एक बार महान गणितज्ञ रामानुजम कुछ किशोरों को गणितीय सूत्र समझा रहे थे । एक किशोर बहुत मेधावी था। वह यह सोच रहा था कि इस गणित में रखा ही क्या है। बस अभ्यास ही अभ्यास। न जाने कब वो दिन आयेगा कि संसार की नजर हम पर पड़ेगी। उदास होकर यह बात उसने रामानुजम से भी कह दी। वे उस किशोर को एक मैदान मंे ले गये। वहां गुलमोहर खिला था और हर कोई उसकी प्रशंसा कर रहा था। वह बोले, ‘ये देखो, गुलमोहर का यह पेड़ पूरे साल अनजान-सा खड़ा रहता है। उसे कोई मुड़कर नहीं देखता, कोई पहचानने के लिए खड़ा नहीं होता। मगर इस मौसम में जैसे ही वह अपने ऊपर गहरे लाल फूलों की चादर ओढ़कर आनंद का परचम लहराता है, हर कोई उसे खोजकर देखता है। उसके फूलों को चुनता है और घंटों उसके रंग को निहारता हुआ, गुलमोहर के फूल, पत्ती, शाखा छाया हर चीज के फायदे और सुंदरता पर बोलता है। ठीक ऐसे ही तुम अपने गणितीय अभ्यास को ले सकते हो। अपने गुणों की मदद से अपना हुनर निखारते चलो एक दिन हर कोई तुम पर, तुम्हारे गुण और काबिलियत पर बात करेगा।’ प्रस्तुति : पूनम पांडे