सतीश सिंह
भारत उत्सवधर्मियों का देश है। यहां त्योहारों को उत्सव की तरह मनाने का चलन है। त्योहार लोगों के जीवन में उल्लास का रंग भर देते हैं, साथ ही साथ देश की आर्थिकी को भी मजबूत करने का काम करते हैं। ये रोजगार सृजन के भी स्रोत हैं। त्योहारों से स्थायी रोजगार सृजित नहीं होते हैं, लेकिन स्थानीय कामगारों, कलाकारों और शिल्पकारों को अस्थायी तौर पर कुछ दिनों या कुछ महीनों के लिए जरूर रोजगार मिल जाता है। इससे निजी अंतिम उपभोग में इजाफा होता है, जिससे मांग और आपूर्ति में बेहतरी आती है। साथ ही, विविध क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों में इजाफा होता है।
पश्चिम बंगाल और पूर्वी भारत के बिहार, झारखंड और ओडिसा में दुर्गा पूजा पर्व विशेष रूप से मनाया जाता है। दुर्गा पूजा के उत्सव में प्रतिमा बनाने वाले कुम्हार, दुर्गा मां के जेवर बनाने वाले कलाकार, नाटक करने वाले कलाकार, नृत्य-संगीत, होटल, रेस्टोरेंट, पर्यटन आदि उद्योगों को बढ़ावा मिलता है।
यूनेस्को ने 2021 में दुर्गा पूजा को ‘अमूर्त सांस्कृतिक विरासत’ घोषित कर दिया है, जिससे विदेशी पर्यटकों के आने की संभावना बढ़ी है। कोलकाता के रहवासियों ने यूनेस्को के प्रति अपनी कृतज्ञता एक कार्निवल आयोजित करके प्रकट की है।
वर्ष 2019 में पश्चिम बंगाल में लगभग 43,000 दुर्गा प्रतिमाओं का निर्माण किया गया था, जिससे कारोबार को अकूत बल मिला था। वर्ष 2019 में दुर्गा पूजा के दौरान हुए कारोबार पर ब्रिटिश काउंसिल ने एक अध्ययन किया है, जिसके अनुसार वर्ष 2019 के दौरान दुर्गा पूजा में 32,377 करोड़ रुपये का व्यापार हुआ, जो पश्चिम बंगाल के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 2.58 प्रतिशत था। इस राशि में खुदरा क्षेत्र की हिस्सेदारी 27,364 करोड़ रुपये की थी। एक अनुमान के अनुसार, इस साल देश में दुर्गा पूजा के दौरान लगभग 1.25 से 1.5 लाख करोड़ रुपये का कारोबार होने का अनुमान है।
इस साल 40000 से अधिक पूजा पंडाल कोलकाता में बने। ममता दीदी की सरकार ने पंडाल निर्माण हेतु सभी पूजा समितियों को 60,000 रुपये (प्रत्येक) का अनुदान दिया। साथ ही, पूजा के दौरान खपत होने वाली बिजली पर 60 प्रतिशत की छूट देने की घोषणा की है। चूंकि, अब कोरोना महामारी का डर खत्म हो चुका है। इसलिए, पश्चिम बंगाल में इस साल दुर्गा पूजा लोगों ने बढ़-चढ़ कर मनायी। इस साल पूजा में 40 से 45 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।
बिहार की राजधानी पटना में 3000 से अधिक पंडाल बनाये गये थे। प्रतिमा, पंडाल और लाइटिंग में 125 करोड़ रुपये से अधिक खर्च हुए। पंडालों के निर्माण में 2.5 लाख रुपये से 10 लाख रुपये तक खर्च किए गए। छोटे पंडालों की संख्या 1600 थी, मझौले पंडालों की संख्या 1100 और बड़े पंडालों की संख्या 300 रही। पंडाल, लाइटिंग और पूजा की सामग्रियों की कीमतों में लगभग 25 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। फिर भी, पूजा समितियों ने पूरे उत्साह से दुर्गा पूजा का आयोजन किया है। झारखंड की राजधानी रांची में इस साल दुर्गा पूजा पर 386 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान रहा, क्योंकि झारखंड में दुर्गा पूजा के दौरान नये वाहन खरीदने की प्रथा है। रांची में इस साल पूजा के दौरान 3000 से अधिक दोपहिया वाहन बेचे जाने का अनुमान रहा।
कोरोना काल के बाद दुर्गा पूजा के लिए धन का सबसे प्रमुख स्रोत प्रायोजन है। बैंकों से लेकर रोजमर्रा के इस्तेमाल में कारोबार करने वाली कंपनियों, उपभोक्ता सामान से जुड़ी कंपनियों ने इस वर्ष दुर्गा पूजा को प्रायोजित किया है। नामचीन पूजा पंडाल, पंडाल के द्वार, खंभे, बैनर और स्टॉल प्रायोजन के लिए मुहैया करवाते हैं। विज्ञापन से भी दुर्गा पूजा के लिए पैसे आते हैं।
इस वर्ष दीवाली पूरे देश में 24 अक्तूबर को धूमधाम से मनायी जायेगी। दीवाली में लक्ष्मी मां की पूजा की जाती है, जिन्हें धन की देवी माना जाता है। इस त्योहार में दोस्तों और रिश्तेदारों के बीच मिठाइयों का आदान-प्रदान किया जाता है। कुम्हार दीये और खिलौने बनाते हैं। लोग पटाखे जलाकर खुशी का इजहार करते हैं, जिसके कारण पटाखे का कारोबार बड़े पैमाने पर किया जाता है। हालांकि, धीरे-धीरे इस त्योहार में स्वदेशी की जगह चीन में बने दीये, खिलौने और लक्ष्मी मां की मूर्तियों ने भारतीय बाजार पर कब्जा कर लिया है। दीवाली से दो दिन पहले धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन सोना, चांदी और धातु के बर्तन खरीदने का रिवाज है। नए वाहन भी इस त्योहार में खूब खरीदे जाते हैं।
अखिल भारतीय व्यापार परिसंघ (सीएआईटी) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, कोरोना महामारी के बावजूद वर्ष 2021 में दीवाली के दौरान 1.25 लाख करोड़ रुपये का कारोबार किया गया था, जो विगत 10 सालों का रिकॉर्ड था। सीएआईटी के मुताबिक देशभर में चीनी उत्पादों के बहिष्कार की मुहिम चलाये जाने की वजह से चीन को वर्ष 2019 में लगभग 50 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था और स्थानीय कारीगरों, शिल्पकारों, कुम्हारों आदि की कमाई में तेजी आई थी। सीएआईटी के अनुमान के अनुसार दीवाली में कुल कारोबार 1.5 से 1.75 लाख करोड़ रुपये की सीमा को पार कर सकता है, क्योंकि विगत 2 सालों से आमजन कोरोना महामारी की वजह से परेशान थे। लेकिन इस साल वे खुद को उत्सव के रंग में सराबोर करना चाहते हैं।