पारुल आनंद
घरों की सजावट के लिए नक्काशी किये हुए लकड़ी के फर्नीचर व दरवाजे-खिड़कियां हमेशा ट्रेंड में रहते हैं। वहीं नक्काशी की दस्तकारी से तैयार मूर्तियों, कंघियों, खिलौनों, ज्यूलरी बॉक्स समेत छोटे-बड़े शोपीस को भी खूब पसंद किया जाता है। महंगी कला होने के बावजूद कद्रदानों की कमी नहीं। बेड व सोफे के सिरहानों से लेकर साइड टेबल व मिरर फ्रेम तक कमरों की शोभा बनते हैं। वहीं नक्काशी से बने खिलौने और शो पीस बहुत आकर्षक लगते हैं। आप अपने घर को बहुत सुन्दर बना सकते हैं, इन छोटे छोटे नक्काशी वाले शोपीस से| जानिये वुडन फर्नीचर व सजावटी सामान पर नक्काशी से जुड़े कुछ पहलू।
दस्तकारी से जुड़ा हुनर
नक्काशी औजारों की मदद से हाथ से लकड़ी या अन्य माध्यम पर विस्तृत डिजाइन बनाने की तकनीक है। लकड़ी की नक्काशी फूलपत्ती, अंगूरी, पशु-पक्षियों की आकृतियां जैसे पारंपरिक डिजाइन से लेकर ज्यामितीय तक भिन्न-भिन्न हो सकती है। लकड़ी के हैंडीक्राफ्ट आइटम को तराशना बहुत ही ज्यादा मेहनत व धीरज का काम है क्योंकि बारीकियों पर बहुत ध्यान देने की जरूरत होती है।
सागौन, शीशम और देवदार
नक्काशी कर आइटम गढ़ने के लिए लकड़ी के टेक्स्चर का चुनाव पहला व अहम कार्य होता है। हमारे देश में अमूमन दो तरह की लकड़ी इस्तेमाल होती है -कठोर व नरम। हार्डवुड के तहत सागौन, ओक, शीशम, साल, चंदन, अखरोट, शहतूत आदि की लकड़ी आती है जबकि सॉफ्टवुड में देवदार आदि के पेड़ शामिल हैं। आम तौर पर बर्मा टीकवुड को बेहतर माना जाता है। कहीं-कहीं लकड़ी को जरा सा जलाकर उस पर हाथ से नक्काशी की जाती है।
तकनीकों-शैलियों की बात
भारतीय शिल्पकार लकड़ी को तराशने के लिए विभिन्न तकनीकों का उपयोग करते हैं जिन्हें मुख्यतया चार प्रकारों में वर्गीकृत कर सकते हैं। गहरी नक्काशी आमतौर पर दो इंच या अधिक गहरी होती है जिस पर जटिल फूलपत्ती और पशु आकृतियों वाली कलाकारी होती है। ऐसे ही उथली लकड़ी पर करीब आधा इंच गहरी कार्विंग होती है जिसमें कारीगर समतल सतह पर पैटर्न बनाते हैं। वहीं जाली के काम में ओर्नामेंटल डिजाइन शामिल होते हैं जिन्हें ज्यादातर खिड़कियों पर उकेरा जाता है। वहीं अर्ध-नक्काशी एक सतह के रिम के साथ एक पतले पैनल पर की जाती है। इसमें लकड़ी के ग्रेन्ज को प्रदर्शित करने का कौशल इस्तेमाल होता है। इन विभिन्न तकनीकों से लकड़ी की नक्काशी शैलियां जैसे कि व्हिटलिंग, चिप नक्काशी, राहत नक्काशी, इंटैग्लियो नक्काशी जन्म लेती हैं।
निर्माण-कारोबार के केंद्र
लकड़ी पर नक्काशी की परंपरा कई शताब्दी पुरानी है। भारत में कश्मीर में अखरोट की लकड़ी पर बनाये जाने वाले कार्विंग डिजाइन उम्दा कारीगरी की मिसाल है। ऐसे ही उत्तर प्रदेश के बिजनौर स्थित नगीना क़स्बा नक्काशी के लिए मशहूर है। यह हुनरबाज़ लोग बेहद खूबसूरत डिज़ाइन बनाते हैं। यहां तैयार जाली और चांद सितारे जैसे डिजाइन मुगलई छाप छोड़ते हैं। वहीं सहारनपुर में नक्काशी कला से तैयार बेड व अन्य सामान हस्तशिल्प प्रेमियों के लिए नायाब चीज है। टीकवुड के एक ही बेड पर हाथ से नक्काशी में 6 से लेकर 8 महीने लग जाते हैं जबकि पॉलिश का काम भी करीब 2 महीने ले लेता है। अकेले सहारनपुर में सालभर में वुड कार्विंग का सैकड़ों करोड़ का कारोबार होता है। वहीं चौखट, खिड़की पर नक्काशी बीस दिन में हो जाती है। इधर, भोपाल में लकड़ी से बना सामान और उस पर नक्काशी मशहूर रही है। राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले के बस्सी इलाके व उदयपुर की नक्काशीदार काष्ठ कला भी खासी मशहूर है। रोजगार के लिहाज से देखें तो वुड कार्विंग के कारोबार में देशभर में लाखों लोग कार्यरत हैं।
वजूद बचाने की चुनौती
बीते कुछ सालों में ये उद्योग थोड़ा ठंडा हो गया है, क्योंकि विदेशी बाजार ने अपने पैर जमा लिए हैं| एक्सपोर्ट में जहां पड़ोसी चीन व बर्मा से प्रतिस्पर्धा बढ़ी है वहीं देश में भी आयातित वस्तुए ज़्यादा आने लगी हैं| अन्य मसला लकड़ी की उपलब्धता में कमी व मशीन निर्मित माल से मुकाबले का भी है। नगीना कस्बे के नक्काशीकार हुसैन शहवाज बताते हैं कि हमारा पूरा घर चलता था पहले इस धंधे से पर अब विदेशी सामान की ज़्यादा मांग है| हमारा अस्तित्व ख़त्म सा हो रहा है| जरूरत है इस पुरानी परम्परा को लुप्त होने से बचाने के लिए भारतीय सामान को खरीदना व सरकारी प्रोत्साहन जारी रखना।