मदन गुप्ता सपाटू
कल बाबू रामलाल, गब्बर की तर्ज पर, हमारे घर में धमकते हुए घुसते चले आए और बदहवास से पूछने लगे, ‘कब है शादी… कब है शादी… शादी कब है?’
हमने पूछा, ‘अरे क्या कोरोना ने काटा है? हम तो ब्याह की गोल्डन जुबली भी मना चुके हैं। भौकिया गए हो क्या?’
‘तो क्या पप्पू की हो गई?’ उनका दूसरा प्रश्न था। हमने चेताया, ‘अरे दो बच्चे हैं उसके।’
‘और तीसरा लट्टू?’
‘अरे इंटेलीजेंट है। उसने लॉकडाउन से पहले सब लफड़े खुदे ही निपटा लिए।’
फिर वे बोले—बड़ी जोर से बारातियास लगी है। पूरे छह महीने हो गए हैं। कहीं से कोई कार्ड तक नहीं आया। किसी ने तेरहवीं तक नहीं की कि बंदा जाकर बाहर का खाना खाकर देख तो ले! घर में वही लौकी, दाल खाते-खाते, बरतन मांजते-मांजते ऐसा लग रहा है …एक जमाना बीत गया है। तुम्हारी भाभी मास्क लगा के, हाथ में सैनिटाइजर की बोतल पकड़ कर भी किसी रेस्तरां या होटल की तरफ ताकने तक नहीं देती। जुम्मा-जुम्मा एक शादी का बहुत खूबसूरत कार्ड मोबाइल पर नन्हे गुप्ता का आया था। हमने भी अपना सूट-वूट प्रैस करवा लिया। शगुन का लिफाफा लाल रेशमी धागे से बांध लिया। अगले दिन मैसेज आ गया कि तुम्हें वेटिंग में रखा है।
फिर शादी वाले दिन मैसेज आ गया कि बारात फुल हो चुकी है। तुम शगुन पेटीएम करो और मोबाइल पर जो कोड दिया जा रहा है, उसे दबाकर वीडियो पर शादी का आनंद लो और वर-वधू को अपना आशीर्वाद दो।
हम बाबू रामलाल का दर्द समझ गए। उनकी हर बेगानी शादी में दूसरों के सूट पहन कर, नागिन डांस किए काफी टाइम हो चुका था। शहर में 500 से ज्यादा होटल, मैरिज पैलेस हैं। नाश्ता कहीं, लंच कहीं तो डिनर कहीं। लड़की वाले उन्हें लड़के वालों की तरफ से समझते तो दूसरा पक्ष उन्हें विपक्षी पार्टी का समझ लेता।
अखबार में रस्म-क्रिया का विज्ञापन बाबू रामलाल का फेवरिट कालम था। वहां दस रुपए और फोटो के आगे फूल चढ़ाकर शादी जैसे खाने का मजा आ जाता था। कंबख्त कोरोना ने उस जुगाड़ पर भी पानी फेर दिया। कई शादियों में जहां थोड़ा बहुत परिचय होता, मिलनी के वक्त लड़के का फूफा रूठ कर दारू की छबील पर टुन्न हुआ और शक्ल न दिखाता तो वे फटाक से उसकी जगह, उसकी शाल, शगुन और गिफ्ट अफरातफरी में झटक लेते। वैसे एंट्री पर अपनी गुलाबी पगड़ी पहने, वर या वधू के बाप को लिफाफा दिए आगे नहीं बढ़ते।
जब घर वाले शगुनों के लिफाफे खोलते हुए लिस्ट बनाते तो उसमें एक ऐसा लिफाफा जरूर निकलता, जिसके मुंह पर एक सिक्का चिपका हुआ बड़ी शान से बयान करता …मैं शगुन हूं। अंदर नोट के बराबर साइज की एक पर्ची निकलती जिस पर लिखा होता… वर और वधू को हमारा शुभ आशीर्वाद।