मम्मी मुझ को भी दिलवा दो, रंग-बिरंगी एक पतंग।
मैं भी तो खूब उड़ाऊंगा, गुल्लू भैया के संग।
डोरी ला दो, मांझा ला दो, और दिला दो एक चरखी।
खुलकर खूब उड़ाऊंगा मैं, बात नहीं कोई डर की।
चौड़ी छत है, खुला गगन है, मस्ती भरी चले पवन है।
मेला लगा है पतंगों का, सजा सजाया ये गगन है।
मम्मी अब बात जरा मानो, नहीं करूंगा तुम को तंग।
मैं भी तो खूब पतंग उड़ाऊंगा, गुल्लू भैया के संग।
-गोविन्द भारद्वाज
पतंगें उड़ रही हैं
पतंगें उड़ रही हैं, बैठ डोरी आगे बढ़ रही हैं
लाल पीली हरी अनेक रंगों की
उड़ रही आकाश में चाहत उमंगों की
नयी-नयी मंजिलें गढ़ रही हैं, पतंगें उड़ रही हैं
बच्चों का उल्लास देखो, और उनका प्रयास देखो
कोई नीची कोई ऊंची, हर पल ऊपर चढ़ रही हैं
रुक जाती हवा जब जब, दम घुटता उनका तब तब
देखकर ऐसी दशा को, सबकी धड़कन बढ़ रही है
शून्य भरे आकाश में, बसा ली है जिसने बस्ती
तन-तनकर जता रही हक़परस्ती
इस अति उत्साह में, अपनों से ही लड़ रही हैं
पतंगें उड़ रही हैं
– व्यग्र पाण्डे