ऐसा नहीं है कि साल में एक दिन उत्सव मना लेने से योग के लक्ष्य पूरे हो जाते हैं। जीवन का हर क्षेत्र अनुशासन व संयम की मांग करता है। कह सकते हैं कि भोग-विलास के जीवन में योग एक स्पीड ब्रेकर का काम करता है। जब हम सहजता का व्यवहार करते हैं, गतिशील रहते हैं, हमारा सोना-जागना नियमित होता है तब ही हम सही मायनों में योग के वास्तविक लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं। नये शोध व अनुसंधान इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि योगमय जीवन से न केवल शारीरिक व मानसिक बल्कि आध्यात्मिक लक्ष्य हासिल किये जाते हैं। यह हमारा सौभाग्य है कि ऋषि-मुनियों ने पर्वतों की कंदराओं में सदियों के अनुभव से जो ज्ञान हासिल किया, उसका लाभ 21वीं सदी में पूरी दुनिया उठा रही है। भारत सरकार के प्रयासों के बाद जब संयुक्त राष्ट्र संघ की आम सभा ने योग को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्रदान की तो मतदान में 177 देशों ने इसका समर्थन किया। यह योग की वैश्विक स्वीकार्यता है। कल हमने उल्लास व नई ऊर्जा के साथ आठवां विश्व योग दिवस मनाया। लेकिन योग हमारी जीवन शैली का हिस्सा बनना चाहिए। अमेरिका व ब्रिटेन में आधुनिक शोध बता रहे हैं कि समय से सोने वाले और सुबह जल्दी उठने वाले स्वस्थ रहते हैं। लेकिन यही बात जब घर के लोग कहते हैं नई पीढ़ी के बच्चे स्वीकार नहीं करते। कहते हैं कि हमारी पाचन शक्ति को ऊर्जा देने वाली जठराग्नि सूर्य की ऊर्जा के साथ चलती है। यही वजह है कि योग में रात्रि में अल्प आहार की सलाह दी जाती है। प्राकृतिक चिकित्सा भी कम खाने पर बल देती है। कहा जाता है कि शरीर में पंचमहाभूतों में आकाश तत्व का भी स्थान होना चाहिए। सही मायनों में योगमय जीवन तब सार्थक होता है जब प्रकृति से सामंजस्य बनाकर चलते हैं, इससे उतने ही अधिक स्वस्थ रहते हैं। सूर्य की धूप, सुबह की ताजी हवा तथा शारीरिक सक्रियता दिन भर हमें तरोताजा रखती है।
दरअसल, सेहत के सूत्र में मानवीय व्यवहार का बड़ा महत्व होता है। महज आसन कर लेने से हम योग के लक्ष्यों को हासिल नहीं कर सकते। इसके लिये जरूरी है कि हमारे आचार-व्यवहार, खान-पान में सात्विकता होनी चाहिए। भोजन का तीखापन व निरामिष भोजन हमारे व्यवहार में तल्खी लाता है जिसको हम खाने के संयम और सांसों पर नियंत्रण से टाल सकते हैं। कुछ वर्षों पूर्व अमेरिका के एक विज्ञानी को इस बात के लिए नोबेल पुरस्कार मिला कि उन्होंने पता लगाया कि शरीर में अधिक आॅक्सीजन से कैंसर से प्रभावित कोशिकाओं पर काबू पाया जा सकता है। प्राणायाम यानी प्राणों के आयाम से हम यही करते हैं कि अपनी सांस लेने की क्षमता को बढ़ाते हैं। सामान्य तौर पर हमारे बैठने के तौर-तरीके व जीवन व्यवहार में सांस लेने की गुणवत्ता कम हो जाती है। शरीर में यदि आॅक्सीजन की मात्रा बढ़ती है तो कई प्रकार के विकार दूर होते हैं। खासकर मनोकायिक रोगों में प्राणायामों की बड़ी भूमिका सामने आई है। खासकर कोरोना संकट में योग व प्राणायाम की बड़ी भूमिका रही है। अब यहां तक कि पीजीआईएमआर चंडीगढ़ व एम्स दिल्ली में भी योग पर शोध व अनुसंधान के केंद्र स्थापित हुए हैं। निस्संदेह, भारत जैसे मुल्क में योग गरीब लोगों के लिये रामबाण औषधि है। एक तो महंगा उपचार आम आदमी की पहुंच से बाहर होता जा रहा है,वहीं इस उपचार के तमाम साइड इफेक्ट भी होते हैं। जबकि रोग के उपचार से बेहतर है कि उससे बचाव किया जाये। यह तभी संभव है जब योग व प्राकृतिक जीवन हमारी जीवनशैली का हिस्सा बनेगा। जिसके लिये जरूरी है कि हम हर रोज योग दिवस मनायें। आधुनिक जीवन शैली के तनाव व अवसाद से बचने का भी यही तरीका है। इससे ही हम सौ वर्ष जीने के आशीर्वाद को फलीभूत कर सकते हैं। जरूरत इस बात की भी है कि हमारा भोजन व जीवन व्यवहार संतुलित व प्रकृति के व्यवहार के अनुरूप हो।