केवल तिवारी
किशोर मन में उठते किंतु-परंतु को समझने की कोशिश हर मां-बाप को करनी चाहिए, लेकिन बच्चे की उम्र के इस नाजुक मोड़ पर परिवार में कलह हो रही हो तो वह दौर खतरनाक होता है। कभी-कभार ये ‘नाजुक’ बच्चे ही ऐसे ‘मजबूत’ बनते हैं कि बड़ों के लिए सबक बनते हैं, लेकिन…। इसी लेकिन को अपने उपन्यास ‘आधा पुल’ में बेहतरीन तरीके से बुना है वरिष्ठ लेखक अमृतलाल मदान ने।
उनकी इस ताजा कृति में कोरोना काल की दुश्वारियों और परिवारों की टूटन का मार्मिक चित्रण किया गया है। प्रेम विवाह के बाद पति-पत्नी में खटपट। रंगमंच का ‘नायक’ असल जीवन में ‘खलनायक’ बन जाता है। उधर, सास-ससुर के ताने और इधर, एक पढ़ी-लिखी महिला की छटपटाहट। एक करीबी और अपने-से लगने वाले रिश्तेदार के घर मुंबई जाकर भी देख लिया, लेकिन सब जगह पिंड छुड़ाने जैसी स्थिति।
इन सभी परिस्थितियों में एक बच्चा पिस रहा है। उसके सपने हैं मां-बाप और दादा-दादी के साथ रहने के, लेकिन इन सपनों के हकीकत में बदलते-बदलते बहुत देर हो चुकी है। देर आयद, दुरुस्त आयद की तर्ज पर सब ठीक हो ही रहा था कि लॉकडाउन ने वहीं लाकर खड़ा किया। मदान साहब ने एक कुत्ते के साथ संवाद के जिस अनूठी शैली का प्रयोग अपने उपन्यास में किया है वह काबिले गौर और काबिले तारीफ है। एकाकी-सा हो चुका यह बच्चा कुत्ते को ही अपनी कहानी सुनाता है। जगह-जगह मुहावरों का प्रयोग और जानवर की खुशी, नाराजगी और सवाल पूछने का उसका अंदाज उपन्यास में निरंतरता बनाये रखता है। लेखक अमृतलाल मदान की शैली प्रवाहमयी है। उपन्यास जहां पठनीय है, वहीं कई सवाल भी उठाता है।
पुस्तक : आधा पुल लेखक : अमृतलाल मदान प्रकाशक : पारुल प्रकाशन, दिल्ली पृष्ठ : 119 मूल्य : रु. 200.