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ठठेरा कला को मिलेगी अब अंतरराष्ट्रीय पहचान

अंतरराष्ट्रीय संगठन यूनेस्को ने पीतल और तांबे की धातुओं के हाथों से बर्तन बनाने की सदियों से चली आ रही कला को लुप्त होने से बचाने का बीड़ा उठाया है। अमृतसर के जिला जंडियाला गुरु में ठठेरे सदियों से पीतल और तांबे के बर्तनों को हाथों से तैयार करते हैं।
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अमृतसर, 14 सितंबर (एजेंसी)
अंतरराष्ट्रीय संगठन यूनेस्को ने पीतल और तांबे की धातुओं के हाथों से बर्तन बनाने की सदियों से चली आ रही कला को लुप्त होने से बचाने का बीड़ा उठाया है। अमृतसर के जिला जंडियाला गुरु में ठठेरे सदियों से पीतल और तांबे के बर्तनों को हाथों से तैयार करते हैं। यह कला अब विलुप्त होने के कगार पर है जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के लिए यूनेस्को ख़ास परियोजना ‘यूनेस्को इंटेनजिबल कल्चरल हेरिटेज लसिट’ द्वारा जंडियाला गुरु की बर्तन बनाने की इस कला को उत्साहित करने के साथ अंतरराष्ट्ररीय स्तर पर इसका प्रचार और प्रसार करेगा। विलुप्त हो रही कलाओं और विरासत को संभालने के प्रोजेक्ट के तहत काम करने वाले दिल्ली के श्रीराम कॉलेज और यूनाइटेड सिख संस्था से जुड़ी श्रीमती डाली सिंह, कीर्ति गोयल और उनके अन्य साथी कल जिला उपायुक्त कमलदीप सिंह संघा से मिले। श्रीमती डॉली ने बताया कि यूनेस्को द्वारा विरासतों और लुप्त हो रही कलाओं को संभालने के लिए जो प्रयत्न किये जा रहे हैं उसमें जंडियाला गुरु के ठठेरों की कला को भी शामिल किया गया है। यूनेस्को की तरफ से जंडियाला गुरू में ठठेरों द्वारा हाथों से तांबे और पीतल के बर्तन बनाने की कला को उत्साहित किया जायेगा जिससे यह कला और भी आगे बढ़ सके।
संघा ने प्रोजेक्ट टीम को हर तरह की मदद का भरोसा दिलाते हुए कहा कि यह बहुत सम्मान वाली बात है कि अमृतसर जिले की कला को अंतरराष्ट्ररी स्तर पर उत्साहित करने के लिए यूनेस्को की तरफ से प्रयत्न किये जा रहे हैं।

बहुत कम परिवार इस कला में
जंडियाला गुरु पूरे देश में पीतल और तांबे के हाथों से तैयार किए बर्तनों के लिए अपनी अलग पहचान रखता है। यहां हाथ से बर्तन बनाने वाले बहुत ही बढि़या कारीगर हैं और इनका यह काम पीढि़यों से चलता आ रहा है। कारीगर पानी की गागर, परात, डोंघे, पतीले, तांबे की बड़ी देग और अन्य पीतल और तांबे के बर्तन बड़े ही आकर्षक तरीके से बनाते हैं। समय की मार इस कला पर भी पड़ी है और अब बहुत कम परिवार इस कला में हैं।

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