शारा
विदेश इलाज कराने के बाद स्वदेश लौटी साधना को उन्हीं तेवरों व ठसक के साथ सिल्वर स्क्रीन पर लौटाने का उपक्रम थी इन्तकाम फिल्म जिसे निर्देशित किया था उनके पति आर.के. नैयर ने। वही आर.के. नैयर जिन्होंने ‘लव इन शिमला’ बनायी और खुद मिस्ट्री गर्ल साधना के रूप के शिकार हो गये और दोनों ने शादी कर ली। यह फिल्म क्या थी, कई मायनों में बम का गोला थी। इसने पटकथा में नयापन, बेहतर निर्देशन संपादन में सभी की खूब तारीफें बटोरीं। सबसे ज्यादा इस फिल्म की चर्चा जिस बात के लिए होती है वह है उसका संगीत और गीत। हेलन ने जिन गीतों पर अपनी कमर मटकायी है उसमें अधिकांश गीत साधना की फिल्मों के ही हैं। उनमें भी जिस गीत पर हेलन आज भी नाचना चाहती है वह साधना की इसी फिल्म इन्तकाम का कैबरे गीत ‘आ… जाने जां मेरा यह हुस्न जवां’ पर हेलेन का कैबरे आज के सारे साल्सा जैसे डांसेज को फेल करता है। यह गाना हर युग की डांस पार्टियों का इनसिगनिया है, जिसे कोरियोग्राफ किया था पी.एल. राज ने। इस गीत को संगीत देने वाले कोई और नहीं बल्कि लक्ष्मीकांत प्यारे लाल थे, जबकि वाद्यों की जुगलबंदी सुनकर कभी-कभी आर.डी. बर्मन का भ्रम होता है। इस गाने को आशा भोसले ने नहीं लता मंगेशकर ने गाया था। शुरू में इस गाने को गाने के लिए वह तैयार नहीं थीं। उनके मुताबिक यह गाना संगीत की परिभाषाओं में हल्का गीत है। लेकिन उसके बाद उन्होंने कैबरे पर सुर लगाना शुरू कर दिया। इसी फिल्म का एक और गाना शराबी आवाज़ में गाकर उन्होंने खुद को फिल्मफेयर नोमिनेशन का हिस्सा बना लिया। ‘केसे रहूं चुप’ जो शराबी की हिचकी वाली आवाज है, लता मंगेशकर का प्रयोग गजब का है। इसके अतिरिक्त ‘हम तुम्हारे लिये’, ‘गीत तेरे साज का’ भी काफी मकबूल हुए। इसके सभी गीतों को कलमबद्ध किया था राजेंद्र कृष्ण ने। 1969 में रिलीज इस फिल्म ने काफी कमाई की। देश में ही उसने 1.7 करोड़ और विदेश में 3.5 करोड़ रुपये कमाये। उस जमाने में करोड़ की कमाई करना टेढ़ी खीर थी लेकिन इस फिल्म ने साधना की शानदार वापसी की। जिस साधना ने जमाने को ‘साधना कट’ दिया, चूड़ीदार कौर कुर्ते का रिवाज दिया, उसी साधना की मौत बड़े ही दर्दनाक हालात में हुई। बताया जाता है कि उन्हें कैंसर था। माया के ढेर पर बैठी साधना, आशा भोसले के फ्लैट पर किरायेदार के रूप में रहती थीं। उन्हें अंतिम समय में कैंसर रोगियों के लिए रणवीर कपूर के साथ देखा गया था एक फैशन शो में। इससे पहले वह गुमनामी के अंधेरों में जी रही थीं। वह अपने दर्शकों के बीच उसी पुरानी इमेज के साथ जिंदा रहना चाहती थी, इसलिए उन्होंने कभी किसी फोटोग्राफर को अपनी तस्वीर नहीं लेने दी। अंतिम समय तक वह नंदा, वहीदा रहमान व आशा पारेख जैसे दोस्तों के साथ संपर्क में थीं। चलते-चलते फ्लैश बैक के पाठकों को बता दूं कि साधना अपने जमाने की उन तमाम हीरोइनों की अपेक्षा सबसे ऊंची फीस वसूलती थी। यानी सबसे महंगी हीरोइन लेकिन उनकी फिल्में प्रोड्यूसरों के लिए कमाई की गारंटी थीं।
‘इन्तकाम’ की पटकथा में भी साधना के लिए कमाल का रोल था। फिल्म में कैसे एक डिपार्टमेंटल स्टोर में साधना को नौकरी लगवाकर इस तरह के पेशे को आम से खास बनाया है, जहां बांके लाल बने जीवन जैसे काइंया व्यक्ति एक स्टोर मैनेजर का किरदार निभा रहे हैं और सोहन लाल उर्फ रहमान जैसे मालिक। फिल्म शुरू ही बम्बई एयरपोर्ट से होती है, जहां कस्टम विभाग को तलाशी देते हीरालाल बने किशोर कुमार हैं जो अपना माद्रक द्रव्यों वाला पैकेट रीता बनी साधना के पर्स में सरका देता है और खुद पुलिस की गिरफ्त से बचने में कामयाब हो जाता है। लोगों ने शायद पटकथा लेखक से सवाल नहीं किया होगा कि एक गैर के कहे पर कोई विश्वास कैसे करे और सबसे ज्यादा सवाल नारी के विश्वास का है। अब रीता (साधना) जैसी लड़की का सवाल है तो नौकरी करने के लिए जगह-जगह भटकती है, अपनी बीमार व बूढ़ी मां के साथ रहती है। उसके पिता बचपन में ही उसे छोड़कर चले गये थे। रीता सोना डिपार्टमेंटल स्टोर में काम करती है जहां उसका मालिक सोहनलाल उसकी बीमार मां के लिए 400 रुपये देने से तो इनकार करता है लेकिन अपने बिगड़ैल बेटे राजपाल (संजय खान) को जुआ खेलने के लिए 12000 रुपये दे देता है। रीता को बहुत जल्द काले धंधे का पता चल जाता है जब उसे मुरलीधर जैसे रईस का मनोरंजन करने भेज दिया है, जहां वह मुरलीधर को थप्पड़ मार देती है। खुन्नस में चोरी का इल्जाम लगाकर सोना डिपार्टमेंटल स्टोर का मालिक उसे एक साल की जेल की सजा करवा देता है। जेल से छूटने पर वह हीरालाल (अशोक कुमार) से दोबारा मिलती है और उसी से उसे पता लगता है कि रीता की मां का निधन हो चुका है। वह मां की पार्थिव देह को अग्नि के हवाले करके सोहनलाल को गर्क करने की सौगंध लेती है। हीरालाल उसे सलाह देता है कि सोहन को गर्क करने का बेहतर तरीका उसके बेटे को प्रेमजाल में फंसाकर उससे शादी करने से बेहतर क्या हो सकता है? साथ ही उसे उस पैकेट के बारे में पूछ लेता है जो उसने उसके बैग में सरकाया था। उस पैकेट में हीरे थे जो हीरालाल रंगून से स्मगल करके लाया था। हीरों के पैसे से हीरालाल रीता की मदद से एक कसीनो खोलता है जहां सोहन का बेटा राजपाल ग्राहक बनकर आता है। अब कहानी यहीं से ही आगे बढ़ती है। हीरालाल रीता के साथ राजपाल को कश्मीर की वादियों में मन बहलाने के लिए भेजता है, जहां राजपाल रीता के प्यार में पड़ जाता है। बम्बई वापस आने पर जब रीता राजपाल से मंगनी से इनकार करती है तो राजपाल शराब के नशे में डूब जाता है। क्या रीता राजपाल से शादी करके अपना बदला ले पाती है। फ्लैश बैक पाठकों का सस्पेंस बरकरार रखना चाहता है लेकिन आपको यह बता दें कि कसीनो में रबैका बनी हेलेन के लटके-झटके के लिए यह मूवी खूब याद की जाती है। कसीनो का इंटीरियर देखने के काबिल है। पटकथा में थोड़े लोचे हैं लेकिन फिल्म देखने योग्य है। यह फिल्म की स्टोरी विद इन लॉ नामक नाटक के आधार पर बुनी है। ‘पेड’ नाम से अमेरिका में भी यह फिल्म बनी थी।
निर्माण टीम
प्रोड्यूसर : दीवान ए.डी. नैयर
निर्देशक : आर.के. नैयर
पटकथा : ध्रुव चटर्जी, मदन जोशी (संवाद )
मूलकथा : आर.के. नैयर
गीत : राजेंद्र कृण
संगीत : लक्ष्मीकांत प्यारे लाल
सिनेमैटोग्राफी : के.एच. कपाड़िया
सितारे : अशोक कुमार, साधना, संजय खान, राजेंद्र नाथ आदि
गीत-
जो उनकी तमन्ना : मोहम्मद रफी
हम तुम्हारे लिये : लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी
कैसे रहूं चुप : लता
गीत तेरे साज का : लता
महफिल सोयी ऐसा कोई : लता
आ जाने जां : लता