न किसी प्रकार सहायता की है। बाबा को भारत के चमत्कारी व्यक्ति के रूप में जाना जाता है- हवा में से अंगूठी सामने  लाने और श्रद्धालु को भेंट करने या हथेली में से विभूति पैदा कर उसे श्रद्धालु को देने के लिए। अनेक तर्कवादियों ने उनकी इस प्रकार के कार्यों के लिए आलोचना भी की और कहा कि वे सिद्ध कर सकते हैं कोई जादूगर भी यह कर सकता है।
बाबा ने उनकी अनदेखी की और श्रद्धालुओं ने भी यही किया। तब  मैंने लिखा कि यह बाबा की शिक्षाओं की व्यापकता है, जो सभी धर्मों के लोगों को उनकी ओर आकृष्ट करती है। उन्होंने विशिष्ट रूप से किसी धर्म पर ध्यान केंद्रित नहीं किया, लेकिन यह कहा कि सभी धर्मों का उद्देश्य एक सा ही है- आत्म निरीक्षण और परमात्मा से एकरूपता। सत्य साईं सेवा संगठन जो तब 60 देशों में फैला हुआ था, ने समाज सेवा के अतिरिक्त स्कूल और कालेज आरंभ किये। तब मैंने लिखा कि बाबा को एक राजा की तरह माना जाता है। वह चांदी के सिंहासन पर बैठते हैं। जब वह प्रविष्ट करते हैं तो ढोलक के साथ भजन गाए जाते हैं, जो उनकी प्रशंसा में होते हैं। श्रद्धालु उनकी स्वर्ण परत जड़ी  छतरी या चांदी के गिलास को पकडऩे  या अपने स्थान पर रखने के लिए उतावले रहते हैं। श्रद्धालु उन्हें सर्वदा भगवान कह कर पुरकारते हैं। मैं आश्चर्यचकित रह गया, जब भगवंतम, जो विज्ञान का आदमी था, ने मुझे बताया, ‘मैं विश्वास करता हूं कि वह भगवान है। मैं उनका अनुसरण करता हूं। मैं उनकी सेवा करता हूं। मैं उनकी पूजा करता हूं। मैं जो भी करता हूं, महसूस करता हूं कि वह भगवान हैं।’
जब मैंने उनके एक भक्त से कहा कि क्या मैं उनका साक्षात्कार ले सकता हूं तो उन्होंने कहा कि यह अच्छा होगा कि उन्हें पत्र लिखा जाए। मैंने तर्क किया कि ऐसा पत्र किस प्रकार लिखा जाए, जो ‘प्यारे भगवान’ से शुरू हो। अधिकांश अनुयायियों ने कहा कि इस प्रकार के व्यस्त समारोह में यह साक्षात्कार अकेले लेना लगभग असंभव है।
मुझे नहीं पता कि मैंने क्या सही किया, लेकिन सुबह 5 बजे मुझे बताया गया कि बाबा निलयम के साथ ग्रीन रूम में मुझे देखना चाहते हैं, उससे पूर्व जब वह भक्तों के समक्ष बाहर आते हैं। जब बाबा के आने का पता चलता है तो भक्त उस रास्ते पर गुलाब की पत्तियां फेंकते हैं और घुटनों के बल झुक जाते हैं, ताकि उनका स्वागत किया जाए। जब बाबा ने मुझे देखा तो उनके चेहरे पर मुस्कान थी। उन्होंने पूछा किस भाषा में बातचीत होगी। जब मैंने कहा कि इंग्लिश तो उन्होंने कहा कि मुझे अधिक अच्छी तरह इंग्लिश नहीं आती, लेकिन हम हृदय की भाषा से बात करेंगे।
उन्होंने मुझे फर्श पर अपने पैरों के करीब बैठने का संकेत किया। वह बहुत स्नेही नज़र आ रहे थे। कई बार बोलते समय उन्होंने मेरे बालों पर भी हाथ फेरा। मुझे याद आता है कि वह एक चमत्कारिक व्यक्तित्व के स्वामी थे। अगले 15  मिनट में उन्होंने मेरे सवालों का जवाब नीतिकथा या दृष्टांत के रूप में दिया, कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं :
भारत के विषय में : ‘हमारे नेता ऐसे हैं जिनके कोई सिद्धांत नहीं हैं। वह खतरनाक तथा निरर्थक हैं। राजनीतिज्ञों की रुचि सत्ता प्राप्ति में होती है न कि लोगों की मदद करने में। वे संकीर्ण मानसिकता वाले हैं। विस्तार जीवन है तथा संकुचन मौत। उन्होंने अवश्य ही अपना विस्तार करना चाहिए। मंच पर वह हीरो नजर आते हैं जबकि वास्तविकता में वह जीरो अर्थात शून्य हैं।
अपने चमत्कारों के बारे में : ‘मेरा सबसे बड़ा चमत्कार प्यार है, बाकी सब चीजें तौ गौण हैं। जैसे जलेबी, बर्फी, रसगुल्ला तथा अन्य मिठाइयों में चीनी तो सामान्य रूप से विद्यमान रहती है, इसी प्रकार हमारे जीवन में भी प्यार सामान्य रूप से मौजूद है। हम तो प्यार के अवतार हैं। यही शांति का मार्ग भी है।’
मानसिक शांति के संबंध में : ‘मानसिक शांति कोई बाहरी वस्तु नहीं है। आप इसे किसी उत्पाद की तरह दुकान से खरीद या उद्योग में बना नहीं सकते। यह आप में ही समाहित है। मेरा रूमाल  देखिये, आप इसे रूमाल कहोगे लेकिन हकीकत में यह एक कपड़ा है। कपड़ा सूत से बना है तथा सूत धागों से। विचार धोगे हैं इच्छाएं सूत तथा मस्तिष्क उत्पाद है। यदि विचार ढंग से बुने होंगे तो मस्तिष्क आसानी से परेशान नहीं होगा। यह पूर्णता में तथा शांति में रहेगा।
अपने बारे में : ‘मेरा दिल हर तरह की मुश्किलों तथा चिंताओं व भयों से मुक्त है। मेरे हाथ समाज की मदद के लिए हैं। मेरा सिर जंगल है। मेरा मतलब आराम से है।
बाबा तब खड़े होकर लोगों का अभिवादन करने व उनके साथ भजन गाने बाहर चले गये। उसके शिष्यों ने बाद में मुझे बताया कि बाबा जी ने इससे पहले सिर्फ एक बार साक्षात्कार दिया है और वह भी उस समाचार पत्र के लिए जो उनके एक श्रद्धालु द्वारा चलाया जाता है। इसलिए मुझे खुद को खुशकिस्मत समझना चाहिए।
अपने लेख में जहां मैंने सभी धर्मों में प्यार तथा विश्वास के संदेश को लोगों में फैलाने के लिए साईं बाबा की प्रशंसा की, वहीं मैं उनको देवत्व रूप प्रदान करने के प्रयासों का विरोधी भी था। तब मैंने लिखा था कि साई धर्म का उदय हो रहा है, श्रद्धालुओं को साई पथ का अनुसरण करने को कहा जा रहा है। जब भी वह मिलते हैं तो ‘ओम साईं राम’ कहकर एक-दूसरे का अभिवादन करते हैं। ऐसे अनेक भजनों की रचना की जा रही है, जिसमें उनकी स्तुति की गयी है। पुट्टापर्ती में ऐसे उद्योग पनप रहे हैं जो बाबा की मुद्रिकाएं, विभूति, चित्रों, टेप तथा किताबों को बेचते हैं। सभाओं में श्रद्धालु दो घंटे ‘भगवान बाबा एक विश्व नेता के रूप में’ पर विवेचन पर बिता देते हैं।
मैंने यह कहते हुए अपना लेख समाप्त किया कि साई अभियान विरोधाभासों से भरा है और  जब यह विश्व में फैलेगा तो इसे इस सवालों का सामना करना पड़ेगा कि क्या साईं बाबा हमें स्वर्ग के राजा या साईं के राज्य में ले जायेंगे?
मेरे लेख के विरोध में बाबा के अनुयायियों ने प्रदर्शन शुरू कर दिये। एक पाठक ने लिखा कि अब वह मैगजीन के गटर में अपने हाथ कभी नहीं डालेगा। इसके बाद मैं दो बार बाबा के पास गया एक बार अपनी पत्नी को लेकर, क्योंकि वह उनसे मिलना चाहती थी तथा अगली बार 1996 में स्वर्गीय प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव के साथ पत्रकार के रूप में। उक्त दोनों ही अवसरों पर मुझे उनसे निजी साक्षात्कार का मौका नहीं मिला।
बाद में ऐसे कुछ लेख मैगजीनों तथा समाचारपत्रों में भी प्रकाशित हुए जिनमें उनके आंदोलन पर श्रद्धालुओं का शोषण तथा समलैंगिकता के आरोप भी लगे।
मैंने भी ऐसी एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जब मैं  इंडिया टुडे मैगजीन में कार्यरत था। एक स्कैंडल में एक श्रद्धालु पर बाबा को गोली से मारने के प्रयास करने का आरोप भी लगा था। लेकिन इस बात पर आज भी रहस्य ही बना हुआ है कि बाबा को तब कुछ नहीं हुआ।
उसके काफी समय बाद मुझे समझ आया कि क्यों ऐसे विवादों का असर बाबा के संदेश पर नहीं पड़ता। जब वह अपने श्रद्धालुओं को ‘ओम साईं राम’ कहने को प्रेरित करते थे तो वह अपने भक्तों को एक विचार पर ही केंद्रित कर रहे होते थे, जो कि ध्यान पहली सीढ़ी है। उन्होंने अपने ‘प्रभावशाली’ श्रद्धालुओं को अपने मानसिक विकास के लिए अपने अह्म को खत्म करना सिखाया। वह इस प्रकार अपने श्रद्धालुओं की समस्याएं हल करने में उनकी मदद करते थे। बहुत से लोग इसका श्रेय उनकी चमत्कारिक शक्तियों को देते हैं। उनके अनेक अनुयायी आज उनके दोबारा अवतार लेने की इंतजार में हैं।

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