चीनी स्टेट काउंसिलर और विदेश मंत्री वांग यी 26 मई से 4 जून तक दक्षिणी प्रशांत के आठ देशों की यात्रा पर होंगे। चीनी विदेश मंत्रालय ने इसकी आधिकारिक पुष्टि की है। वांग यी सोलोमन आइलैंड, किरीबाती, समोआ, फिज़ी, टोंगा, बनातु, पपुआ न्यूगिनी और इस्ट तिमोर की यात्रा पर जाएंगे और इन देशों में कूटनीतिक संबंधों को और सुदृढ़ करेंगे। चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि दक्षिणी प्रशांत के देशों को दरअसल अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया अपना उपनिवेश समझते हैं। इन्होंने कभी भी इनकी संप्रभुता का मान-सम्मान नहीं किया, अपनी शक्तियों का कूटनीतिक दुरुपयोग एशिया- प्रशांत में करते रहे, जिसे दुरुस्त करने का समय आ गया है। चीनी विदेश मंत्रालय की इस घोषणा को क्वाड बैठक का ‘आफ्टर इफेक्ट’ कह सकते हैं। जो बाइडेन के राष्ट्रपति रहते दो मोर्चे खुल चुके हैं। पहला यूक्रेन था, और दूसरा है हिंद-प्रशांत। इसकी हलचलों का असर अमेरिका में मध्यावधि चुनाव पर पड़ना सुनिश्चित मानिये।
विचारणीय है, बाइडेन अपनी कूटनीति की धार हिंद-प्रशांत में क्यों तेज़ करना चाहते हैं? फरवरी, 2022 में व्हाइट हाउस ने ‘इंडो-पैसेफिक स्ट्रैटिजी’ शीर्षक से 19 पेज का दस्तावेज़ जारी किया था, जिसमें हिंद-प्रशांत में जो बाइडेन प्रशासन को क्या कुछ करना है, उसकी रूपरेखा तैयार की गई थी। ‘द इंडो-पैसेफिक प्रॉमिस’ चैप्टर के चौथे-पांचवें पेज पर लिखा है, ‘दो सौ साल से अमेरिकी उपस्थिति एशिया प्रशांत में रही है। अमेरिका, इंडो-पैसेफिक पॉवर है। प्रशांत से हिंद महासागर तक का तटीय इलाक़ा, जहां दुनिया की आधी आबादी रहती है। 30 लाख अमेरिकी जॉब और 900 अरब डॉलर का निवेश एशिया-प्रशांत में है। सहयोग के इस सिलसिले को जार्ज डब्ल्यू. बुश प्रशासन ने आगे बढ़ाया था, उनके समय चीनी गणराज्य, जापान और भारत को महत्व दिया गया, उन्हें इंगेज रखा गया। ओबामा प्रशासन ने हिंद-प्रशांत में नये आर्थिक, कूटनीतिक और सैन्य सहयोग के आयामों को प्राथमिकता दी। ट्रंप प्रशासन ने भी इंडो-पैसेफिक को विश्व कूटनीति का गुरुत्वाकर्षण माना था।’
राष्ट्रपति जो बाइडेन मानते हैं कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) इस इलाके में अपना आर्थिक, तकनीकी और सैन्य प्रभुत्व बढ़ाने रखने का लक्ष्य निर्धारित कर चुका है। यहीं से ‘पीआरसी’ ने विश्व का सबसे प्रभावशाली और प्रभुत्व संपन्न देश बनने की महत्वाकांक्षा पाल ली है। 19 पन्नों का दस्तावेज पढ़ने पर इतना तो साफ हो जाता है कि बाइडेन प्रशासन ने हिंद-प्रशांत को एक नया अखाड़ा बनाना तय कर लिया है। उसके पीछे का खेल समझने के लिए अमेरिका की घरेलू राजनीति में झांकिये।
अप्रैल, 2021 में अमेरिका में बेरोज़गारी दर 6 प्रतिशत थी। अप्रैल, 2022 में यह कम होकर 3.6 प्रतिशत पर आ चुकी है। यूएस ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैटिस्टिक्स के आंकड़े बताते हैं कि अब भी फरवरी, 2020 में 3.5 प्रतिशत बेरोज़गारी की जो स्थिति थी, उसी के गिर्द हम हैं। यानी, 14 माह में जो बाइडेन ऐसा कोई चमत्कार कर नहीं पाये, जिसकी अपेक्षा अमेरिकी वोटर उनसे कर रहे थे। ट्रेडिंग इकोनॉमिक्स के डाटा बताते हैं कि जुलाई, 2021 में अमेरिका में महंगाई दर 5.4 प्रतिशत थी, अप्रैल, 2022 में वह बढ़कर 8.3 प्रतिशत पर पहुंच चुकी है। अर्थात जो बाइडेन प्रशासन बेरोज़गारी और महंगाई, दोनों मोर्चे पर विफल साबित हो चुका है।
अमेरिका में 8 नवंबर, 2022 को मध्यावधि चुनाव है। बचे पांच माह में जो बाइडन घरेलू समस्याओं का समाधान क्या किसी जादू की छड़ी से कर लेंगे? भारत की तरह 2024 में ही अमेरिका में आम चुनाव है। अमेरिका धर्म प्रधान देश है नहीं कि वहां हिंदू-मुसलमान करके लोगों का ध्यान बंटाया जा सके। वहां जो भी निज़ाम आया, उसके लिए अरब-इस्राइल, ईरान, इराक, सीरिया, अफग़ानिस्तान, यूक्रेन में युद्ध जैसी स्थिति रच देना ध्यान बंटाने के वास्ते सबसे बेहतर रास्ता दिखता रहा है। हिंद-प्रशांत में उसी तरह की व्यूह रचना का प्रयास हो रहा है।
सबसे दिलचस्प यह है कि जो भी नेता या डिप्लोमेट हिंद-प्रशांत की ओर भ्रमण के लिए निकलता है, उसके बयानों में इलाके को वैभव व स्थिरता देने की बात अवश्य होती है। शांघाई स्थित ईस्ट चाइना नार्मल यूनिवर्सिटी में ऑस्ट्रेलियाई अध्ययन केंद्र के प्रमुख चेन होंग का कहना है कि विदेश मंत्री वांग प्रशांत के जिन द्वीपीय देशों का भ्रमण करेंगे, वो पहले से चीन की आर्थिक और सामाजिक सहयोग की सूची में है। चीन इन इलाकों में स्थिरता और समृद्धि चाहता है। अब कोई ये बताये कि टोक्यो क्वाड बैठक के तुरंत बाद, चीनी विदेश मंत्री को अपने इनीशिएटिव की याद कैसे आ गई? सच यह है कि क्वाड बैठक में ताइवान की चर्चा होते ही चीन का रक्तचाप चरम पर पहुंच चुका है। चीनी विदेश मंत्री की यात्रा से अमेरिका को यह संदेश देना है कि आप ताइवान में हमारे लिए मुश्किलें बढ़ाएंगे, तो हिंद-प्रशांत के जो देश आपके प्रभाव में हैं, वहां चरस बोने में हम पीछे नहीं रहेंगे। चीनी विदेश मंत्री वांग, दरअसल दक्षिण प्रशांत में सैन्यीकरण करने की नीयत से निकल रहे हैं।
यों, क्वाड बैठक में जो बाइडेन ने अपने बयानों से माचिस लगा दी थी। बाइडेन ने चीन को साफ-साफ धमकाया कि आप यदि ताइवान पर आक्रमण करोगे, अमेरिका सैन्य शक्ति के इस्तेमाल से पीछे नहीं हटेगा। 1979 में अमेरिका ने ताइवान से एक संधि की थी, जिसे ‘ताइवान रिलेशन एक्ट’ के नाम से जानते हैं। इसकी धाराओं को देखने पर स्पष्ट होता है कि ताइवान पर चीन ने यदि हमला किया, पेंटागन को सैनिक कार्रवाई के लिए किसी हामी की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।
चीन, ‘वन चाइना पॉलिसी’ के तहत ताइवान पर लंबे समय से दबाव बनाये हुए है कि ताइपे, पेइचिंग का आधिपत्य स्वीकार कर ले। इस समय चीन को काउंटर करने के वास्ते कोई भी मंच नहीं छोड़ा जा रहा है। 22 मई को जेनेवा में वर्ल्ड हेल्थ असेंबली (डब्ल्यू.एच.ए.) की बैठक में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे दस देशों ने कोविड महामारी के समय ताइवान के सहयोग की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। 28 मई, 2022 तक जारी बैठक में चीन की लकीर छोटी करने की हर चेष्टा की जाएगी, जिससे ‘वन चाइना पॉलिसी’ खंडित हो।
3 दिसंबर, 2021 को विदेश राज्य मंत्री वी. मुरलीधरण ने राज्यसभा में बयान दिया था कि ताइवान से हमारे कूटनीतिक संबंध नहीं हैं, किंतु ट्रेड, इनवेस्टमेंट और पर्यटन के क्षेत्र में हम उभयपक्षीय सहयोग की ओर अग्रसर हैं। अब यह बात ऑस्ट्रेलिया तक के थिंक टैंक में उठ रही है कि भारत ने ‘वन चाइना पॉलिसी’ पर जो मुहर लगाई थी, उसे रद्द क्यों नहीं करना चाहिए? चीन लद्दाख में भूमिहरण करे, पेंगोंग के उस पार दो-दो पुल बनाये, और भारत क्वाड जैसे मंच पर उस विषय को न उठाये, इसकी ख़लिश ज़रूर रह गई।
लेखक ईयू-एशिया न्यूज़ के नयी दिल्ली संपादक हैं।