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बेटियों की सुध लेती रचनाएं

डॉ. मक्खन लाल तंवर की रचनाएं शिल्प के ठोस धरातल पर अपनी पकड़ सशक्त कर जाती हैं। ‘बेटी सतसई’ काव्योक्ति संग्रह भी एक ऐसा ही संग्रह है, जिसमे आज की ज्वलंत समस्या जो राष्ट्रीय चिंता का भी विषय बनी हुई है ‘भ्रूण हत्या’ को उठाया गया है। एक ही विषय लेकर उस पर सात सौ अठ्ठावन (758) काव्योक्ति लिखकर समाज को सन्देश देना वास्तव में ही वन्दनीय कार्य है।
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पुस्तक समीक्षा

सुरेखा शर्मा
डॉ. मक्खन लाल तंवर की रचनाएं शिल्प के ठोस धरातल पर अपनी पकड़ सशक्त कर जाती हैं। ‘बेटी सतसई’ काव्योक्ति संग्रह भी एक ऐसा ही संग्रह है, जिसमे आज की ज्वलंत समस्या जो राष्ट्रीय चिंता का भी विषय बनी हुई है ‘भ्रूण हत्या’ को उठाया गया है।
एक ही विषय लेकर उस पर सात सौ अठ्ठावन (758) काव्योक्ति लिखकर समाज को सन्देश देना वास्तव में ही वन्दनीय कार्य है। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं कि बेटा एक कुल का उद्धार करता है और बेटी दो कुलों का अर्थात माता-पिता के संरक्षण में रहकर अपने अच्छे संस्कारों से मायके का मान रखती है और विवाहोपरांत अपने पति के कुल का।
‘बेटी है अनमोल रत्न/ गौरव करता आज वतन/
जिस घर में कन्या का वास/ उस घर खुशियां और विकास।’
आज हमारे सामने भ्रूण हत्या की समस्या बढ़ती ही जा रही है। जबकि आज ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ अभियान के सार्थक परिणाम मिल भी रहे हैं फिर भी कवि की चिंता वास्तविक है।
कवि ने अपनी सरल भाषा में लिखी काव्योक्तियों के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या रोकने व बेटियों को अधिक से अधिक शिक्षित करने का सुझाव व संदेश दिया है। इस बिगड़ते सामाजिक संतुलन को बचाने के लिए कवि कटिबद्ध है। कवि की चिंता है यदि हम अभी भी सजग नहीं हुए तो अपने बेटों की जीवनसंगिनी ढूंढ़ने के लिए भटकना पड़ेगा। आज आवश्यकता है रूढ़िवादी विचारधारा को बदलने की।
कन्या भ्रूण हत्या एक सामाजिक बुराई ही नहीं, कानूनन अपराध भी है। इसे समूल खत्म ही करना चाहिए। लोगों को जागरूक करने का बीड़ा उठाया है कवि ने। बेटी अपने जीवन को तीन रूपों में जीती है बेटी, बहन, पत्नी बनकर न जाने कितने रिश्तों को जीती है।
लड़कियों की शिक्षा पर भी कवि ने जंग छेड़ी है। लड़की को अशिक्षित रखना भी पाप और हत्या के समान है। दोनों कुलों का तभी नाम रोशन हो सकता है जब माता-पिता बेटी को जन्म देकर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री न समझें अपितु उसे शिक्षित कर उसके भविष्य को भी उज्ज्वल करें।
आज बेटियों से कोई क्षेत्र अछूता नहीं रहा तभी कवि ने बहुत ही सुंदर शब्दों में क्या खूब लिखा है :-
‘भाई छत पर पतंग छुड़ाये/ बहना वायुयान उड़ाये। स्वर्ण पदक बेटी ने पाया/ मात-पिता का मान बढ़ाया।
बेटी डॉक्टर, बनी खिलाड़ी/ मूर्ख हैं जो कहते माड़ी।जन्मो बेटी उसे पढ़ाओ/ कुनबा का कद और बढ़ाओ।’
काव्योक्ति की भाषा अत्यंत सरल, सार्थक व रोचक होने के साथ ही साथ हृदयस्पर्शी भी। ‘बेटी सतसई’ काव्य कृति संग्रह बेटियों के प्रति सकारात्मक सोच उत्पन्न करने में सहायक सिद्ध होगा।
0पुस्तक : बेटी सतसई 0 लेखक : डॉ. मक्खन लाल तंवर 0प्रकाशक : श्री चन्द्रभान ग्राफिक्स, नारनौल  0 पृष्ठ संख्या : 104     0मूल्य : 250.

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