चंडीगढ़, 28 जुलाई (ट्रिन्यू)
बीड़ी-सिगरेट का धुआं वायु में निकोटिन के अलावा करीब 4000 से ज्यादा केमिकल हवा में छोड़ता है। पीने वाले की खुद की सेहत के साथ पर्यावरण को भी इससे भारी नुकसान हो रहा है। इतना ही नहीं जो लोग तंबाकू का सेवन भी नहीं करते लेकिन उनकी सोहबत में रहते हैं उन्हें भी इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं। यह बात आज पंजाब यूनिवर्सिटी के सेंटर फार पब्लिक हेल्थ के प्रोफेसर मनोज कुमार ने ‘यूथ फार टोबेको फ्री इंडिया’ अभियान के तहत नाडा इंडिया फाउंडेशन और पीयू के सेंटर फार पब्लिक हेल्थ एवं सोशल वर्क विभाग के सौजन्य से आयोजित वर्कशाप में कही। उन्होंने कहा कि तंबाकू से सांस से जुड़ी बीमारियों के साथ फेफड़ों और मुंह का कैंसर के अलावा हाइपरटेंशन और हृदय रोग होते हैं। शौक या फन के लिये पीने से शुरू करने वाले स्कूली बच्चों को कब इसकी लत पड़ जाती है किसी को पता ही नहीं चलता। उन्होंने कहा कि सिगरेट-बीड़ी का नशा आमतौर पर 13-15 की आयु में शुरू होता है जो सेहत और जेब दोनों पर ही बुरा असर डालता है। उन्होंने कहा कि पीने वालों में 10 फीसदी इसके आदी हैं जबकि 90 फीसदी कॉफी, फोन करते वक्त, दोस्तों की महफिल या फिर सोसायटी में बैठक के दौरान नशे का इस्तेमाल करते हैं।
कार्यक्रम में पीयू के डीपीआर एवं सोशल वर्क विभाग के प्रो. गौरव गौड़ ने कहा कि सेमिनार/व्याख्यान जैसे बाहरी कार्यक्रमों के अलावा भीतरी कार्यक्रम भी आवश्यक हैं जिसमें ऐसे विषय पाठ्यक्रम में जोड़े जायें। उन्होंने जोर दिया कि स्कूली बच्चों के व्यवहार को समझना आवश्यक है। नाडा इंडिया फाउंडेशन के चेयरमैन सुनील वात्स्यायन ने कहा कि तंबाकू हर साल 12.5 लाख लोगों की जान ले रहा है और पीड़ित परिवारों को आर्थिक तौर पर कमजोर बना रहा है। नशा छोड़ने के लिये वैकल्पिक थेरेपी के तौर पर चुइंगम और निकोटिन पैच आते हैं जिससे धीरे-धीरे इसकी लत छूटने लगती है। पंचकूला रेजीडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन के चेयरमैन एसके नायर ने अपने व्यक्तिगत अनुभव भी सांझा किये। अक्षय शर्मा, शताक्षी ने बताया कि पीएम को हजारों पोस्ट कार्ड भेजकर कोटपा में संशोधन की अपील की जा रही है।