नृपेन्द्र अभिषेक नृप
पृथ्वी का सबसे बुद्धिमान प्राणी इंसान होता है। लेकिन इंसान की फितरत होती है कि वह कभी संतुष्ट नहीं होता। लेकिन जीवन की सच्चाई देखी जाए तो किसी वस्तु या किसी चीज़ के मिलने से इंसान को संतुष्टि नहीं मिलती है, संतुष्टि हमारी सोच में होनी चाहिए। हर इंसान में यह एक मानसिक बीमारी है कि उसे कुछ मिलने के बाद और पाने की इच्छा जाग्रत होती है और पुनः असंतुष्ट हो जाता है। लियो टॉलस्टाय कहते हैं, ‘अगर आप पूर्णता के लिए देख रहे हो तो आप कभी भी संतुष्ट नहीं होंगे।’
संतुष्टि मन की अति गहराई में व्याप्त अति सूक्ष्म व प्रभावशाली अदृश्य शक्ति है जो सभी मनुष्यों में स्वयं के अंतर्मन में निहित होती है। जिसे भौतिक जगत में खोजते हुए कभी प्राप्त नहीं किया जा सकता, इसे मात्र अपने अंदर ही खोजने की आवश्यकता है। बिल्कुल उसी तरह जिस तरह एक मृग कस्तूरी की सुगंध को महसूस करते हुए खोजता रहता है पर वह उसे प्राप्त नहीं होती जो उसके अंदर है।
एपिकर्स कहते हैं, ‘वह जो थोड़े में कभी संतुष्ट नहीं होता, वह अधिक होने पर भी कभी संतुष्ट नहीं हो पायेगा।’ भौतिक जगत हमें अपनी ओर आकर्षित करता है, जिसके कारण हमारी इच्छाएं हमेशा बढ़ती रहती हैं। एक इच्छा पूरी होते ही हमारी लालसा और बढ़ जाती है। तथा तत्काल प्रभाव से दूसरी इच्छा का जन्म हो जाता है। यह प्रक्रिया अनवरत रूप में बढ़ती ही रहती है, जिसके फलस्वरूप हम अपने जीवन में दुखी ही रहते हैं। जीवन में कितने भी भौतिक सुख क्यों न हों लेकिन असंतोष हमेशा बना रहता है जो दुख का सबसे प्रमुख कारण है। इसी असंतोष को खत्म करने के लिए हमें संतुष्टि की आवश्यकता होती है।
हम अपने जीवन में कभी भी पूर्ण नहीं हो सकते है क्योंकि इस दुनिया में इच्छा का कोई अंत नहीं है। बुद्धिमान व्यक्ति वह होता है जो उन चीजों के लिए कभी शोक नहीं करता है जो उसके पास नहीं है, बल्कि उन चीजों के लिए खुश रहता है जो उसके पास हैं। ऐन ब्रैशेयर्स कहते हैं, ‘जो नहीं है उसकी इच्छा करके, जो है उसे मत बर्बाद करिए।’
मनुष्य महत्वाकांक्षी प्राणी है। वह जीवनपर्यन्त अपनी इच्छाओं की पूर्ति में लगा रहता है। जैसे ही उसकी एक इच्छा की पूर्ति हो जाती है, दूसरी इच्छा उसके मन में जाग जाती है और वह उस इच्छा की पूर्ति में लग जाता है, लेकिन इच्छाएं कभी पूर्ण नहीं होती हैं। वह इच्छाओं के अनंताकाश में ही भटकता रहता है, यही इच्छाएं उसके दुःख का कारण बनती रहती हैं।
संतुष्टि पाने के दो तरीके हैं। पहला यह कि अधिक से अधिक जमा करते रहें जो कि कभी सम्भव नहीं हो पाता है इसीलिए दूसरा रास्ता अपनाएं, जिसमें कि हमेशा हमें अल्प की इच्छा रखनी चाहिए। जिन्दगी जैसी भी हो या जो हमें मिला हो उसमें ज्यादा से ज्यादा खुश रहकर जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए।
हम स्वयं से जब यह कहें कि हमारी समस्त इच्छापूर्ति हो चुकी है और अब हम बिना किसी परिवर्तन के अपना जीवन प्रसन्नता के साथ आनंदित होते हुए बिताने के लिए तैयार हैं, शायद तब हम अपनी ज़िंदगी मे संतुष्ट हो सकते हैं। इसीलिए जितना है उसमें सन्तुष्ट रहने का प्रयास करें।