पुष्परंजन
पिछले दिनों कांग्रेस नेता राहुल गांधी की कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक चलने वाली भारत जोड़ो यात्रा चर्चाओं में रही है। लेकिन एक और बात लगातार उत्सकुता का विषय बनी रही कि कड़ाके की सर्दी में राहुल गांधी कैसे एक टी-शर्ट में चल रहे हैं। राहुल गांधी से ये रहस्य जानने के लिये पत्रकारों ने बार-बार सवाल किये। हालांकि, राहुल गांधी ने एक दार्शनिक अंदाज में कहा कि लोग वस्त्रहीन गरीबों के बारे में ऐसे सवाल क्यों नहीं पूछते। इस दौरान किसी ने कहा कि यह ‘स्पेशल टी शर्ट’ है और कोई कुछ और बोला। इस बीच उनकी बहन एवं कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा, ‘मेरे भाई ने सत्य का कवच पहना है। यही कवच उन्हें ठंड से बचा रहा है।’ उन्होंने कहा कि सत्ता की ओर से पूरा जोर लगाया गया, सरकार ने हजारों करोड़ रुपये खर्च किए। ताकि इनकी छवि खराब की जा सके, लेकिन वह सच्चाई से पीछे नहीं हटे। इस बीच, कुछ मौकों पर उन्होंने उत्सुकता बढ़ाते हुए कहा कि रक्त जमाती सर्दी में एक टी-शर्ट में चलने का रहस्य कभी बताएंगे। बहरहाल, उनके इस रहस्य से पर्दा उठाने का प्रयास किया है दैनिक ट्रिब्यून ने। वाइस ऑफ जर्मनी व यूरोपीय देशों में काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार पुष्परंजन कोशिश कर रहे हैं यूरोपीय देशों में प्रचलित इस प्रवृत्ति के रहस्य से पर्दा उठाने की।
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बस थोड़ा तेज़! अच्छा …। ‘मैं यह नहीं कह रहा हूं कि आप ऊपर की ओर चलने के बाद, नीचे की ओर चलें। रनिंग किट पहने हाइकर होने का मतलब यह है कि खुले दिमाग के साथ-साथ क़दमों को संतुलित रखना होगा।’ जो तेज़ रफ्तार वाले पैदल यात्री हैं, उनके लिए ऐसा निर्देश मिलते रहना आल्प्स की वादियों में आम है। रनिंग किट के साथ वो हाफ टी शर्ट में नमूदार होते हैं। जूते वही, जो रनर पहनते हैं। दबाव के बाद पैरों को पुश करने वाले। हाफ शॉट्स में हों, या फिर स्किन टाइट ट्राउजर में, फुल बाजू वाले कपड़ों में शायद ही वो दिखते हैं। पहली नज़र में सवाल उठेगा, कैसे इंसान हैं ये? आल्प्स की बर्फीली वादियों में इन्हें ठंड क्या ज़रा भी नहीं लगती?
जब तक पगडंडी बहुत साफ नहीं है, तब तक नीचे की ओर दौड़ना जोखिम भरा है। तेज चलिये, मगर एकदम से दौड़िये नहीं। यह रूल तब लागू होता है, जब पगडंडी सीधी खड़ी, पथरीली हो जाती है। यदि आप गिरते हैं, या टखने के बल लुढ़कने से डरते हैं, तो समझिए गये काम से। आल्प्स हिमालय नहीं है। आल्प्स की वादियां आम तौर पर चिकनी और बहुत खड़ी नहीं। चट्टानों और चीड़ के पेड़ों के साथ इसे प्रकृति ने उपहारस्वरूप दिया है, जो ट्रेल रनर के लिए वरदान जैसा है। दिलचस्प और भय रहित धावक बनाए रखने के लिए। हिमालय तो मैं बचपन से देखता रहा, इसलिए आल्प्स से तुलना करने की आसानी होती है। हिमालय डराता भी है, आल्प्स सौंदर्यबोध के साथ सैर को प्रेरित करता है।
फ्रांस, स्विट्ज़रलैंड, इटली और ऑस्ट्रिया वाले गर्व करते हैं कि गिरिराज आल्प्स हमारे अपने हैं। मगर, स्लोवेनिया, लिश्टेंन्सटाइन और मोनाको भी आल्प्स की तीन लाख वर्ग किलोमीटर की परिधि में आने वाले देश हैं। इन देशों में पर्यटन उद्योग कई रूपों में पनपा है, जिसमें वॉकिंग ट्रेल भी है। चामोनिक्स से शुरू और सर्कुलर में समाप्त 168 किलोमीटर का द टुअर द मोंट ब्लांक (टीएमबी), फ्रांस, स्विट़्ज़रलैंड, इटली को छूता है। ‘टीएमबी’ की दास्तां काफी पुरानी है। स्विस भूविज्ञानी होअर्स बेनेडिक्ट द सौसुरे ने 1767 में इस मार्ग को ढूंढा था। टीएमबी का पैदल सफ़र 10 से 11 दिनों में पूरा होता है। लेकिन इससे अलहदा, ‘मेराथन मोंट ब्लांक’ में हिस्सा लेने वाले प्रतियोगियों को केवल 20 घंटे में फतह हासिल करनी होती है।
‘मेराथन दु मोंट ब्लांक’ में दौड़ लगाने वाले अपने देश व इलाके के लिए हीरो होते हैं। अधिकतर प्रतिभागियों को आप बनियान-हाफ पैंट में देखेंगे, तो कुछ हाफ टी शर्ट में। अल्पाइन के पेड़ों की कतार जहां ख़त्म होती, उसके बाद की वादियां यदि बर्फ से ढकी हैं, तो तापमान का अंदाज़ा आप सहज लगा सकते हैं। जून में चीड़ के जंगल वाले इलाके में 11 डिग्री तापमान होता है, तो बर्फीली वादियों में माइनस डिग्री मानकर चलिये, जहां से ‘टुअर द मोंट ब्लांक’ के यात्रियों को गुज़रना होता है।
स्लोवेनिया में प्रसिद्ध है जूलियाना ट्रेल। क्रांस्का गोरा से सर्कुलर का सफ़र 270 किलोमीटर का है। जूलियन आल्प्स भी बोलते हैं इस इलाके को। अल्पाइन के पेड़ों से आच्छादित। मनभावन। क्रांस्का गोरा के पास खू़बसूरत जस्ना झील है। उससे होते हुए 15वीं सदी में बसा पहाड़ी नगर रोदोवल्ज़ीका, पोदब्रादो, स्लोवानिया की सबसे बड़ी लेक बोहिन्ज और सोका रीवर होते हुए पैदल यात्री माउंट त्रिगलाव का दीदार करते हैं।
ऑस्ट्रिया में प्रसिद्ध है, ‘द इगल वाक।’ नाम के अनुरूप यात्रियों की गरुड़ दृष्टि 413 किलोमीटर की लंबी यात्रा में नार्थ तिरोल की वादियों पर पड़ती है। इस इलाक़े में कुछ किलोमीटर चलने का सौभाग्य मुझे भी मिला था। इगल वॉक दो हिस्सों में बंटा हुआ है। 24 दिनों की पैदल यात्रा का एक हिस्सा नार्थ तिरोल से ग्रोस वेंडिगर की ऊंचाई को छूते हुए गुजरता है। दूसरी, ब्रांडेनबर्ग आल्प्स, रोफान व कारवेंडेन माउंटेन व ग्रासग्लोक्नर के शिखर तक की दुर्गम यात्रा। ग्रासग्लोक्नर, हिमगिरि का उत्तुंग शिखर है, जिसपर ऑस्ट्रिया गर्व करता है।
‘ज़रमेट सर्कुलर’ से प्रसिद्ध 154 किलोमीटर की एक और यात्रा स्विट्ज़रलैंड व इटली के बीच आयोजित होती है। टोब्लरवन और मैटरहॉर्न के पिघलते शिखर की रफ्तार पर कहावत है कि आपके मुंह में चॉकलेट इतनी तेज़ी से मेल्ट नहीं होता, जितना कि यहां आच्छादित बर्फ़। दो ग्लेशियर एक-दूसरे को कैसे क्रास करते हैं, यह देखना ट्रेल यात्रियों का मंज़िल-ए-मक़सूद होता है। फ्रांस और स्वीट्ज़रलैंड के बीच 213 किलोमीटर का ‘होयटे रूट’ है। माउंट ब्लांक से मैटरहार्न की राह में खूबसूरत वादियों को देखना पैदल यात्रियों को पसंद है।
‘होयटे रूट’ में 11 पर्वतमालाओं को देखने का अवसर मिलता है। ऑस्ट्रिया-इटली और स्लोवानिया की यात्रा वाली ‘द आल्पे-आद्रिया ट्रेल’ भी रोचक है। 750 किलोमीटर लंबी इस यात्रा में सबसे आकर्षण का केंद्र है, ग्रोसनित्ज़ वाटरफॉल। ऑस्ट्रिया के होहेटौअर्न राष्ट्रीय उद्यान में ग्रोसनित्ज़ जल प्रपात की धारा वेनिस के समुद्र में समाहित होती है। सोचिए, जो लोग होहेटौअर्न से वेनिस के संमदर तक 285 किलोमीटर लंबी इस धारा को देखते-निहारते पैदल चलते होंगे, उनका अनुभव कितना शानदार और रोमांचक होता होगा?
इटली वाले आल्प्स की वादियों में सैर का एक और ठिकाना है, ‘अल्ता विया’। 120 किलोमीटर की यह यात्रा डोबियाको से शुरू और बेल्लुनो में समाप्त होती है। उत्तरी इटली में अवस्थित डोलोमाइट्स आल्प्स में बनाई सुरंगों का अपना इतिहास है। प्रथम विश्वयुद्व के दौरान ऑस्ट्रिया और इटली दोनों ने इस इलाके पर आधिपत्य के लिए सुरंगों का निर्माण किया था, ताकि उनकी सेनाएं और बख्तरबंद गाड़ियां, लक्ष्य तक पहुंचें। गेलेरिया लागाजुओई एक प्रसिद्ध सुरंग है, जिसे इतालवी सेना ने पहाड़ को भेदकर बनाया था। यहां ट्रेल करने वाले इसे ‘फेरेटा रूट’ भी कहते हैं। इसे देखकर आल्प्स के इस इलाक़े की भू-सामरिक स्थिति का अंदाज़ा होता है।24 मई 1915 से 4 नवंबर 1918 तक चलने वाले ‘द व्हाइट वार’ का इतिहास बड़ा भयावह रहा है, जो फेरेटा रूट पर लड़ा गया। 1917 में प्रसिद्ध दैनिक ‘न्यूयार्क वर्ल्ड’ के वार कॉरेस्पोंडेंट ई. अलेक्ज़ेंडर पॉवेल ने लिखा, ‘किसी भी मोर्चे पर ऐसा नहीं देखा था। न तो मेसोपोटामिया के धूप से झुलसे मैदानों पर, न ही जमे हुए माजुरियन दलदल में, न ही फ्लैंडर्स के खून से लथपथ कीचड़ में। लड़ने वाला आदमी इतना कठिन जीवन व्यतीत करता यहीं के युद्ध मैदान में देखा। दुनिया की इस छत पर।’ इस युद्ध में साढ़े सात लाख इटैलियन सैनिक मारे गये थे, अंततः जीत इटली की ही हुई थी। मतलब ये, कि आज की तारीख़ में इन इलाकों में जो लोग पैदल चलते हैं, वो वहां न केवल प्रकृति, स्थानीय संस्कृति, बल्कि इतिहास से भी वाबस्ता होते हैं।
जर्मनी-ऑस्ट्रिया और इटली के बीच 110 किलोमीटर की ‘ट्रांस-अल्पाइन क्रॉसिंग’ है, जिसकी शुरुआत जर्मनी के जीमुंड से होती है, और सबसे आखि़र में इटली के स्टर्जिंग में ट्रैकर लंगर डाल देते हैं। लेकिन इस 110 किलोमीटर के सफ़र में सप्ताह भर का समय लगता है। स्वीट्ज़रलैंड में सेंट मोरिट्ज़ और सेंट जिंगोल्फ के बीच 695 किलोमीटर का ट्रेल है, जो अल्पाइन के जंगलों की ख़ूबसूरती निहारने के लिए प्रसिद्ध है। 13 चरणों की इस यात्रा में आप इन इलाक़ों के स्थानीय लोगों से मिलेंगे, चार हज़ार मीटर की ऊंचाई वाले लेगिनहार्न पर्वत, विसमिस और सास वेली का दीदार करेंगे।
आप पूछेंगे, आल्प्स में सबसे लंबा सफ़र कौन सा है? वह है, ‘विया अल्पीना’, जो ‘रेड ट्रेल’ के नाम से प्रसिद्ध है। 2518 किलोमीटर का लंबा सफ़र स्लोवेनिया, इटली, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, फ्रांस, स्विट़्ज़रलैंड, लिश्टेंन्सटाइन और मोनाको जैसे नौ देशों से गुज़रते हुए तय करना होता है। 100 दिनों की इस पैदल यात्रा में 342 पड़ाव हैं। इतने लंबे सफ़र में एक आम इंसान का तो कचूमर निकल जाता होगा। यहां के लिए इंसान में मज़बूत इच्छा-शक्ति के साथ-साथ ‘अश्व-शक्ति’ भी भरपूर होनी चाहिए। वरना, यात्रा बीच में ही समाप्त।
पैदल धावकों की दुनिया
ये आम इंसानों से अलग हैं। साधना है, लंबे सफ़र पर तेज़ रफ़्तार में निकलना। इनका खान-पान संतुलित, उससे तय जो अत्यधिक ऊर्जा देती हो। मोट ब्लांक मेराथन में बहुचर्चित रहे डेविड मागिनी ने एक पत्रकार से कहा था, ‘चलते रहे तो बनियान, हाफ टी शर्ट में ज़रा भी ठंड नहीं लगती। रुक गये, तो थोड़ी देर बाद सर्दी का अहसास होने लगता है। ऐसे में गर्माइश वाले कपड़े नहीं पहने, तो एक्सपोज़र का ख़तरा रहता है।’ मतलब शरीर चलायमान है, तो ठंड का अहसास ज़रा भी नहीं होता। यही वो टिप्स है, जो तेज़ चलने वालों को उनके क्लब वाले दे देते हैं। 2022 के ‘मेराथन दु मोंट ब्लांक’ में हिस्सा लेने वाले चर्चित नामों में टीम सोलोमन इटली के डेविड मागिनी ने स्पेन के केलीयन योर्नेट बरगादा की लकीर छोटी कर दी थी।
35 साल के केलीयन योर्नेट जाने-माने ‘लांग डिस्टेंस ट्रेल रनर’ हैं। 2019 में मोंट ब्लांकअल्ट्रा ट्रेल मेराथन के विजेता। 22 मई 2017 को केलीयन योर्नेट ने एवरेस्ट बेस कैंप से शिखर तक पहुंचने में केवल 26 घंटे लगाये थे। केलीयन योर्नेट ने सप्लिमेंटल ऑक्सीजन के बिना एवरेस्ट की चोटी पर पहुंच कर सबको चकित किया था। केलीयन योर्नेट स्पेन के काटालान इलाके से हैं। उनकी बहन नाइला योर्नेट और पत्नी एमिली फोर्सबर्ग स्काई रनिंग में हिस्सा ले चुकी हैं। अब जिस घर के बाक़ी सदस्य रनर रहे हों, वहां का वातावरण थोड़ा भिन्न हो जाता है। 400 से 600 कैलोरी शरीर को मिल जाए, ऐसा खाना एक माउंटेन रनर को चाहिए होता है। विटामिन के लिए फल-सब्जियां उनके आहार में शामिल हैं। फिश, मुर्गा, अंडे, बिन्स, दाल, सोया, पनीर, एवोकाडो और सूखे मेवे, कार्बोहाइड्रेट के लिए चावल-रोटी, पास्ता, ओटमिल। इसके अलावा ढेर सारा सलाद उस व्यक्ति को चाहिए होता है, जिसे लंबी दूरी पैदल तय करने की लत है। जो लोग प्रोफेशनल रनर होते हैं, उनके खानपान का समय, सोने की अवधि और संतुलित आहार निर्धारित होता है।
रनर क्लब और रोज़गार के रास्ते
आप एक अच्छे धावक, लंबी दूरी के मेराथन यात्री बनने के ख़्वाहिशमंद हैं, तो उसके लिए रनर क्लब ज्वाइन करना ज़रूरी होता है। यूरोप में समुद्र और पहाड़ों के वास्ते अलहदा रनर क्लब हैं, जिनके रास्ते भी जुदा-जुदा हैं। वहां लगभग हर देश में रनर क्लब हैं, जिन्हें सरकारों की सहायता मिलती रहती है। स्विस हाइकिंग ट्रेल फेडरेशन की छतरी तले कई सारे क्लब जुड़े हैं। स्वीट्ज़रलैंड के जितने कैंटोन हैं, वहां के ट्रेल संचालक ‘स्विस हाइकिंग ट्रेल फेडरेशन’ से संबद्ध हैं। यहां तक कि लिश्टेंन्सटाइन के रनर क्लब वालों ने ख़ुद को इससे जोड़ रखा है। स्विस हाइकिंग ट्रेल फेडरेशन का काम व्यापक है। जो ट्रेल वाले इलाक़े हैं वहां के पड़ावों को देखना, मेराथन यात्री बीच रस्ते यदि दुर्घटनाग्रस्त हुए अथवा बीमार पड़ गये तो उनकी देखरेख, इंश्योरेंस वालों से कोआर्डिनेशन खाना-पीना, ट्रांस्पोर्ट सबकुछ का ख़्याल इन्हें रखना होता है। सरकार ने स्विट्ज़रलैंड मोबिलिटी प्रोजेक्ट चला रखा है, जिसके ज़रिये रनर क्लबों की समस्याओं का निदान होता है। ‘नॉन मोटराइज्ड रूट’ को चाक-चौबंद रखने, साथ में दूसरे देशों के हिस्सेदारों से समन्वय इस परियोजना से जुड़े लोग स्थापित करते हैं। ओरबासानो आल्प्स का ही इलाका है। भारत में 2004 में हो रहे आम चुनाव के हवाले से मैं वहां माइनो परिवार की खोज-खबर के वास्ते निकल पड़ा था। ओरबासाना की स्थानीय गतिविधियों में रनर क्लब तब भी नमूदार थे। जो लोग छुट्टियां बिताने पहाड़ों की तरफ जाना तय करते, उनकी गतिविधियों में पहाड़ी मार्ग में पैदल रनिंग या साइक्लिंग ज़रूर शामिल होता। इटली का ओरबासानो तुरिनो प्रांत में आता है, जहां के ट्रैकिंग क्लब शुरू से काफी सक्रिय रहे हैं। उत्तरी इटली का तूरिनो आल्प्स के निस्बतन,ट्रैकिंग क्लबों का अधिकेंद्र बना हुआ है। कुल 23 हज़ार सदस्य संख्या वाला ‘ट्रेल इसरे’, 27 हज़ार सदस्यों वाला ‘सेंतियरो देल विआदांते’, 56 हज़ार सदस्यों वाला ‘विया फ्रांसीगेना’, 1 लाख 13 हज़ार सदस्यों वाला ‘कामिनो दे सांतियागो’, 35 हज़ार सदस्यों वाला ‘रनिंग एंड ट्रेल’, 4.8 हज़ार सदस्यों वाला ‘ट्रेल रनिंग इटालिया’ जैसे चंद नामों की चर्चा कर रहा हूं। सोशल मीडिया के कालखंड में रनर क्लब कुकुरमुत्ते की तरह इटली क्या, समस्त यूरोप में फैल चुके हैं। ओरबासानो से लगे आल्प्स में नौ मशहूर वॉक ट्रेल हैं। ‘तिर वॉक ट्रेल’, ‘कोरसा दोपो रिवाल्ता दी तोरिनो’, ‘हाइकिंग लूप विएनास्को’ स्थानीय युवाओं को पहाड़ों में पदयात्री के वास्ते तैयार करते हैं। हाइकिंग ट्रेल दरअसल, एक बड़े उद्योग का रूप ले चुका है, जिसमें भागीदारों के लिए विशेष वस्त्र निर्माण से लेकर पैक्ड फूड सप्लाई, टेंट, टैक्सी, होटल तक के कारोबारी नोट छाप रहे हैं। आल्प्स ने भरपूर सौंदर्य दिया है, तो रोज़गार के रास्ते भी अनेक बनाये हैं।
लेखक ईयू एशिया न्यूज के नयी दिल्ली संपादक हैं।