नवीन पांचाल/हप्र
गुरुग्राम, 30 जनवरी
शहर की सड़कों के किनारे जमीन धूल-मिट्टी को साफ करने वाली स्वीपिंग मशीनें नगर निगम के खजाने पर बोझ बनने लगी हैं। इन मशीनों के रखरखाव और चलाने के लिए निगम को हर महीने 45 से 50 लाख रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। बावजूद इसके शहर की सड़कों की नाममात्र की सफाई हो रही है। मशीनों के स्थान पर सफाई का कोई और मैकेनिज्म निकालने को लेकर कई बार पार्षदों ने मांग उठाई लेकिन सदन की मांग न तो अधिकारियों ने सुनी और न चंडीगढ़ में बैठे नेताओं ने। नगर निगम के पास 13 जम्बो स्वीपिंग मशीनें हैं। इसमें से 9 मशीनें करीब डेढ़ साल पहले ही निगम के बेड़े में शामिल की गई हैं। उससे पहले चार मशीनों से शहरभर की सड़कों की सफाई की जा रही थी। चारों मशीनें अलग-अलग जोन में रातभर सड़कों की सफाई का कार्य करती थी, लेकिन निगम पार्षद कहते हैं कि मशीनों की संख्या बढ़ जाने के बाद सड़कों की सफाई का कार्य तो बंद हो गया और निगम खजाने को चपत लगाने की प्रक्रिया शुरू हो गई। 9 मशीनों के के रखरखाव का काम वीएन इंजीनियरिंग कंपनी को शहरी स्थानीय निकाय विभाग की ओर से ही अलाट किया गया था, जबकि चार स्वीपिंग मशीनों की देख-रेख जेके कांट्रेक्टर कंपनी करती है। इसमें तीन मशीनें उक्त कंपनी की अपनी हैं। शहरवासी पंकज डावर का कहना है कि मशीनें सड़क पर दिखाई तो देती हैं लेकिन ये सफाई नहीं करती।
निगम पार्षद रविंद्र यादव का आरोप है कि मशीनें सिर्फ कंट्रोल रूम में स्थापित जीपीएस ट्रेकिंग सिस्टम को चकमा देने के लिए निर्धारित रूटों पर उतारी तो जाती हैं, लेकिन इनके स्विपिंग ब्रश सड़कों पर टिकाए ही नहीं जाते। ऐसे में सिर्फ ये निर्धारित प्रति किलोमीटर का रेट पूरा करती हैं। निगम पार्षद महेश दायमा भी इसी बात से इत्तेफाक रखते हैं। उनका कहना है कि सालभर में 6 से 7 करोड़ रुपए इन मशीनों के संचालन, रखरखाव आदि पर खर्च किया जाता है जबकि वास्तव में ये सफाई के लिए कारगर साबित नहीं हो रही।
टूटी सड़कों पर भी दौड़ रही मशीनें
शहर की अधिकांश सड़कों पर बीते दो साल से निर्माण कार्य चल रहे हैं। इसमें मुख्य रूप से नेशनल हाईवे 248ए, एसपीआर रोड, सिग्नेचर टावर से श्रीमाता शीतला मंदिर रोड, बस अड्डे को दिल्ली रोड व एमजी रोड से जोड़ने वाली सड़कों पर भी निर्माण कार्य किए जा रहे हैं। यही स्थिति हूडा सिटी सेंटर मेट्रो स्टेशन को जोड़ने वाली 4 प्रमुख सड़कों की भी है। हैरत की बात यह है कि मशीनें हर रात उपरोक्त सभी सड़कों पर कथित तौर पर सफाई करती हैं। यूएलबी से रिटायर्ड एक्सईएन रमेश कुमार का कहना है कि ये मशीनें सिर्फ उन्हीं सड़कों की सफाई में इस्तेमाल की जा सकती हैं जो ज्यादा टूटी हुई नहीं हैं या जहां निर्माण कार्य नहीं किया जा रहा। अन्यथा इनसे सफाई का कोई औचित्य नहीं बनता। निर्माणाधीन सड़कों पर धूल मिट्टी उड़ने से रोकने के लिए पानी का छिड़काव ही बेहतरीन विकल्प है।
वाहनों का दबाव कम होने के बाद शुरू करना होता है काम
शुरुआत में ही तय किया गया था कि स्वीपिंग मशीनें सड़कों पर वाहनों का दबाव कम होने के बाद सफाई का कार्य शुरू करेंगी। साइबर सिटी की सड़कों पर औसतन 10 बजे तक ज्यादा ट्रैफिक होता है। ऐसे में मशीनें 10 बजे के बाद काम पर लगाई जानी तय की गई थी, लेकिन ज्यादा किलोमीटर कवर करने के चक्कर में मशीनें साढ़े 8 बजे के बाद ही सड़कों पर उतार दी जाती हैं। बादशाहपुर के रहने वाले सुनील कुमार का कहना है कि वह फैक्टरी से सामान्यतः 9 बजे के आसपास निकलते हैं उस समय दो मशीनें सोहना रोड पर एक ही लेन में दोनों ओर काम कर रही होती हैं। इनके कारण हर रोज जाम की स्थिति बनती है।
ऐसे निकला था ‘सफाई’ का जरिया
हर साल सामान्यतः अक्तूबर महीने में ग्रैप (ग्रेडिड रिस्पांस एक्शन प्लान) अवधि शुरू हो जाती है। इस अवधि में सड़कों के किनारे खड़े पेड़ों की धूल को साफ करने का कार्य फव्वारों से किया जाता है लेकिन डिवाइडर व रोड बर्म या फुटपाथ के साथ जमा होने वाली मिट्टी की सफाई नहीं हो पाती थी। इसे एनजीटी ने पीएम 2.5 का बड़ा स्त्रोत मानते हुए इसकी सफाई के लिए मैकेनिज्म निकालने की सलाह दी। इसके बाद सड़क स्विपिंग मशीनों का अस्तित्व सामने आया। अब सालभर इनसे सड़क किनारे जमीन मिट्टी साफ करवाने का कार्य करवाया जा रहा है। इसके बदले में भारी भरकम राशि खर्च की जाती है।
2015 में मिली थी पहली मशीन
नगर निगम को पहली जम्बो स्वीपिंग मशीन वर्ष 2015 में मिली थी। यह मशीन एक कंपनी ने सीएसआर एक्टिविटी के तहत दी थी। कुछ समय बाद निगम ने 3 मशीनें एक ठेकेदार के मार्फत सफाई कार्य में लगाई। इनके द्वारा की जाने वाली सफाई तकनीकी रूप से सही होने की बात कहकर शहरी स्थानीय निकाय ने अपने स्तर पर और मशीनें खरीदकर प्रदेशभर में स्थानीय निकाय विभाग को दे दी। गुरुग्राम के हिस्से में दो बारी में 9 मशीनें आई। अब यहां कुल 13 मशीनें सड़कों की सफाई का कार्य करती हैं। यूएलबी की अपनी मशीनों के ऑपरेशन व मेंटेनेंस का कार्य भी ठेकेदार के मार्फत किया जाता है।
निरीक्षण के दौरान चलती नहीं मिली मशीनें
रात को स्वीपिंग मशीनों द्वारा किए जाने वाले कार्य का निरीक्षण किया गया था, लेकिन मशीनें चलती नहीं मिली। अधिकारियों से इसकी रिपोर्ट तलब की गई तो मुझे बताया गया कि सभी मशीनें रात 10 बजे से सुबह 5 बजे तक सड़कों की सफाई का नियमित कार्य करती हैं। इसकी जीपीएस से नियमित ट्रैकिंग भी की जाती है।
-मनोहर लाल खट्टर, मुख्यमंत्री, हरियाणा
शिकायत मिलने पर की जाती है कार्रवाई
दो एजेंसियों के साथ एग्रीमेंट के अनुसार प्रत्येक स्वीपिंग मशीन को तीन से चार किलोमीटर प्रति घंटे कवर करना होता है और एक मशीन 10 घंटे काम करती है। सबसे लंबा रूट 62 किलोमीटर का है। सभी मशीनों को क्लॉज लूप दी गई है, उस पर इनकी रनिंग है। अभी पिछले दिनों रूट रिवाइज किए गए हैं। इनके काम पर निगरानी रखी जाती है और शिकायत मिलने पर जांच व कार्रवाई भी होती है।
-सुंदर श्योराण, एक्सईएन एमसीजी
सबूत देने के बाद भी नहीं हो रही कार्रवाई
निगम सदन की बैठक में कई बार स्वीपिंग मशीनों द्वारा किए जा रहे फर्जीवाड़े का मुद्दा उठा है। अफसरों को सबूतों के साथ अवगत करवाया गया, लेकिन किसी ने सुनवाई नहीं की। अधिकारी कभी एनजीटी की गाइडलाइंंस का हवाला देकर पल्ला झाड़ लेते हैं, कभी चंडीगढ़ से दबाव होने की बात कहकर इनके खिलाफ कार्रवाई करने से पीछे हट जाते हैं। ज्यादातर स्वीपिंग मशीनों का काम संतोषजनक नहीं हैै।
-सुनीता यादव, डिप्टी मेयर, एमसीजी