मेजर जन. अशोक के. मेहता (अ.प्रा.)
पहले ही काफी समय से लंबित पड़ी भारत-यूके बैठक कोविड-19 द्वारा तेजी पकड़ने की वजह से भारत में नहीं हो पाई, लिहाजा विदेश मंत्री एस. जयशंकर के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल की अपने ब्रिटिश समकक्ष से भेंटवार्ता लंदन के एक होटल तक सीमित रही। इसमें रक्षा संबंधों को लेकर एक बहुत महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया कि ‘हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान दो’ नीति के तहत ब्रिटिश विमानवाहक पोत एचएमएस क्वीन एलिज़ाबेथ की अगुवाई में ब्रिटिश बैटल ग्रुप भेजा जाएगा। यह मुहिम कई दशकों में एक बार की जाने वाली ब्रिटिश रक्षा एवं विदेश नीति पुनर्समीक्षा में सामने आई है, इसमें भारत के लिए भी सबक है, क्योंकि हमारी अधिकांश सामरिक एवं रक्षा सोच आज भी ब्रिटिश लीक का पालन करती है।
कारगिल समीक्षा कमेटी-2001 द्वारा सुझाए गए रक्षा सुधारों को आंशिक रूप से लागू किया गया था, तब से लेकर आज की तारीख में देश को दरकार है एक बहु-आयामीय रक्षा सुधारों की। बड़े स्तर पर किए जाने वाले इन बदलावों के केंद्र में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) का पद, डिपार्टमेंट ऑफ मिलिट्री अफेयर्स एंड थियेटराइज़ेशन की स्थापना करना था, जिसके तहत सेना के तीनों अंगों के आपसी तालमेल के अलावा सैन्य-सिविल सहयोग को गतिशील समन्वय वाला बनाना है। बीती 7 अप्रैल को सीडीएस जनरल बिपिन रावत ने दिल्ली के विवेकानन्द फाउंडेशन में दी अपनी प्रभावशाली प्रस्तुति में इस रूपांतरण के विभिन्न पहलुओं को समझाया है। पिछले साल जिस वक्त ये मूल सुधार क्रियान्वित होने की प्रक्रिया में थे, उस दौरान लद्दाख क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीनी सेना ने कारगिल जैसी घुसपैठ को अंजाम दे डाला। इस घटना ने बलों के बीच प्रचालन समायोजना एवं आपसी संतुलन प्रक्रिया में उत्प्रेरक का काम किया। लद्दाख में बनी आमने-सामने की स्थिति उस वक्त आई जब देश एक ओर कोविड वैश्विक महामारी से जूझ रहा था, जिसके लिए स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा क्षेत्र में ज्यादा धन लगाने की तत्काल जरूरत थी, उधर सीमा पर आपातकालीन सैन्य तैनाती और साजो-सामान की खरीदो-फरोख्त हेतु फौरी तौर पर 21000 करोड़ रुपये भी चाहिए थे।
रक्षा नीति में सुधार लागू करने का आदेश देने के पीछे सरकार की असल मंशा क्रियान्वन से ज्यादा अपनी राजनीतिक इच्छाशक्ति परिलक्षित करना है, क्योंकि अपने चुनाव घोषणा पत्र में वन रैंक-वन पेंशन की तरह इसको भी लागू करने का वादा किया गया था। वरना सत्ताधारी चाहते तो हाथ में मौजूद अवयवों को तुरत-फुरत चमकाकर पेश करने की बजाय समग्र एकीकृत पुनर्समीक्षा, रक्षा विकास एवं विदेश नीति की समीक्षा करने को चुनते। चीन और अमेरिका के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी फौज से लैस भारत के बारे में विलक्षण यह है कि हमने आज तक कभी कोई रक्षा श्वेत पत्र या राष्ट्रीय सामरिक नीति या फिर सामरिक रक्षा एवं सुरक्षा समीक्षा पत्र प्रस्तुत नहीं की है। हैरानी की बात यह कि संसद ने भी कभी इसकी मांग नहीं की।
यहां हम ब्रिटेन से सीख सकते हैं कि कैसे यूरोपियन यूनियन से पलायन के बाद मध्यम दर्जे के शक्ति वर्ग में गिने जाने वाले इस मुल्क ने तगड़ी शक्ति स्पर्धा वाले मौजूदा काल में, वर्ष 2015 को आधार वर्ष मानकर, अपनी रक्षा-सुरक्षा-विदेश नीति पर हाल ही में एकीकृत पुनर्समीक्षा प्रकाशित की है, जिसमें उपलब्ध स्रोतों के साथ युनाइटेड किंगडम आगामी दस सालों में विश्व में अपनी क्या भूमिका चाहता है, इसका नजरिया प्रस्तुत किया गया है।
सरकार के तमाम विभागों को साथ में जोड़कर संयुक्त प्रयासों से बनी इस एकीकृत पुनर्समीक्षा को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूके में प्रस्तुत किया गया सबसे ज्यादा दूरगामी सामरिक दस्तावेज माना जा रहा है। इसमें दो परिपत्र भी संलग्न हैं : डिफेंस कमांड पेपर और डिफेंस एंड इंडसि्ट्रयल सिक्योरिटी स्ट्रैटेजी। वर्ष 2024-25 तक 16.5 खरब पाउंड का बजट रखते हुए इस ‘बहुउद्देशीय व्यय एवं आधुनिकीकरण रक्षा कार्यक्रम’ के अंतर्गत ख्याल रखा गया है कि वक्त पड़ने पर ‘समर्था और निवारण’ आपस में आसानी से कि्रयान्वित हो जाएं।
ताजा नीति में ब्रिटेन के बहुआयामी हितों की रक्षार्थ और वैश्विक प्रभाव बढ़ाने की खातिर रॉयल नेवी की भूमिका पर जोर दिया गया है, जिसके तहत अंतर्राष्ट्रीय जलमार्गों को निरापद बनाने को ब्रिटेन के नवीनतम विमानवाहक युद्धपोत के अतिरिक्त रॉयल मैरींस और भावी कमांडो बल तैनात किए जाएंगे ताकि अंतर्राष्ट्रीय नियम-आधारित व्यवस्था के अंतर्गत नौवहनीय आवाजाही की स्वतंत्रता अक्षुण्ण बनी रहे। स्वेज़ नहर की पूरबी दिशा में अपनी नौसैन्य गतिविधियां काफी पहले सीमित कर चुके ब्रिटेन की नौसेना लगभग 50 साल बाद पहली बार विमानवाहक एचएमएस क्वीन एलिज़ाबेथ और बैटल ग्रुप बेड़ा इस महीने हिंद महासागर और दक्षिण चीन सागर में दाखिल होगा। दस्तावेज में चीन को आर्थिक और रक्षा चुनौती बताया गया है, किंतु यूरोप में, जहां रूस पश्चिमी खेमे के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है, वहां सुरक्षा स्तर घटाए बिना यह मुहिम हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभुत्व के खिलाफ मुल्कों के गठजोड़ को अर्थपूर्ण वजन प्रदान करेगी। योजना के मुताबिक रिवायती नौसैन्य तौर-तरीकों में की गई कटौती की भरपाई हेतु ‘न्यूनतम परमाणु प्रति-भय’ इस्तेमाल करने पर ज्यादा जोर दिया गया है। इसके लिए तैनात परमाणु अस्त्रों की ऊपरी सीमा 180 से बढ़ाकर 260 कर दी गई है।
जनरल रावत विश्वास से कहते हैं कि भारत विस्तृत युद्ध लड़ने में सक्षम है और सरकार भी भारतीय हितों के लिए पूरी तरह सहयोग कर रही है, लेकिन जब वह कहते हैं कि एक राष्ट्रीय सुरक्षा नीति न होने का मतलब यह नहीं है ‘हमारे पास पर्याप्त ढांचा और अनुभव नहीं है’, लेकिन यह कथन रूपांतरण प्रक्रिया को बड़े अच्छे ढंग से कर दिखाने की उनकी प्रतिभा से बेमेल है। जब वर्ष 2019 के आखिरी दिन जब भारत के गजट में अचानक सीडीएस पद की सृजना, मय कर्तव्य सूची, छपी थी (अगले दिन जनरल रावत की सेवानिवृत्ति थी) तो किसी को अंदाजा नहीं था कि तीन घोड़ों वाले रथ (सेना के तीनों अंगों का पैनल) के सारथी, खासकर डीएमए (मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस अफेयर्स) जैसी अनोखी खोज, जो केवल भारत में हुई है, वह इस तरह फलीभूत हो जाएगी, हालांकि यह व्यवस्था एकदम सही रहेगी। लेकिन यह व्यवस्था वैसी नहीं है जैसी कि अमेरिका, यूके और अन्य गणतंत्रों में है, जहां सरकारें समय-समय पर एकीकृत पुनर्समीक्षा का आदेश देती हैं और इसमें भाग लेने वाले सदस्य और ध्येयों का पता रहता है। भारत में रक्षा एवं सुरक्षा नीति में महत्वपूर्ण सुधार करने के प्रयास आखिरी मर्तबा यूपीए-2 के कार्यकाल में नरेश चंद्रा कार्यबल की मार्फत हुए थे, जिसमें एक आधी-अधूरी शक्तियों वाले सीडीएस को चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी का स्थाई अध्यक्ष बनाने की सिफारिश की गई थी।
इसलिए यह छोटा-मोटा चमत्कार ही है कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में न केवल एक पूर्णकालिक सीडीएस की नियुक्ति की गई है बल्कि एक अलग ‘रक्षा मामलों का मंत्रालय’ भी वजूद में आया है, इस व्यवस्था ने रक्षा नीति को छोड़कर बाकी अधिकतर मामलों और कर्तव्यों में रक्षा सचिव को अप्रासंगिक बना डाला है और यह जिम्मेवारी अब सीडीएस या डीएमए पर आ गई है। परंतु सरकार इस किस्म के बृहद बदलावों को ढक कर रखने पर क्यों आमादा है, यह स्पष्ट नहीं है। परंतु यह एकदम साफ है : किसी किस्म का सामरिक रक्षा एवं सुरक्षा पुनर्समीक्षा या एकीकृत समीक्षा नहीं की गई वरना ढाई-मोर्चों (चीन-पाकिस्तान-आतंकवाद) पर एक साथ लड़ाई की नौबत न बनती। इस तरह सरकार ने, तमाम विभागों को साथ लेकर, सर्वोत्कृष्ट सुधार लाने में, सामरिक रक्षा एवं सुरक्षा पुनर्समीक्षा और एकीकृत समीक्षा को संस्थागत शक्ल देने का मौका गंवा दिया है।
लेखक रक्षा मामलों के विशेषज्ञ हैं।