सत्यवीर नाहड़िया
हरियाणा के लोकगायन में रागनी की खास पहचान रही है, जिसे रागिनी या रागणी भी कहा जाता है। हरियाणा प्रदेश की समृद्ध लोकनाट्य परंपरा का मूल आधार रही रागनी प्रदेश के लोकगायन की सिरमौर विधा की रही है।
स्वांग (सांग) के कथानक को आगे बढ़ाने वाली रागनियां फुटकर रूप में भी बेहद प्रसिद्ध एवं प्रचलित रही हैं। टेक, कली व तोड़ की त्रिवेणी से सजी ये गेय रचनाएं आज भी प्रदेश के लोकजीवन में रची-बसी हुई हैं। आलोच्य कृति ‘मिठास हरियाणा की’ ऐसा एक रागनी-संग्रह है, जिसमें शामिल की गई 121 रागनियां हरियाणा प्रदेश के लोकजीवन का सांस्कृतिक दर्पण बन कर उभरी हैं।
शिक्षाविद राजबीर वर्मा ने इस कृति में हरियाणवी संस्कृति के तमाम पहलुओं को रागनी के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। एक ओर जहां इन रचनाओं में प्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को सहेजा गया है, वहीं दूसरी ओर सामाजिक विसंगतियों तथा जागरूकता के प्रासंगिक पक्षों को भी शामिल किया गया है। ‘मिठास हरियाणा की’ नामक शीर्षक रचना में कवि हरियाणा प्रदेश की जीवटता को रेखांकित करता हुआ कहता है…
खेत में जमीदार गावै, ऐसी सुंदर लावै ताल।
काम करते थकता कौनी, चाहे होज्या बुरा हाल॥
कहीं कृष्ण-सुदामा, सत्यवान-सावित्री, नरसी भगत जैसे प्राचीन किस्सों के कथानक आधारित रागनियां झकझोरती हैं तो कहीं राष्ट्रीय एकता व अखंडता से जुड़ी रचनाएं भावविभोर करती हैं। पर्यावरण संरक्षण, साक्षरता, स्वच्छता, बेटी बचाओ, दहेज, कन्या भ्रूण हत्या, जनसंख्या, जात-पात, एड्स, नशाखोरी, शौचालय निर्माण आदि बहुआयामी विषयों पर आधारित रचनाएं जनजागरण का प्रगतिवादी स्वर बनकर उभरी हैं। संग्रह का भावपक्ष बेहद उज्ज्वल है।
पुस्तक : मिठास हरियाणे की लेखक : राजबीर वर्मा प्रकाशक : राजबीर वर्मा, घरौंडा पृष्ठ : 174 मूल्य : रु. 200.