रेनू सैनी
आपने आपदा प्रबंधन, कचरा प्रबंधन, वित्त प्रबंधन, कार्य प्रबंधन, कार्यालय प्रबंधन आदि के बारे में कुछ न कुछ अवश्य पढ़ा होगा। प्रबंधन का सरल अभिप्राय है पूर्वानुमान एवं योजनाएं बनाना। जॉर्ज रॉबर्ट टेरी कहते हैं कि, ‘प्रबंधन की धारणाएं एक विशिष्ट प्रक्रिया है, जिसमें कई क्रियाएं शामिल हैं, नियोजन, आयोजन, जुटाना और नियंत्रित करना।’ क्रोध एक प्राकृतिक भावना है। नाट्य शास्त्र में इसे ‘रस’ एवं नैसर्गिक भाव कहा गया है। प्रतिकूल परिस्थितियों के प्रति यह एक बहुत ही सहज भाव है। लेकिन जब यह भाव सीमा से परे हो जाता है तो फिर तांडव मच जाता है। क्रोध के कारण मानव एक-दूसरे का सर्वनाश कर डालते हैं। युद्धों की विभीषिका इसी का परिणाम है। रूस-यूक्रेन युद्ध के पीछे भी क्रोध मनोविकार का प्रमुख हाथ है।
दरअसल जब व्यक्ति को गुस्सा आता है तो उसके दिल की धड़कने बढ़ जाती हैं और रक्त में टेस्टोस्टेरोन हार्मोन की मात्रा बहुत बढ़ जाती है। कार्टिसोल की मात्रा भी इसी क्रम में बढ़ने लगती है। इससे दिमाग का बायां हिस्सा अधिक सक्रिय हो उठता है। बढ़े हुए कॉर्टिसोल के कारण मस्तिष्क की कोशिकाएं जिन्हें न्यूरोन के नाम से भी जाना जाता है, अपने अंदर अत्यधिक कैल्शियम एकत्रित करना आरंभ कर देती हैं। न्यूरोन्स की यह स्थिति हमारे मस्तिष्क के पीएफसी यानि कि प्री-फ्रंटल कॉर्टेक्स अर्थात सबसे आगे के हिस्से पर पर्दा डाल देती है। पीएफसी हमारे मस्तिष्क का वो हिस्सा होता है जो हमें निर्णय लेने और सकारात्मक योजनाएं बनाने में मदद करता है। लेकिन जब गुस्सा हमारे इस हिस्से को बंद कर देता है तो हम गलत निर्णय ले लेते हैं। इतना ही नहीं, बढ़े हुए कॉर्टिसोल के कारण हमारे याद करने की क्षमता पर भी असर पड़ता है और हमें बातें याद नहीं रहतीं। ऐसे में यदि क्रोध प्रबंधन न किया जाए तो बड़े से बड़ा नुकसान हो जाता है।
अल्फ्रेड ए. मोंटापर्ट गुस्से के संदर्भ में कहते हैं, ‘जब आप गुस्सा हो जाते हैं, तो आप अपने शरीर को जहर देते हैं।’ वहीं चाणक्य कहते हैं कि ‘क्रोध साक्षात यम का स्वरूप है, जो अपने विकराल मुख से व्यक्ति को ग्रसने के लिए सदा तत्पर रहता है।’ क्रोध एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। हां, इतना अवश्य है कि यह प्रक्रिया उन लोगों को अधिक प्रभावित करती है जो इसका प्रबंधन नहीं करते हैं।
कैसियस नामक एक व्यक्ति ने प्रारंभ से ही क्रोध का प्रबंधन कर इसे एक नया मोड़ दिया और इतिहास रच दिया। दरअसल वर्ष 1954 में एक दिन कैसियस अपने कुछ मित्रों के साथ लुईविल के कोलंबिया सभागार में होम शो देखने गए। वहां अनेक घरेलू उपकरण बिक रहे थे, इसके साथ ही ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए वहां नि:शुल्क पॉपर्कान भी मिल रही थी। कैसियस व उसके मित्रों को भला और क्या चाहिए था? वे सभी लगभग 12 से 15 वर्ष के किशोर थे। होम शो में एक अच्छा समय बिता कर मित्र वहां से बाहर लौटे। बाहर लौटते ही कैसियस का दिल धक से रह गया जब उन्होंने पाया कि उनकी चहेती साइकिल अपने स्थान पर नहीं थी। कैसियस उस साइकिल को दिलोजान से चाहते थे। वह साइकिल उनके पिता ने उन्हें उपहार में दी थी। कुछ देर तक तो कैसियस एवं उनके मित्रों ने आसपास साइकिल को ढूंढ़ा। लेकिन वह कहीं नहीं मिली।
हार कर कैसियस साइकिल की शिकायत लेकर एक पुलिसवाले के पास पहुंचे। पुलिसवाले ने देखा कि कैसियस अपनी प्रिय साइकिल चोरी हो जाने से क्रोध से आगबबूला हो रहा था और वह चोर पर अपना क्रोध निकालने को आतुर था। समझदार पुलिसवाले ने कैसियस के क्रोध का प्रबंधन करने का निश्चय किया। वे उससे बोले कि उसे अपना क्रोध निकालने के लिए मुक्केबाजी का अभ्यास करना चाहिए ताकि उसके क्रोध का शिकार निर्दोष लोग न बन पाएं। पुलिसवाला एक जिम में मुक्केबाजी की कक्षाएं लगाता था। उसने कैसियस को अपने यहां मुक्केबाजी की कक्षाओं में आने का निमंत्रण दिया और साथ ही चोर को पकड़ने का आश्वासन भी दिया। कैसियस बुझे मन से कक्षा में आया। लेकिन पहले ही दिन उसे लगा कि उसे मुक्केबाजी करने में बेहद आनंद आ रहा है। फिर तो वह प्रतिदिन बेहद मन से मुक्केबाजी सीखने लगा और कुछ दिन बाद साइकिल चोरी की बात एवं क्रोध हवा हो गया।
एक दिन उसे एक स्थानीय टीवी कार्यक्रम ‘टुमॉरोज चैम्पियंस’ में शामिल किया गया। इसके बाद वह 12 साल का किशोर अपने से बड़े रॉनी ओ कीफी का सामना करने के लिए अखाड़े में उतरा और मुकाबला जीत लिया। बस फिर क्या था? इसके बाद तो उसका मुक्केबाजी का यह सिलसिला चल निकला। कैसियस को उसकी खोई साइकिल जीवन मंे कभी नहीं मिल पाई। लेकिन उस साइकिल के खोने के कारण ही उसने न केवल क्रोध प्रबंधन सीखा अपितु अपने क्रोध प्रबंधन से अपने शौक को एक ऐसा करियर बनाया कि दुनिया देखती रह गई। आज पूरी दुनिया उसी कैसियस को सुप्रसिद्ध मुक्केबाज मोहम्मद अली के नाम से जानती है। सोचिए यदि उस दिन कैसियस की साइकिल चोरी नहीं हुई होती तो क्या पूरी दुनिया को महान मुक्केबाज मोहम्मद अली मिल पाते।
ऐसा ही हम सबके जीवन में भी कभी न कभी अवश्य होता है। किसी का खोना; इसमें व्यक्ति, नौकरी, संबंध सभी शामिल हैं; बेशक दुखदायी होता है। लेकिन कई बार यही अवसरों को उत्पन्न भी करता है। मगर उस समय हम अपने दुख एवं क्रोध के आवरण को इतना मोटा कर लेते हैं कि उसे हटा कर बाहर झांकने की कोशिश ही नहीं करते। यदि हम क्रोध के आवरण को हटा कर बाहर झांकें तो न केवल क्रोध का कुशल प्रबंधन कर सकते हैं अपितु क्रोध से होने वाले बड़े नुकसान से भी स्वयं को बचा सकते हैं। आपदा प्रबंधन हो या वित्त प्रबंधन, ये सभी तरह के प्रबंधन जीवन को बेहतर बनाना सिखाते हैं। तो चलिए क्रोध प्रबंधन को जीवन में शामिल करके एक नई दिशा बनाएं और जीवन सुखी बनाएं।