सत्यवीर नाहड़िया
कभी जापान तक सीमित रहने वाली पांंच, सात, पांच वर्णों के क्रम में बंधी सत्रह अक्षरों की छोटी-सी कविता हाइकु आज देश और दुनिया में अपनी विशिष्ट मौलिक पहचान बना चुकी है। क्षणिका की भांति गागर में सागर रखने वाला यह जापानी छंद भारत की तमाम भाषाओं तथा बोलियों तक पहुंच चुका है।
आलोच्य कृति ‘मन बादल’ के माध्यम से हाइकु के मूल स्वर एवं तत्त्वों को समझा जा सकता है। वरिष्ठ रचनाकार डॉ. कृष्णलता यादव ने इस हाइकु संग्रह के माध्यम से इस विधा को नई ऊंचाइयां प्रदान की हैं। अपनी चौदहवीं पुस्तक के साथ इसी साधना से अवतरित हुई हैं। कुछ उदाहरण द्रष्टव्य हैं…
दूब-सा हरा/ मेरा यह शगल/ लेखनी जड़ा, खिला देती है/ मौसम की मेहर/ धूल में फूल, अति सुहाने/ गीत मौसम वाले/ पात गा रहे, धरती माता/ खोल कर रखती/ सब का खाता, बरखा आई/ प्रकृति मुस्कराई/ दामन धुला, जेठ तपाया/ आषाढ़ बरसाया/ सावन हरा, रिझाती रही/ सतरंगी पोशाक/ बाग बगीचे।
रचनाकार ने प्रकृति एवं लोक सांस्कृतिक पक्ष को जीवंत बनाने के लिए लोक में पगी दुर्लभ शब्दावली का इन छंदों की भावभूमि के जरूरत के अनुसार प्रयोग करके विलुप्त होती शब्दावली का संरक्षण एवं संवर्धन भी किया है, जैसे सोनपंछी, जियरा, प्रेम-समुद, समय-तखती, सीरनी, अंसुवन, सवासेरिया, उलूक-व्यवस्था, हाथ-उधारी शावक-समाज, फसली-सोना, सुखाड़ आदि। पुस्तक की भूमिका में वरिष्ठ रचनाकार डॉ. घमंडीलाल अग्रवाल ने इस कृति को कवयित्री के बहुमुखी काव्य कौशल का जीवंत प्रमाण उचित ही बताया है।
कुल मिलाकर यह संग्रह रचनाकार की अनूठी साधना के बूते पर हाइकु विधा को समृद्ध करते हुए मानक हाइकु संग्रह के रूप में अपनी विशिष्ट मौलिक पहचान बनाएगा- ऐसा विश्वास है।
पुस्तक : मन बादल रचनाकार : कृष्णलता यादव प्रकाशन : स्वयं प्रकाशित पृष्ठ : 112 मूल्य : रु. 150.