लड्डू दोनों हाथों में
स्वाद
शैलेष
भगवान का प्रिय लड्डू बच्चों को कुछ खास पसंद नहीं आता था, लेकिन जबसे छोटा भीम ने लड्डू खाना शुरू किया है, लड्डू प्रेमी बच्चों की तादाद बढ़ गई है। छोटा भीम एक कार्टून कैरेक्टर है, जो लड्डू खाते ही शक्तिशाली हो जाता है। लड्डू एक विशेष प्रकार की मिठाई है, जो कई तरह से बनाई जाती है। आमतौर पर मोतीचूर के लड्डू सबसे ज्यादा खाए आैर खिलाए जाते हैं। इसके अलावा बेसन, गोंद, सूजी आदि के लड्डू भी बनते आैर मिलते हैं। जिस तरह से लड्डू कई तरह से बनाए जाते हैं, ठीक उसी तरह से कई स्थानों के खास लड्डू प्रसिद्ध हैं। इनकी विशेषताएं भी अलग-अलग हैं।
प्राचीन काल में किसी भी उत्सव के आयोजन में लड्डू का विशेष महत्व होता था। चाहे भगवान को प्रसाद चढ़ाना हो, किसी का स्वागत-सत्कार करना हो या कोई उत्सव हो, लड्डू के बिना यह सब अधूरा रह जाता था। आज के जमाने में भी भगवान को भोग लगाने से लेकर शादी-ब्याह की हर रस्म लड्डू के बिना अधूरी है। हमारे यहां तो अधिकतर मंदिरों में विभिन्न स्वाद के लड्डू मिलते हैं, जो बहुत प्रेम से खाए जाते हैं। इन लड्डुओं की अलग-अलग विशेषता भी है।
लड्डू शब्द की उत्पत्ति
लड्डू शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द लत्तिका या लड्दुका शब्द से हुई जान पड़ती है, जिसका अर्थ है छोटे-छोटे गोल। माना जाता है कि बाद में इस भारतीय मिठाई को लड्डू कहा जाने लगा होगा।
मनेर के लड्डू
दुनिया भर में मशहूर मनेर के लड्डू का इतिहास बेहद पुराना है। इतिहास के जानकार बताते हैं कि पहली बार मुगल बादशाह शाह आलम अपने साथ दिल्ली से ‘नुक्ती के लड्डू’ लेकर मनेर शरीफ पहुंचे थे। यहां लोगों को लड्डू बेहद पसंद आए थे। इसके बाद शाह आलम दिल्ली से कारीगर लेकर फिर इस स्थान पर पहुंचे। इन कारीगरों ने स्थानीय लोगों को लड्डू बनाने के तरीके बताए। धीरे-धीरे स्थानीय कारीगर लड्डू बनाने में निपुण हो गए और आगे चलकर ये लड्डू ‘मनेर के लड्डू’ के रूप में विश्व प्रसिद्ध हो गए। आमिर खान जैसे कई बड़े अभिनेता लड्डू का स्वाद चखने यहां आ चुके हैं। आज मनेर में लड्डू की लगभग सौ दुकानें हैं। लड्डू बनाने के लिए शुद्ध घी, बेसन, चीनी व अन्य सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है। बिहार की खास पहचान में मनेर के लड्डू का स्थान आता है।
मेथी के लड्डू
सुबह-सुबह मेथी का लड्डू खाने से ब्लड-शुगर को कंट्रोल किया जा सकता है। लेकिन इसके पीछे एक सच यह भी है कि यह आपको पूरे दिन के लिए एनर्जी से भरपूर बना देता है। मेथी का लड्डू मेथी से बना होने के कारण सोल्युबल फाइबर का स्रोत होता है। इसलिए यह ब्लड में शुगर के सोखने की प्रक्रिया को कम करता है। मेथी में एमिनो एसिड होता है जो इन्सुलिन के उत्पादन को बढ़ाकर डाइबीटिज कंट्रोल करने में मदद करता है। जिन लोगों का डाइबीटिज कंट्रोल में है, वह दिन में एक लड्डू खा सकते हैं।
तिरुपति के लड्डू
तिरुपति बालाजी में दर्शन के लिए रोजाना लाखों लोग जाते हैं। ये लाखों लोग वहां मिलने वाले लड्डुओं को बड़ी मात्रा में खरीदते हैं। कहा जाता है कि 300 साल से भी ज्यादा समय से इस मंदिर में ये विशेष लड्डू चढ़ाए जाते हैं। इस लड्डू की विशेषता यह है कि ये कई दिनों तक खराब नहीं होते। आंकड़े बताते हैं कि यहां करीब तीन लाख लड्डू रोजाना तैयार किए जाते हैं, इसलिए इनके बनाने की जगह अलग है आैर रसोइये भी। इस रसोई को यहां पोटू कहा जाता है, जहां मंदिर के पुजारी आैर कुछ खास लोगों का जाना ही संभव है। अन्य के जाने पर सख्त पाबंदी है। इस प्रसाद रूपी लड्डू को पाने के लिए भक्तजनों को विशेष सुरक्षा दायरे से होकर गुजरना पड़ता है। यह लड्डू बेसन, किशमिश, काजू, मक्खन आैर इलायची से बना होता है।
गोंद के लड्डू
गोंद के लड्डू सर्दियों में खाए जाते हैं। इनसे ताकत मिलती है आैर सर्दी दूर रहती है। ये लड्डू शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं। इसमें मुख्य रूप से गोंद रहता है, साथ में चीनी, घी, गेहूं का आटा आैर ड्राईफ्रूट्स भी।
सोंठ के लड्डू
सोंठ के लड्डू भी सर्दियों में खाए जाते हैं। इसे खाने से शरीर गरम रहता है ताकि सर्दी-जुकाम आैर बदन दर्द जैसी स्वास्थ्य समस्याएं पास न आएं।
चूरमा लड्डू
चूरमा लड्डू गुजरात आैर राजस्थान में प्रसिद्ध है। गणेश चतुर्थी का आयोजन चूरमा लड्डू के बिना अधूरा माना जाता है क्योंकि गणेश जी को लड्डू पसंद हैं। गुजरात आैर राजस्थान के कई इलाकों में इस लड्डू के भीतर सिक्के छिपाए जाते हैं। बच्चों को कहा जाता है कि वे इसमें से सिक्के निकालें। यह परंपरा कहां से शुरू हुई, इसका तो पता नहीं लेकिन यह जरूर है कि इससे बच्चों को लड्डू खाने के लिए प्रोत्साहन मिलता है। चूरमा लड्डू को गेहूं का आटा, सूजी, घी, गुड़ आैर चीनी से बनाया जाता है। इन लड्डुओं के अलावा, अपने यहां बेसन के लड्डू, आटे के लड्डू, राजगीरे के लड्डू, सूजी के लड्डू, तिल के लड्डू भी काफी चाव से खाए जाते हैं। कानपुर में ठग्गू के लड्डू दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं।
धार्मिक संदर्भ
लड्डू तो सभी देवी-देवताओं को भोग के तौर पर चढ़ता है, लेकिन गणेश चतुर्थी के दिन लड्डू का भोग लगना जरूरी है। ऐसा इसलिए, क्योंकि भगवान गणेश का यह पसंदीदा व्यंजन है। अपने यहां कृष्ण भगवान के बाल रूप को भी लड्डू गोपाल कहा जाता है, क्योंकि उनका यह रूप बेहद मनमोहक है।
शब्द का फेर
दोनों हाथ लड्डू मुहावरा अपने यहां प्रचलित है, जिसका अर्थ है जरूरत से ज्यादा मिल जाना। इसी तरह लड्डू जैसा चेहरा भी कहा जाता है। इसका मतलब है कि चेहरा गोल है। शादी का लड्डू जो खाए पछताए, जो न खाए वह भी पछताए, इस मुहावरे को शादी के संदर्भ में खूब प्रयोग में लाया जाता है।
लड्डू का रिकॉर्ड
महाराष्ट्र के पुणे में लड्डुओं की मांग को देखते हुए पूना मर्चेंट चेम्बर ने एक ही दिन में ढाई लाख लड्डू बनाने का रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज करा लिया है। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में इस दुकान का नाम दर्ज है। यह रिकॉर्ड दिवाली के मौके पर बनाया गया।
ओट्स के लड्डू
ओट्स फायदेमंद होते हैं। अमूमन लोग इसे दूध के साथ ही खाते हैं। इस बार आप ओट्स के लड्डू बनाने की कोशिश कीजिए। खास बात तो यह है कि इसमें चीनी नहीं डाली जाती है। स्वास्थ्य के साथ स्वाद के अदभुत मेल वाले इस लड्डू को बनाना मुश्किल नहीं, बल्कि आसान है।
सामग्री – 1/4 कप ओट्स, स्वादानुसार खजूर, पिस्ता आैर अखरोट।
विधि – गैस पर कढ़ाही गरम करें, इसमें ओट्स, पिस्ता और अखरोट को 5 मिनट तक अच्छे से भूनें। आंच को धीमा ही रखें और इसे लगातार चलाते रहें। जब यह हल्का ठंडा हो जाए तब इसे पीस कर पाउडर बना लें। इसमें खजूर मिक्स कर लें और दोबारा पीसें। इसे एक थाली में निकाल कर अपने हाथों से मिक्स करें और लड्डू बनाएं। इस लड्डू को डिब्बे में बंद करके कई दिनों तक खाया जा सकता है।