जयंतीलाल भंडारी
यकीनन यह कोई छोटी बात नहीं है कि इस समय जब वैश्विक मंदी की चुनौतियों के बीच दुनिया के अधिकांश देशों की विकास दर घट गई है, तब दुनिया के प्रमुख आर्थिक और वित्तीय संगठन भारत की वृद्धि दर के अनुमान को बढ़ाते हुए दिखाई दे रहे हैं। विश्व बैंक ने 6 दिसंबर को चालू वित्त वर्ष 2022-23 के लिए भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि का अनुमान पहले के 6.5 फीसदी से बढ़ाकर 6.9 फीसदी कर दिया है। विश्व बैंक ने देश की अर्थव्यवस्था में बाहरी चुनौतियां झेलने की क्षमता और जुलाई-सितंबर, 2022 की तिमाही में मजबूत वृद्धि को इसका कारण बताया है।
विश्व बैंक की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘वैश्विक स्तर पर प्रतिकूल घटनाक्रम के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था जुझारू क्षमता दिखा रही है और मजबूत वृहद आर्थिक बुनियाद अन्य उभरते बाजारों की अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारतीय अर्थव्यवस्था को इसे बेहतर बनाती है।’ रेटिंग एजेंसी फिच ने अपनी ताजा वैश्विक आर्थिक परिदृश्य रिपोर्ट में कहा है कि 2022-23 में वैश्विक जीडीपी की वृद्धि महज 1.4 फीसदी रहेगी। पहले उसने 1.7 फीसदी वृद्धि का अनुमान लगाया था। हालांकि उसने भारत के लिए वित्त वर्ष 2023 के जीडीपी वृद्धि अनुमान को 7 फीसदी पर बरकरार रखा है।
गौरतलब है कि 30 नवंबर को राष्ट्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2022-23 की जुलाई से सितंबर की दूसरी तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर 6.3 फीसदी रही, चीन में इसी दौरान विकास दर 3.9 फीसदी रही। वैश्विक मंदी के दौर में भारत की विकास दर चीन की तुलना में डेढ़ गुना और दुनिया में सबसे अधिक है। जीडीपी के नए आंकड़ों के मुताबिक निर्माण, सेवा और कृषि क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। कृषि क्षेत्र से अर्थव्यवस्था को दम मिला है।
लेकिन अभी वैश्विक सुस्ती के कारण देश द्वारा निर्यात बढ़ाने और व्यापार घाटे की चुनौती को कम करने के लिए रणनीतिक कदम उठाए जाने की जरूरत बनी हुई है। गौरतलब है कि इस समय दुनिया में वैश्विक मंदी के डर से घटी हुई वैश्विक मांग का असर भारतीय निर्यात पर भी दिखने लगा है। जहां यूरोप और अमेरिका सहित अधिकतर विकसित देशों के केंद्रीय बैंकों द्वारा मौद्रिक नीतियों को सख्त बनाए जाने से लोगों के हाथों में गैर-जरूरी खर्च के लिए कम धनराशि होने से भारतीय निर्यात की मांग कम हुई है, वहीं विकासशील देशों में लोगों की आमदनी में भारी कमी के कारण भी भारत से निर्यात में बड़ी गिरावट आई है और ऐसे में भारत का व्यापार घाटा बढ़ा है ।
चूंकि आने वाले महीनों में वैश्विक आर्थिक मंदी और भू-राजनीतिक तनाव में सुधार की तत्काल संभावनाएं कम हैं, अतएव भारत के लिए निर्यात के लिहाज से हालात अत्यधिक चुनौती भरे हो सकते हैं। वाणिज्य मंत्रालय की ओर से हाल ही में जारी आंकड़ों के अनुसार देश से वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात अक्तूबर, 2022 में 16.65 फीसदी घटकर 29.78 अरब डॉलर रहा, जो 20 माह में सबसे कम है। भारत से जिन 10 देशों को सबसे अधिक निर्यात किए जाते हैं, उनमें से 7 देशों अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, चीन, बांग्लादेश, ब्रिटेन, सऊदी अरब और हांगकांग में भारत से निर्यात में भारी कमी आई है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि अप्रैल-अक्तूबर, 2022 की अवधि में भारत का व्यापार घाटा बढ़कर 173.46 अरब डॉलर हो गया।
गौरतलब है कि चीन में शून्य कोविड नीति और रियल एस्टेट संकट के कारण भारत से निर्यात में चिंताजनक कमी आई है और चीन से भारत का व्यापार घाटा तेजी से बढ़ा है। हाल ही में चीन के कस्टम विभाग की ओर से प्रकाशित भारत-चीन के द्विपक्षीय व्यापार के आंकड़ों के मुताबिक दोनों देशों के बीच जनवरी, 2022 से सितंबर 2022 के बीच नौ महीनों के दौरान द्विपक्षीय कारोबार 103.63 अरब डॉलर का हुआ है। इस अवधि में चीन से भारत के लिए निर्यात 89.66 अरब डॉलर रहा है। इसमें 31 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। वहीं, इस अवधि में भारत से चीन के लिए केवल 13.97 अरब डॉलर का निर्यात हुआ है और इसमें 36.4 प्रतिशत की गिरावट रही है। ऐसे में भारत का व्यापार घाटा बढ़कर 75.69 अरब डालर रहा है। पिछले वर्ष दोनों देशों के बीच पूरे वर्ष में 125 अरब डॉलर का द्विपक्षीय कारोबार हुआ था।
खासतौर से एक ऐसे समय में जब डॉलर की तुलना में रुपया निचले स्तर पर दिखाई दे रहा है और देश के विदेशी मुद्रा भंडार में भी बड़ी कमी आई है, चीन को भारत से निर्यात घटना और बढ़ता व्यापार घाटा बढ़ना देश की बड़ी आर्थिक चुनौती है। अब एक ओर चीन से आयात घटाने के लिए, तो दूसरी ओर भारत द्वारा जी-20 की कमान संभालने के बाद मेक इन इंडिया और अब मेक फॉर ग्लोबल की डगर तेजी से आगे बढ़ाकर चीन सहित दुनिया के विभिन्न देशों को निर्यात बढ़ाने के लिए नए रणनीतिक कदम जरूरी हैं।
हमें देश की नई लॉजिस्टिक नीति 2022 और गति शक्ति योजना की अभूतपूर्व रणनीतियों से भारत को आर्थिक प्रतिस्पर्धी देश के रूप में तेजी से आगे बढ़ाकर देश की अर्थव्यवस्था को निर्यात प्रधान अर्थव्यवस्था बनाना होगा। हमें दुनिया की बढ़ती हुई खाद्यान्न जरूरतों के मद्देनजर खाद्यान्न निर्यात और बढ़ाने होंगे। कृषि मंत्री मंत्रालय के मुताबिक वर्ष 2021-22 के दौरान देश से 50 अरब डॉलर से अधिक के रिकॉर्ड कृषि निर्यात हुए हैं। अब सरकार देश में ज्यादा मूल्य और मूल्यवर्धित कृषि निर्यात से संबंधित उद्योगों और खाद्य प्रसंस्कृत उत्पादों के मैन्युफैक्चरिंग हब बनने की संभावनाओं को भी मुट्ठियों में लेने की रणनीति के साथ आगे बढ़ रही है। भारत द्वारा यूएई और ऑस्ट्रेलिया के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) को मूर्तरूप दिए जाने के बाद अब यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, कनाडा, खाड़ी सहयोग परिषद (जीसीसी) के छह देशों, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका और इस्राइल के साथ एफटीए के लिए प्रगतिपूर्ण वार्ताएं तेजी से पूरी करनी होंगी। इससे भी भारत के निर्यात बढ़ाने और व्यापार घाटा कम करने के प्रयासों को बड़ा आधार मिलेगा।
यह बात भी महत्वपूर्ण है कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा हाल ही में एक नवंबर को डिजिटल रुपये की जो प्रायोगिक शुरुआत हुई है, उसे अब शीघ्रता से विस्तारित करने और विगत 9 नवंबर को विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) द्वारा निर्यातकों काे निर्यात लाभों का दावा रुपये में करने में सक्षम बनाए जाने संबंधी जो महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं, उनके भी कारगर क्रियान्वयन से भारत के निर्यात बढ़ाने होंगे। रुपये में व्यापार बढ़ाकर व्यापार घाटे की चुनौती को कम किया जा सकेगा।
हमें अभी वर्ष 2022 के आगामी तीन महीनों में वैश्विक मंदी की चुनौतियों के बीच निरंतर सतर्कता के साथ घरेलू बाजार को आगे बढ़ाना होगा। हमें देश से निर्यात बढ़ाने के लिए अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण की रफ्तार तेज करने, लॉजिस्टिक की लागत कम करने, शोध और नवाचार तथा श्रमशक्ति को नई डिजिटल कौशल योग्यता से सुसज्जित करने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ना होगा। हम उम्मीद करें कि आगामी वर्ष 2023 में जी-20 की अध्यक्षता की कमान रखते हुए भारत मेक इन इंडिया, मेक फॉर ग्लोबल और मैन्युफैक्चरिंग हब की डगर पर आगे बढ़कर निर्यातों के ऊंचे लक्ष्यों को प्राप्त करते हुए विदेश व्यापार घाटे में भी कमी लाते हुए दिखाई दे सकेगा।
लेखक ख्यात अर्थशास्त्री हैं।