कविता राज संघाइक
ट्रिब्यून न्यूज़ सर्विस
मद्रास परमाणु ऊर्जा स्टेशन से लौटकर
चंडीगढ़ : इस समय देश के अधिकतर राज्य बिजली संकट से जूझ रहे हैं। अप्रैल के आखिर में बिजली गुल रहने से राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। ऐसा पहली बार नहीं था इससे पहले अक्तूबर, 2021 में भारत ने पांच साल में सबसे भयानक बिजली संकट देखा था। कारण है कि देश में बिजली की मांग उत्पादन क्षमता लगभग 400 गीगावॉट से कुछ ज्यादा है। दूसरी ओर जिस तरह से दिनों-दिन कोयले की समस्या गहरा रही है उसे देखते हुए केंद्र सरकार और बिजली मंत्रालय अस्थाई इंतज़ाम करने में जुटा है। लेकिन इनसे बिजली की किल्लत हमेशा के लिये खत्म नहीं होने वाली है बल्कि समय-समय पर ये फिर से सिर उठाती रहेंगी। ऐसे में नाभिकीय ऊर्जा से बिजली की पूरा करने की वकालत फिर से ज़ोर पकड़ रही है। परमाणु ऊर्जा की तरफ कदम बढ़ाते हुए केन्द्र सरकार अगले तीन सालों में एक साथ 10 परमाणु रिएक्टरों के निर्माण कार्यों को गति देने की बात कह चुकी है।
इसी कड़ी में हरियाणा के गोरखपुर में भी नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र बनाया जा रहा है। हरियाणा की बात करें तो फतेहाबाद ज़िले के गोरखपुर में बन रही अणु विद्युत परियोजना को 2024 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। 2800 मेगावाट क्षमता के इस परमाणु विद्युत संयंत्र का निर्माण होने से प्रदेश व देश स्तर पर बिजली आपूर्ति होगी। इस संयंत्र में 700-700 मेगावाट की चार यूनिटों का निर्माण चल रहा है। यह संयंत्र 2800 मेगावाट बिजली का उत्पादन करेगा। इस पर 47 हज़ार करोड़ रुपये खर्च होंगे।
परमाणु ऊर्जा है विकल्प
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोयले की आसमान छूती कीमतें और बिजली की बढ़ती मांग के बीच एक बार फिर वैज्ञानिक परमाणु ऊर्जा के विकल्प पर विचार करने लगे हैं। आईजीसीएआर के निदेशक बी. वेंकटरमन और मद्रास एटॉमिक एनर्जी पावर प्लांट की शाखा एनपीसीएल के साइंटिस्ट एस. रविशंकर की माने तो आने वाले समय की ज़रूरत नाभिकीय ऊर्जा से तैयार विद्युत आपूर्ति है। हालांकि वे मानते हैं कि परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को स्थापित करना काफी महंगा सौदा है लेकिन इन्हें चलाना और इनसे तैयार ऊर्जा यानी बिजली की लागत थर्मल पावर प्लांट से तैयार होने वाली बिजली से बेहद कम है। उस पर कोयले से बिजली तैयार करना जितना महंगा है उससे कई गुना सस्ता है यूरेनियम से बिजली तैयार करना। एस. रविशंकर के मुताबिक सौर और पवन ऊर्जा से संचालित बिजली न तो देश की कुल मांग को पूरा करने में अभी समर्थ है, उस पर, इससे तैयार होने वाली बिजली की लागत परमाणु ऊर्जा विद्युत उत्पादन से कहीं अधिक है। रविशंकर के मुताबिक वर्तमान समय में देश के अंदर मौजूद 23 रियेक्टर्स की बिजली उत्पादन क्षमता 6780 मैगावॉट की है, जो देश की बिजली जरूरत का करीब 4 फीसदी है। हालांकि इस बारे में मंत्रालय के आंकड़े काफी अलग हैं। वहीं दुनिया भर में ऊर्जा के कुल उत्पादन का 10 फीसदी नाभिकीय ऊर्जा से तैयार होता है।
थोरियम के भंडार को इस्तेमाल करने पर ज़ोर
इंदिरा गांधी सेंटर फॉ़र एटॉमिक रिसर्च के स्टेशन डायरेक्टर बलराम मूर्ति के मुताबिक देश का दीर्घकालीन परमाणु ऊर्जा विद्युत उत्पादन कार्यक्रम हमारे तटीय इलाकों में मौजूद विशाल थोरियम भंडार पर आधारित है। परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में यूरेनियम (यू 235) और थोरियम ( टीएच 232) प्रयोग किये जाते हैं। अगर न्यूक्लियर पावर प्लांट लगाने पर थोड़ा अधिक खर्च किया जाये तो ऐसे संयंत्र सैकड़ों साल तक विद्युत ऊर्जा की आपूर्ति सुनिश्चित कर सकते हैं। परमाणु ऊर्जा के लिये देश के पावर प्लांट में यूरेनियम का इस्तेमाल होता है और मैप्स यानी मद्रास पावर प्लांट समेत कुछ एटॉमिक पावर प्लांट अपनी ज़रूरत का यूरेनियम खुद तैयार कर रहे हैं। एस. रविशंकर के मुताबिक देश के दक्षिणी राज्यों के समुद्री तटों पर थोरियम के भंडार हैं और उनसे यूरेनियम तैयार करने के प्रयास चल रहे हैं। रविशंकर कहते हैं कि अगर देश में मौजूद थोरियम का 50 फीसदी भी हम प्रयोग में ला सकें तो हमारी बिजली की किल्लत कई पीढ़ियों के लिये खत्म हो जाएगी। उनके मुताबिक देश में परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को लगभग 50 वर्ष हो चुके हैं और भारत इस क्षेत्र में न केवल तरक्की कर चुका है बल्कि अपने कई संयंत्रों को संचालित करने में आत्मनिर्भर हो चुका है।
छोटे मॉट्यूलर रियेक्टर असरदार
एस रविशंकर के मुताबिक देश में अभी कुल 23 परमाणु रिएक्टर हैं जिनमें से अधिकतर रियेक्टर की क्षमता 300 मेगावाट से कम बिजली पैदा करने की है। इसका मतलब है कि भारत के ज़्यादातर रिएक्टर छोटे हैं। फ्रांस और जापान समेत कई अन्य देशों में 90 प्रतिशत तक बिजली का उत्पादन परमाणु ऊर्जा द्वारा किया जा रहा है और ये देश भी आज तकनीक के मामले में भारत की मदद ले रहे हैं। इतना ही नहीं दक्षिण कोरिया, चीन और जापान जैसे देश भी छोटे मॉड्यूलर रियेक्टर को इसलिये अपना रहे हैं क्योंकि इनसे कम लागत में ज्यादा उत्पादन की उम्मीदें हैं।
बता दें कि छोटे रियेक्टर वे संयंत्र हैं जिनकी उत्पादन क्षमता 300 मैगावॉट से कम है। वर्तमान समय में तमिलनाडू का कुडनकुलम 2000 मेगावाट की क्षमता के साथ सबसे बड़ा पावर प्लांट है। यहां भारत में पहला स्वदेशी तकनीक से निर्मित नाभिकीय ऊर्जा संयंत्र कलपक्कम 440 मैगावॉट की क्षमता रखता है। दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र का तारापुर 1400 मैगावाट की क्षमता, राजस्थान का रावतभाटा 1080 मैगावट की क्षमता के साथ तीसरे स्थान पर है। कैगा 880 मैगावाट की क्षमता वाला चौथा पावर प्लांट है।
निजीकरण एक अलग मुद्दा है लेकिन मौजूदा संकट संकेत दे रहा है कि हालात जल्द सुधरने वाले नहीं है। ऐसे में वैज्ञानिक बिजली किल्लत के स्थायी समाधान के लिये जो विकल्प सुझा रहे हैं उस पर फोकस करने से शायद समस्या का निदान हो सके।