दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 23 जून
हरियाणा के 18 नगर परिषद और 28 नगर पालिकाओं के चुनावों को कांग्रेस भले ही हल्के में ले रही हो, लेकिन इन चुनावों के नतीजे भविष्य की राजनीति को प्रभावित कर सकते हैं। 11 ऐसे शहरों में कांग्रेस समर्थित उम्मीदवारों को भाजपा ने धूल चटाई है, जहां कांग्रेस के विधायक हैं। अहम बात यह है कि इनमें से ज्यादातर विधायक चुनावों में सक्रियता दिखा रहे थे, लेकिन फिर भी पार्टी की प्रतिष्ठा नहीं बचा पाए।
हालांकि कांग्रेसी इसी बात में खुश नजर आ रहे हैं कि निर्दलीय उम्मीदवारों ने भाजपा-जजपा गठबंधन उम्मीदवारों को कई शहरों में पटकनी दी। निर्दलीयों को मिले लगभग 52 प्रतिशत वोट को सरकार के खिलाफ मानकर कांग्रेस अंदर ही अंदर खुश भी हो रही है, लेकिन चुनावों में मत प्रतिशत के साथ ही हार-जीत ही मायने रखती है। वैसे भी जब सरकार का आधा कार्यकाल बचा हो तो निर्दलीय भी सरकार के साथ ही खड़े नजर आते हैं। वैसे भी निकायों पर दल-बदल कानून लागू नहीं होता। सूत्रों का कहना है कि निकाय चुनाव के नतीजों के बाद अंदरखाने कई विधायक इस बात को लेकर नाराज हैं कि नेतृत्व ने उनकी बात नहीं मानी। दरअसल, निकाय चुनावों की घोषणा के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की दो अहम बैठकें भी हुई थीं। इन बैठकों में सहमति बन गई थी कि नगर परिषद के चुनाव सिम्बल पर लड़े जाएंगे। नगर पालिकाओं का फैसला स्थानीय नेताओं पर ही छोड़ दिया जाएगा, लेकिन इसके बाद स्थिति पूरी तरह से उलट हो गई।
बताते हैं कि तीन वरिष्ठ नेताओं – प्रदेश प्रभारी विवेक बंसल, प्रदेशाध्यक्ष उदयभान तथा पूर्व सीएम व विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने ‘वीटो पावर’ का इस्तेमाल करते हुए निकायों के चुनाव सिम्बल पर नहीं लड़ने का निर्णय लिया। कांग्रेस के इस फैसले से इन चुनावों के सभी समीकरण पूरी तरह से बदल गए। कांग्रेस द्वारा भी सिम्बल पर लड़ने की संभावना के बीच ही भाजपा ने जजपा से अलग होकर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया था।
बाद में जब मैदान खुला नजर आया तो दोनों पार्टियां मिलकर चुनावी रण में आ गई। माना जा रहा है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में भी अब सिम्बल पर चुनाव नहीं लड़ने का अफसोस है। वे यह मान रहे हैं कि अगर सिम्बल पर चुनाव लड़े होते तो गठबंधन सरकार के लिए बड़ी मुश्कलें खड़ी हो सकती थी।
5 परिषद व 6 पालिकाओं में विधायक
पांच नगर परिषद और 6 नगर पालिकाएं ऐसी हैं, जहां कांग्रेस के विधायक थे। इसके बाद भी पार्टी समर्थित उम्मीदवारों को यहां हार का सामना करना पड़ा। झज्जर में पूर्व शिक्षा मंत्री गीता भुक्कल, बहादुरगढ़ में राजेंद्र सिंह जून, नूंह में आफताब अहमद, कालका में प्रदीप चौधरी और गोहाना में जगबीर सिंह मलिक के विधायक होते हुए पार्टी नगर परिषद का चुनाव हारी है। इसी तरह से लाडवा में मेवा सिंह, महेंद्रगढ़ में राव दान सिंह, फिरोजपुर-झिरका में मामन खान इंजीनियर, पुन्हाना में मोहम्मद इलियास, समालखा में धर्म सिंह छोक्कर व सढ़ौरा में रेणु बाला कांग्रेस विधायक हैं। इन छह पालिकाओं में भी भाजपा-जजपा गठबंधन प्रत्याशियों ने जीत हासिल की है।
कोशिश भी नहीं की गई
झज्जर व बहादुरगढ़ नगर परिषद सहित कई पालिकाओं में स्थिति ऐसी है कि कांग्रेस के नेता गंभीर होते तो यहां गठबंधन को रोक सकते थे। इन शहरों में अध्यक्ष पद के लिए कांग्रेस समर्थित उम्मीदवारों की संख्या दो, तीन या इससे भी अधिक थी। पार्टी नेता उम्मीदवारों के साथ बात करके उन्हें बैठा देते और इन शहरों में पार्टी समर्थित एक ही प्रत्याशी होता तो चुनाव जीता जा सकता था।
सैलजा के वक्त सिंबल पर लड़े
सैलजा के प्रदेशाध्यक्ष रहते कांग्रेस ने तीन निगमों – पंचकूला, अम्बाला सिटी व सोनीपत के चुनाव सिम्बल पर लड़े थे। दिसंबर-2020 में इन निगमों के साथ रेवाड़ी नगर परिषद का भी चुनाव हुआ था। रेवाड़ी में भी कांग्रेस ने अध्यक्ष पद के लिए सिम्बल पर प्रत्याशी उतारा था। निगमों के चुनाव सिम्बल पर लड़ने का फैसला पार्टी कर चुकी है, लेकिन परिषद तक पहुंचने की हिम्मत प्रदेशाध्यक्ष नहीं दिखा पाए।