अपने जीवन के अंतिम वर्षों में गौतम बुद्ध को आत्म साक्षात्कार हो गया था। ज्ञानोदय के तुरंत पश्चात वह भारत भ्रमण के लिए निकले, जिससे भी उनकी मुलाकात हुई, वह उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहा। एक बार बुद्ध से मिलने आये एक व्यक्ति ने उनका परिचय जानने के लिए ‘आप कौन है?’ के स्थान पर एक दार्शनिक की तरह प्रश्न किया-‘आप क्या हो?’ बुद्ध शांत रहे। उसने फिर पूछा, ‘क्या आप भगवान हो?’ बुद्ध ने कहा, ‘नहीं’ फिर क्या भगवान के अवतार हो?, ‘नहीं’ बुद्ध ने जवाब दिया। आगंतुक ने फिर पूछा- ‘क्या आप संत हैं?’ बुद्ध ने फिर ‘नहीं’ में जवाब दिया। ठीक है तो फिर क्या आप आम आदमी मात्र है? इस बार बुद्ध के फिर से ‘नहीं’ कहने पर उस व्यक्ति को हैरानी हुई और उसने फिर सवाल किया, ‘तो फिर क्या हैं आप?’ इस बार उस व्यक्ति की आवाज़ में तल्खी थी। बुद्ध ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, ‘मैं बोध उदीप्त हूं। मैंने अपनी दिव्य प्रकृति को जाग्रत कर लिया है। तुम भी सोओ मत। जागो। अपने भीतर की दिव्य चेतना को जगाओ। हमारी अपनी दिव्य प्रकृति संतों के समान ही है, बस उसे जगाने की जरूरत है। हम भले ही संत न हों, लेकिन हम अपने भीतर के उस दिव्य स्वभाव को जगा सकते हैं।’
प्रस्तुति : मधुसूदन शर्मा