अरुण नैथानी
दस साल से दुनिया में शतरंज के बेताज बादशाह और पांच बार विश्व चैंपियन नार्वे के मैगनस कार्लसन को चंद बाजियों में चित करने वाले भारतीय किशोर आर. प्रज्ञानानंद की चमत्कारिक जीत से देश अभिभूत है। हो भी क्यों न, जिस कार्लसन से दुनिया के शतरंज के खिलाड़ी सहमे रहते हैं उसे प्रज्ञानानंद ने चुटकियों में हरा दिया। विश्व विजेता हताशा में सिर पर हाथ रखकर बैठा रहा कि यह हो क्या गया। इस बड़े उलटफेर को करने वाले प्रज्ञानानंद ने देश-दुनिया को बता दिया कि आने वाले दिनों के लिये देश को एक नायाब हीरा मिला है, जिसे बस थोड़ा तराशने की जरूरत है। दुनिया के सबसे कम उम्र के ग्रैंडमास्टरों में शुमार प्रज्ञानानंद ने पिछले दिनों ऑनलाइन रैपिड शतरंज टूर्नामेंट एयरथिंग्स मास्टर्स के आठवें दौर में दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी मैगनस कार्लसन को हराकर बड़ा उलटफेर किया। प्रज्ञानानंद ने काले मोहरों से खेलते हुए सिर्फ 39 चालों में कार्लसन को परास्त कर दिया। इससे पहले प्रज्ञानानंद ने लगातार तीन बाजियां जीती थीं। दो बाजी ड्रॉ करवायीं। इससे पूर्व भी प्रज्ञानानंद वर्ष 2021 में वर्ल्ड चैंपियन मैगनस कार्लसन के साथ ड्राॅ खेल चुके हैं।
यह विडंबना ही है कि क्रिकेट के खुमार में जीने वाले देश में प्रज्ञानानंद वैसी सुर्खियां नहीं बटोर सके जैसी क्रिकटरों को मिलती हैं। मगर महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने प्रज्ञानानंद की जीत को अद्भुत बताया और इसे देश को गौरवान्वित करने वाला पल बताया। पांच बार के विश्व चैंपियन विश्वनाथन आनन्द ने उनकी प्रतिभा की मुक्त कंठ से प्रशंसा की। लेकिन एक बात तो तय है कि देश में सामान्य पारिवारिक पृष्ठभूमि के बीच संघर्षों से खुद को तराशने वाले खिलाड़ी ही देश की यश-कीर्ति पताका लहरा रहे हैं। हाल ही में अंडर-19 विश्वकप जीतने वाली क्रिकेट टीम से लेकर ओलंपिक तक तमाम ऐसे ही खिलाड़ी थे, जो कड़े संघर्षों की आंच में तपकर निखरे हैं। निश्चय ही प्रतिभा अभावों की तपिश से निखरती है। कड़ी मेहनत व परिवार के त्याग से दमकती है। प्रज्ञानानंद भी ऐसे ही संघर्षों से जूझते परिवार से निकले हैं। शारीरिक अपूर्णता से जूझते और बैंक में सेवारत पिता ने उनकी महंगी कोचिंग्स के लिये उधार लिया था ताकि परिवार की आकांक्षाओं को हकीकत बनाया जा सके। सवाल यह भी है कि जब गुदड़ी के लाल चमकने लगते हैं तो सरकारें पुरस्कार देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेती है। वास्तव में इन हीरों को उस वक्त तराशने की जरूरत होती है जब वे अभावों की खान से निकलने को संघर्ष कर रहे होते हैं। उसी वक्त इन हीरों को संभालने व मदद की जरूरत होती है।
बताते हैं कि सामान्य पारिवारिक पृष्ठभूमि वाले प्रज्ञानानंद की बड़ी बहन ने जब टीवी पर ज्यादा कार्टून फिल्में देखनी शुरू कीं तो मां ने उसे शतरंज का खेल खेलने को प्रेरित किया। भले ही बहन शतरंज में ज्यादा कुछ न कर पायी हो लेकिन उसे देख-देखकर प्रज्ञानानंद में शतरंज का ऐसा जुनून पैदा हुआ कि आज वे दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी को हराने में कामयाब रहे। आज उनकी उपलब्धि से हर देशवासी प्रफुल्लित है।
कभी नार्वे के खिलाड़ी मैगनस कार्लसन प्रज्ञानानंद के आदर्श हुआ करते थे। लेकिन आत्मविश्वास से भरे प्रज्ञानानंद ने खेल में उन्हें पछाड़ने में कोई भावनात्मक चूक नहीं दिखायी। साधारण नैन-नक्श वाले असाधारण प्रज्ञानानंद माथे पर चंदन लगाये अपने मोहरों पर बेहद एकाग्र नजर आते हैं। वे बेहद सहज रहते हैं। इस मुकाबले से पहले तनाव से मुक्त होने के लिये उन्होंने भारत-वेस्टइंडीज का मैच देखा। जब प्रज्ञानानंद ने अप्रत्याशित जीत हासिल की तो परिवार ने जीत के जश्न में उनको शामिल होने को कहा। इस पर प्रज्ञानानंद बोले- मैं आराम के लिये सोना चाहता हूं। निस्संदेह शिखर की कामयाबी हासिल करने वालों में उनकी एकाग्रता उनकी सफलता की कुंजी भी है। निस्संदेह प्रज्ञानानंद की यह जीत उनका आत्मविश्वास बढ़ाएगी और उनके दुनिया का नंबर एक खिलाड़ी बनने की राह प्रशस्त करेगी।
कहावत है न कि होनहार बिरवान के होते चिकने पात- प्रज्ञानानंद ने भी इस कहावत को चरितार्थ किया। आर. प्रज्ञानानंद दुनिया के सबसे युवा पांचवें ग्रैंडमास्टर हैं। उन्होंने वर्ष 2013 में अंडर-8 वर्ल्ड यूथ शतरंज चैंपियनशिप जीती थी। इसके बाद वर्ष 2015 में अंडर-10 के भी वर्ल्ड चैंपियन बने। वर्ष 2016 में दस साल की उम्र में दुनिया के सबसे युवा इंटरनेशनल मास्टर बने। वर्ष 2017 में वर्ल्ड जूनियर शतरंज चैंपियनशिप जीतने के बाद उन्हें पहली बार ग्रैंडमास्टर की उपाधि मिली। इसी तरह पिछले वर्ष उन्होंने पोल्गर चैलेंज जीता था। इतना ही नहीं, वर्ष 2021 में दुनिया के नंबर वन शतरंज खिलाड़ी मैगनस कार्लसन के साथ बाजी ड्रॉ करवाने में सफलता हासिल की थी।
शतरंज की दुनिया की इस नई सनसनी ने इस खेल में कई उलटफेर किये हैं। भारत के शतरंज जगत के बड़े सितारे और पांच बार विश्व चैंपियन रहे विश्वनाथन आनन्द 1988 में पहली बार ग्रैंड मास्टर बने थे। उसके बाद देश में भारतीय ग्रैंड मास्टरों की संख्या 73 हो गई है, लेकिन कोई भी शतरंज मास्टर आनन्द की बराबरी तक नहीं पहुंचा। लेकिन प्रज्ञानानंद ने भारतीय उम्मीदों को परवाज दी है। उन्हें भारत के किशोर शतरंज खिलाड़ियों में सबसे ज्यादा प्रतिभावान माना जा रहा है। कार्लसन का विजयरथ रोककर शतरंज की दुनिया में खलबली मचाने वाले प्रज्ञानानंद महज बारह साल की उम्र में ग्रैंडमास्टर बने। उन्होंने देश के दिग्गज शतरंज खिलाड़ी विश्वनाथन आनन्द का रिकॉर्ड तोड़ा, जिन्होंने 18 साल की उम्र में ग्रैंडमास्टर का खिताब हासिल किया था। देश को प्रज्ञानानंद से बहुत उम्मीदें हैं।