पिछले दिनों राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र योजना बोर्ड ने एनसीआर को 100 किलोमीटर के दायरे में समेटने वाला मसौदा योजना तैयार किया। दिल्ली से जुड़े हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान ने नये मसौदे के लिए अपनी-अपनी राय दी। एनसीआर के साथ और अधिक क्षेत्रों को जोड़ने का मामला हो या कुछ इलाकों को कम करने का, राज्यों की राय अलग-अलग है। राजस्थान और अधिक इलाके जोड़ने का इच्छुक है, उत्तर प्रदेश वर्तमान कवायद से संतुष्ट है, लेकिन हरियाणा अभी दुविधा में है। असल में एनसीआर के साथ रहते हुए सुविधाएं हैं तो नियम-कानूनों की दुविधाएं भी हैं। एनसीआर योजना बोर्ड की नयी कवायद और सुविधा-दुविधा को समझा रहे हैं -धीरज ढिल्लों
देश की राजधानी दिल्ली और आर्थिक राजधानी मुंबई में समानता और असमानता की बात पर एक बार मशहूर गीतकार प्रसून जोशी ने कहा था कि मुंबई फैल रही है, लेकिन दिल्ली ऊपर की तरफ बढ़ रही है। मुंबई में तो नवी मुंबई बन रही है, लेकिन दिल्ली के पास सीमित ज़मीन है। इसलिए दिल्ली फैल नहीं सकती। ऊंची इमारतों की भी एक सीमा है। उनकी बात बिल्कुल ठीक ही है। दिल्ली के न फैल सकने की बात तो ठीक है, साथ ही यह बात भी उतनी ही सही है कि दिल्ली के आसपास रहने वाले लोगों का मुंह दिल्ली की तरफ रहता है। उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के कुछ इलाके हों या नोएडा के। हरियाणा का फरीदाबाद, गुड़गांव, बहादुरगढ़ हो या बल्लभगढ़। इसी तरह राजस्थान का भिवाड़ी हो या आसपास का कोई और इलाका। इन क्षेत्रों में रहने वाले ज्यादातर लोग खुद को दिल्ली का ही बोलते हैं। कुछ-कुछ यह सही भी है क्योंकि इन इलाकों में बनीं सैकड़ों कॉलोनियों के हजारों लोग प्रतिदिन दिल्ली ही अपने रोज़गार के सिलसिले में जाते हैं। इसीलिए तो यह भी कहा जाता है कि दिल्ली की आबादी दिन में कुछ और, रात को कुछ और होती है। बेशक इस इलाके के लोग खुद को दिल्ली वाला कहलाना पसंद करें, लेकिन सरकारों की कोशिश रहती है कि दिल्ली पर अब भार न बढ़े। कई बार ऐसा कहा भी गया तो वह सियासी मुद्दा बन गया। ऐसे में राय लगभग हर सियासी दल यही रखता है, लेकिन उसे बोलता कोई नहीं। एक तरफ दिल्ली से जुड़ाव और दूसरी तरफ समस्याएं। पिछले दिनों चर्चा चली कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) को समेटा जाये। यानी पहले से चल रही एनसीआर विस्तार की कवायद के इतर इसे कुछ कम किया जाये। सभी राज्यों से योजनाएं मांगी गयी। सबने अपने-अपने हिसाब से राय दी।
जैसा कि हम जानते हैं कि एक तरफ तो दिल्ली फैल नहीं सकती, दूसरी तरफ दिल्ली के करीब रहने वालों का मुंह दिल्ली की तरफ रहता है। इसीलिए एनसीआर का कांसेप्ट आया। इसके लिए बाकायदा एनसीआर प्लानिंग बोर्ड बनाया गया। अपने रीजनल प्लान के जरिए सुनियोजित विकास की कोशिश के साथ ही एनसीआर प्लानिंग बोर्ड अधिसूचित क्षेत्र में आने वाले विकास प्राधिकरणों और नगर निकायों को वित्तीय सहायता भी उपलब्ध कराता है ताकि उसकी परिकल्पना को हकीकत की धरातल पर उतारने में मदद मिल सके। एनसीआर प्लानिंग बोर्ड का प्रयास रहा है कि दिल्ली की 100 किलोमीटर की परिधि वाले दिल्ली की ओर पलायन न करें, ताकि दिल्ली पर आबादी का बोझ एक सीमा को न लांघे। इसके लिए हाई-वे कोरिडोर और रैपिड रीजनल ट्रांसपोर्ट सिस्टम (आरआरटीएस) की परिकल्पना की गई। करीब दो दशक पहले की गई यह परिकल्पना अब हाईस्पीड ट्रेन के रूप में धरातल पर आती भी दिख रही है। लेकिन, दिल्ली से सटे हुए जिन (उत्तर प्रदेश, हरियाणा, और राजस्थान) राज्यों के क्षेत्र को शामिल करते हुए एनसीआर बनाया गया, भौगोलिक विभिन्नताओं के कारण उनकी जरूरतें और उम्मीदें अलग-अलग हो जाती हैं। अब एरिया की बात को ही ले लीजिए। मोटे तौर पर इन राज्यों के दिल्ली की सौ किलोमीटर की परिधि में आने वाले क्षेत्र को एनसीआर में शामिल किया गया था, लेकिन बीच-बीच में राज्य अपने क्षेत्र में कुछ घटाने-बढाने की सिफारिशें करते रहते। एनसीआर प्लानिंग बोर्ड ने इस झमेले को खत्म करने के इरादे से सोचा कि क्यों न राज्यों से ही प्रस्ताव मांग कर एक बार एनसीआर की बाउंड्री तय कर ली जाए। राज्यों से प्रस्ताव मांगे गए तो तीनों की अपनी-अपनी राय थी। राजस्थान क्योंकि क्षेत्रफल के हिसाब से काफी बड़ा है तो उसने सौ किलोमीटर की परिधि को बढाकर डेढ़ सौ किलोमीटर करने का प्रस्ताव एनसीआर प्लानिंग बोर्ड को भेज दिया।
हरियाणा की अपनी पीड़ा, यूपी का अपना तर्क
अब कुल 22 जिलों वाले हरियाणा के 14 जिले पहले ही एनसीआर में हैं। आधे से भी ज्यादा जिले एनसीआर में दिए बैठे हरियाणा की अपनी पीड़ा है। एनसीआर में ग्रेप लागू हो तो आधे से ज्यादा स्टेट में काम धंधे ठप होने की पीड़ा। इतना ही नहीं सबसे बड़ी समस्या तो पुराने वाहनों की है। एनसीआर में डीजल वाहनों की आयु केवल दस साल और पेट्रोल वाहनों की आयु केवल 15 साल निर्धारित है। ऐसे में जब एनसीआर प्लानिंग बोर्ड ने एनसीआर की बाउंड्री के लिए प्रस्ताव मांगा तो हरियाणा ने इसे घटाकर 50 किलोमीटर करने की सिफारिश कर दी। शहर, जो अब एनसीआर में आते हैं वे रहें, बाकी ईस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेस-वे और केएमपी को एनसीआर की सीमा मान लिया जाए। साथ में हरियाणा ने यह भी कहा कि हाई-वे कोरिडोर के मामले में एनसीआर प्लानिंग बोर्ड अपनी पुरानी बाउंड्री तक काबिज रहे, उसे कोई एतराज नहीं है।
दरअसल हाई-वे कॉरीडोर में हाई-वे के दोनों ओर एक किलोमीटर तक के क्षेत्र को लिया जाता है और एनसीआर प्लानिंग बोर्ड इस क्षेत्र को इस उद्देश्य से विकसित करता है कि आवागमन बेहतर और फास्ट होने के साथ ही छोटे कमर्शियल और औद्योगिक हब विकसित हो सकें ताकि लोगों का दिल्ली की ओर पलायन रोका जा सके।
75 जिलों वाले उत्तर प्रदेश के मात्र सात जिले एनसीआर में आते हैं। यूपी की ओर से एनसीआर प्लानिंग बोर्ड को प्रस्ताव मिला कि दिल्ली से सौ किलोमीटर की परिधि ही बेहतर विकल्प है। यही मुनासिफ है। अपनी बोर्ड बैठक में एनसीआर प्लानिंग बोर्ड ने यूपी के प्रस्ताव को ही लागू रखने को सैद्धांतिक मंजूरी देते हुए मास्टर प्लान-2041 को फौरी मंजूरी दे दी। साथ ही इसे धरातल पर उतारने से पहले आपत्तियां आमंत्रित करने का भी निर्णय लिया है, यानी निर्णय होना अभी बाकी है। ऐसे में स्वभाविक है कि यूपी मस्त है। उसके क्षेत्र में कोई अंतर नहीं आने वाला। सबसे ज्यादा और गंभीर चिंता है हरियाणा की।
आधे से ज्यादा जिलों में एनसीआर के लिए जारी गाइडलाइन्स लागू जो होती हैं। हरियाणा की अपनी पीड़ा है लेकिन एनसीआर प्लानिंग बोर्ड के सामने गीतकार प्रसून जोशी की वह चिंता भी है कि दिल्ली का फैलाव चारों ओर न होकर सिर्फ ऊपर की ओर हो रहा है। यानी दिल्ली में आबादी के घनत्व की चिंता। इसके चलते दिल्ली पर प्रदूषण जैसे संकट आ रहे हैं।
करनाल और जींद हो सकते हैं बाहर
दिल्ली से सौ किलोमीटर की परिधि में अगर एनसीआर सिमटा तो इसका उत्तर प्रदेश में कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन राजस्थान और हरियाणा में काफी क्षेत्र कम हो जाएगा। हालांकि अभी एनसीआर प्लानिंग बोर्ड ने इस प्रस्ताव पर आपत्तियां आमंत्रित करने के निर्देश दिए हैं। आपत्तियों की सुनवाई और उनके निस्तारण के बाद ही कोई निर्णय लिया जा सकेगा। लेकिन हरियाणा राज्य लगातार इस बात की पैरवी में लगा है कि एनसीआर में शामिल उसका क्षेत्र कम किया जाए। कुल मिलाकर यदि एनसीआर की सीमा का पुनर्निर्धारण हुआ तो सबसे बाद में एनसीआर में जुड़े करनाल और जींद जिले के बाहर होने की पूरी संभावना है। इसके अलावा कैथल और भिवानी जनपद भी आंशिक रूप से प्रभावित होंगे।
बड़े शहरों को क्यों एनसीआर में रखना चाहता है हरियाणा
अपने बड़े शहरों को हरियाणा एनसीआर में ही रखना चाहता है, उसका बड़ा कारण यह है कि शहरों के सुनियोजित विकास के लिए एनसीआर प्लानिंग बोर्ड सस्ता लोन उपलब्ध कराता है और बोर्ड से मंजूर परियोजनाओं पर 15% तक अनुदान भी दिया जाता है। बोर्ड पेयजल, सीवरेज, कचरा प्रबंधन, जल निकासी, सड़क और रेल ओवर ब्रिज के लिए राज्य सरकारों को सस्ती ब्याज दरों पर लोन उपलब्ध कराता है।
एनसीआर में अभी तीन राज्यो के 23 जिले
अभी के एनसीआर में तीन राज्यों के 23 जिले शामिल हैं। इसका विवरण निम्नलिखित है।
हरियाणा : इस राज्य से एनसीआर में शामिल सबसे ज्यादा 14 जिलों में फरीदाबाद, गुरुग्राम, नूंह, रोहतक, सोनीपत, रेवाड़ी, झज्जर, पानीपत, पलवल, भिवानी, दादरी, महेंद्रगढ़, जींद और करनाल शामिल हैं। भिवानी और महेंद्रगढ़ जनपद को 2013 में एनसीआर में शामिल किया गया था। उसके बाद जींद और करनाल जनपद एनसीआर का हिस्सा बने।
उत्तर प्रदेश : गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, बुलंदशहर, हापुड़, मेरठ, बागपत और मुजफ्फरनगर शामिल हैं। इसके अलावा चार जिलों मथुरा, अलीगढ़, हाथरस और बिजनौर को भी एनसीआर में शामिल करने के लिए बात हुई, लेकिन यह कवायद धरातल पर नहीं उतर पाई।
राजस्थान : अलवर और भरतपुर। भरतपुर जनपद भी 2013 में एनसीआर में शामिल हुआ, उससे पहले राजस्थान का केवल एक ही जनपद एनसीआर में शामिल था। एनसीआर प्लानिंग बोर्ड की ओर से 2013 में ही काउंटर मेग्नेट शहरों की सूची में राजस्थान की राजधानी जयपुर को भी शामिल कर लिया गया था।
बाउंड्री फिक्स की कवायद किसलिए?
दरअसल एनसीआर प्लानिंग बोर्ड ने सब-रीजन प्लान-2041 तैयार किया। प्रयास इस बात का है कि इस प्लान के जरिए एनसीआर की बाउंड्री फिक्स करने के बाद बेहतर ट्रैफिक मैनेजमेंट, स्पेशल पुलिसिंग जैसी व्यवस्थाओं पर काम हो ताकि एनसीआर रीजन अच्छी और आधुनिक सुविधाओं के जरिए एक विशेष दर्जा हासिल कर सके। इसके लिए एनसीआर प्लानिंग बोर्ड ने सब-रीजनल प्लान-2041 में दिल्ली से ट्रैफिक लोड कम करने के लिए आउटर रिंग रोड के बाहर तीन सर्कुलर रीजनल एक्सप्रेस-वे (सीआरई) बनाने की परिकल्पना की है। ट्रैफिक लोड कम होने के साथ ही सर्कुलर रीजनल एक्सप्रेस-वे प्रदूषण कम करने में भी मददगार साबित होंगे। एनसीआर की सीमा में 230 शहर और कस्बे आते हैं। अकेले दिल्ली में ही एक करोड़ से ज्यादा वाहन हैं। नयी सड़कों के निर्माण से वाहनों का दवाब कम होगा, जाहिर तौर पर इससे प्रदूषण से राहत भी मिलेगी। समझिए सीआरई को-
सीआरई-एक : पूरी तरह एलीवेटेड होगा और दिल्ली क्षेत्र में आउटर रिंग रोड के बाहर पूरी दिल्ली को जोड़ने का काम करेगा। स्लिप रोड के जरिए सड़कों को जोड़ा जाएगा। बिना रेड लाइट पर रुके आवागमन होने से भी प्रदूषण पर अंकुश लगेगा।
सीआरई-दो : रोहतक से पानीपत, शामली, मेरठ, जेवर, नूंह, भिवाड़ी, रेवाड़ी, झज्जर और फिर रोहतक से जोड़ा जाएगा।
सीआरई-तीन : सीआरई-दो के बाहर सीआरई तीन बनेगा। इसे करनाल से शुरू करते हुए मुजफ्फरनगर, गढ़मुक्तेश्वर, नरोरा, अलीगढ़, मथुरा, अलवर, महेंद्रगढ़, चरखी दादरी, भिवानी, जींद, कैथल और फिर करनाल से जोड़ने की योजना है।
दो आर्बिटल रेल कोरिडोर भी बनेंगे
केवल सड़क मार्ग से ही नहीं बल्कि रेलमार्ग के जरिए भी एनसीआर में यातायात सुगम करने की तैयारी एनसीआर प्लानिंग बोर्ड कर रहा है। सब रीजनल प्लान-2041 में दो आर्बिटल रेल कोरिडोर (ओआरसी) बनाने का भी प्रावधान किया गया है। इनकी योजना निम्नवत है-
ओआरसी-एक : सोनीपत, पलवल, खुर्जा, मेरठ, बागपत और फिर सोनीपत को जोड़ेगा। इसे 2025 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। अभी तक रेल यातायात के लिए भी एक से दूसरे राज्य में जाने के लिए दिल्ली से गुजरना पड़ता है। फिर ऐसा नहीं करना पड़ेगा।
ओआरसी-दो : आर्बिटल रेल कॉरीडोर दो के जरिए पानीपत, शामली, मेरठ, जेवर, नूंह, भिवाड़ी, रेवाड़ी, झज्जर, रोहतक और फिर पानीपत को जोड़ने की योजना है।
एयर पुलिसिंग की भी है तैयारी
एनसीआर प्लानिंग बोर्ड द्वारा तैयार कराए गए सब-रीजनल प्लान-2041 में अन्य आधुनिक सुविधाओं के अलावा एनसीआर में एयर पुलिसिंग की भी परिकल्पना की गयी है। बोर्ड के ड्राफ्ट प्लान के मुताबिक एनसीआर में आने वाले सभी जिला मुख्यालयों पर यूएवी ड्रोन और हेलीकॉप्टर के लिए हैलीपैड और पार्किंग की व्यवस्था होगी। इस व्यवस्था के लिए ड्राफ्ट में 2026 की समय सीमा भी निर्धारित की गई है। ड्राफ्ट में एयर पुलिसिंग और हवाई सर्वे के लिए आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने की बात भी कही गई है। यूएवी ड्रोन का उपयोग व्यावसायिक और पुलिसिंग से जुड़ी गतिविधियों के लिए करने की योजना है।