सहीराम
नहीं जी, कोई उलटवांसी नहीं है। पर अगर है भी तो ऐसी उलटवांसियां इन दिनों बिहार में खूब प्रचलन में हैं। जैसे जो हार गया वह जीते जैसा जोश में है और जो जीत गया वह हारे जैसा पस्त है। ऐसा ही एक उलटवांसीनुमा नतीजा यह रहा कि एनडीए गठबंधन की जीत में भाजपा बड़ी पार्टी निकली और नीतीशजी की पार्टी छोटी निकली। जबकि चुनाव भाजपा ने छोटी पार्टी के रूप में और नीतीशजी की पार्टी ने बड़ी पार्टी के रूप में लड़ा था। लेकिन बड़ी पार्टी ने छोटी पार्टी वाले से कहा-नीतीशजी मुख्यमंत्री तो आप ही होंगे। पता नहीं नतीजों से या इस आॅफर से नीतीशजी को ऐसा सदमा लगा कि तीन दिन तक कुछ बोले ही नहीं।
वैसे सबसे बड़ी पार्टी तो बिहार में तेजस्वी की है, पर वह सरकार नहीं बना सकी। कहते हैं कांग्रेस ने खुद छोटा होकर उसे छोटा कर दिया। भाजपा ने बड़ी होकर नीतीशजी को बड़ा कर दिया। नीतीशजी को छोटा करने के चक्कर में चिराग पासवान तो इतने छोटे हो गए कि जरा सा कुछ इधर-उधर हो जाता तो शून्य पर ही होते। लेकिन शून्य की विशेषता है कि अगर वह दूसरे से मिल जाए तो बड़ा हो जाता है। चिराग भी मोदीजी-शाहजी से मिलकर इतने बड़े हो चुके हैं कि उन्हें लगता है कि नीतीशजी उनसे थर-थर कांपते हैं।
हो सकता है कि वे संतों की तरह यह मानते हों कि खुद छोटा होकर ही बड़ा हुआ जा सकता है। संत भी तो यही कहते थे कि बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर। अब पता नहीं संतों की इस वाणी का कि क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात, का अनुसरण करते हुए नीतीशजी उन्हें माफ करेंगे या नहीं। लेकिन उन्होंने छोटन की तरह उत्पात खूब मचाया। जो भी हो, छोटी पार्टी वाले नीतीशजी को कुर्सी देकर भाजपा ने बड़ा दिल दिखाया। ऐसा ही दिल अगर वह महाराष्ट्र में भी दिखा देती तो आज वहां भी सरकार में होती। अरे भाई शिवसेना की यही तो मांग थी कि मुख्यमंत्री हमारा हो। लेकिन वहां शिवसेना की बात भाजपा ने नहीं मानी। लेकिन बिहार में छोटी पार्टी वाले नीतीश बाबू काे मुख्यमंत्री बना दिया। इसे दोहरे मानदंड कहने की बजाय रणनीति या कार्यनीति जैसा कुछ कहा जा सकता है।
वास्तव में बिहार में नीतीशजी को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने बड़े भाई वाला फर्ज अदा किया। अब नीतीशजी और मोदीजी अगर भाई-भाई हैं तो मोदीजी निश्चित ही बड़े भाई की भूमिका में रहेंगे। इसे बिग बाॅस की तरह नहीं देखना चाहिए। बड़े भाई की तरह ही देखना चाहिए क्योंकि बिग बाॅस तो डांट भी सकता है, लेकिन बड़ा भाई दुलार करता है। उम्मीद करनी चाहिए कि नीतीश बाबू मोदीजी के दुलरवा होंगे। पर जब मोदीजी, नीतीशजी को दुलार रहे होंगे तो क्या नीतीशजी इस पर शर्मसार हो रहे होंगे कि देखो मोदीजी ने तो उन्हें कुर्सी दे दी और कभी वे ऐसे थे कि उन्होंने मोदीजी के सामने से खाने की थाली हटा ली थी।