नीरोत्तमा शर्मा
काव्य जगत में नवीनता की किरणें बिखेरते हुए संवेदनशील, प्रयोगधर्मी साहित्यकार धर्मपाल साहिल की लघु कविताएं ‘ख्वाहिशों के पंखों’ पर सवार हो कर पाठकों के दिलों में उतर जाती हैं। 54 शीर्षकों से सुसज्जित 208 बानगियों में भावप्रवण उद्गारों से ओतप्रोत ये लघु कविताएं जीवन दर्शन को सरल व सरस ढंग से बयां करती हैं। जिन्दगी, तुझसे बस इतना ही है गिला। मैं उस तपती हुई दोपहर से /ढलती हुई शाम को मिला।
मानव मन रूपी सागर के भावों रूपी मोतियों को शब्दों में पिरोना ही कविता है और साहिल इसमें सिद्धहस्त हैं- ‘बैठ कर साहिल पर दरिया का नज़ारा करने वालों/ कभी दरिया का दर्द, दरिया में उतर कर तो देखो’ या ‘बारिशें बरसात में होती हैं मगर/ गम वह सावन है जिसके बरसने का कोई मौसम नहीं होता।’
जीवन की गहन सच्चाइयों को कवि अपने अनुभवों के शब्दों में पिरो कर क्षणिकाओं के रूप में प्रस्तुत करता है- ‘तूफां से लड़ते वक्त तो/ मैं उसके साथ था/ साहिल पे उसके हाथ में/ किसी और का हाथ था।’ प्रकृति से लिए गए बिम्बों से भाव प्रवणता से सृजन सौंदर्य बढ़ा देते हैैं- ‘एक चांद रात भर/ मेरे साथ रहा/ सुबह होते ही ओझल हो गया आंखों से/ दिल के ख्वाब की तरह।’
काव्य संग्रह की एक-एक कविता हीरे की कणी की तरह पाठक के मन को रोशन कर देती है। वह एक बालक की भान्ति आनन्दित हो उठता है- ‘हवा दरखत के पत्तों से सरसरा के गुजरती है/ अपना दिल खोल देती है/ पत्ते, बन कर बच्चे, खिलखिला कर तालियां बजाने लगते हैं।’
पुस्तक : ख्वाहिशों के पंखों पर लेखक : डॉ. धर्मपाल साहिल प्रकाशक : अयन प्रकाशन, नयी दिल्ली पृष्ठ : 124 मूल्य : रु.300.