अशोक उपाध्याय
भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक आज से हैदराबाद में होगी, जिसमे पार्टी अपनी उपलब्धियों और खामियों पर मंथन करेगी। उद्धव ठाकरे सरकार के पराभव के बाद महाराष्ट्र में खोई हुई राजनीतिक जमीन पाने पर भाजपा में उत्साह का माहौल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केंद्र में सत्ता संभालने के बाद भाजपा नित नये-नये प्रयोग कर रही है और पूर्वोत्तर भारत पर कब्जा करने के बाद अब दक्षिण भारत में अपने पैर जमाने की कोशिश में लगी है। कर्नाटक में वह सत्ता में है और अब उसकी निगाहें तेलंगाना पर टिकी हैं। दरअसल मोदी के नेतृत्व संभालने के बाद भाजपा की कार्यशैली में काफी बदलाव आया है। भाजपा ने सत्ता की राजनीति में अपने प्रतिद्वंद्वियों को काफी पीछे छोड़ दिया है। एक के बाद एक कई राज्यों में सरकारें बनाने के बाद भाजपा के एजेंडे में दक्षिण भारतीय राज्य ऊपर हैं और पार्टी का अपने बूते इन राज्यों में सरकार बनाने का सपना बहुत पुराना है। भाजपा अब तेलंगाना में अपनी पूरी ताकत झोंक रही है जहां अगले साल के अंत में चुनाव होने हैं। वृहत हैदराबाद नगर निगम चुनावों में बड़ी सफलता अर्जित करने के बाद उसका मनोबल ऊंचा है।
भाजपा ने कार्यकारिणी की बैठक में तेलंगाना में पार्टी की जीत की संभावनाओं का पता लगाने के लिये राज्य के सभी 119 विधानसभा क्षेत्रों में संपर्क अभियान छेड़ा है और जनता की नब्ज टटोलने का जिम्मा कार्यकारिणी के सदस्यों को सौंपा है। वे बैठक से पहले विधानसभा क्षेत्रों में संपर्क अभियान में हिस्सा ले रहे हैं और जनता से सीधे संवाद कायम करने के साथ ही वस्तु-स्थिति की जानकारी एकत्र करेंगे। तेलंगाना में भाजपा 2020 से नये सिरे से संगठन को मजबूत करने में जुटी है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 2020 में वृहत हैदराबाद नगर निगम के चुनावों के दौरान जब रोड शो किया था तो उन्हें भारी जनसमर्थन मिला। यही नहीं, इन चुनावों के नतीजों ने राज्यों में तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) को झकझोर दिया था। नगर निगम के 150 वार्ड में टीआरएस को 55, भाजपा को 48 और असदुद्दीन ओवेसी की एआईएमआईएम को 44 वार्ड में जीत मिली थी।
भाजपा ने बैठक के अंतिम दिन तीन जुलाई को हैदराबाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली आयोजित करने का निर्णय लिया है और इसके माध्यम से वह तेलंगाना में भाजपा को सत्ता में लाने के अभियान में नये आयाम जोड़ना चाहेगी। ऐसी अटकलें हैं कि तेलंगाना में टीआरएस समय से पहले विधानसभा चुनाव कराने की तैयारी कर रही है और भाजपा इसे एक बेहतर अवसर के रूप में भुनाना चाहती है। उसने पिछली बार भी समय से पहले विधानसभा चुनाव कराने का निर्णय लेकर अपने प्रतिद्वंद्वी दलों को सकते में डाल दिया था, दरअसल वहां पर विपक्ष चुनाव के लिये तैयार ही नहीं था और इसका लाभ टीआरएस को मिल गया।
इस वर्ष गुजरात और हिमाचल प्रदेश में भी विधानसभा चुनाव होने हैं और भाजपा के लिये वहां पर अपने किले को बचाये रखने की चुनौती है। कांग्रेस पार्टी लगातार कमजोर हो रही है और इसका राजनीतिक लाभ भाजपा को मिल रहा है। इतिहास पर गौर करें तो कांग्रेस के कमजोर होने पर क्षेत्रीय पार्टियों का जन्म हुआ और उनमें से कई अपना प्रभाव बनाये रखने में सफल हैं। अब तो क्षेत्रीय पार्टियों की भी लंबी फेहरिस्त बन चुकी है और हाल ही में आम आदमी पार्टी का उदय हुआ जो निरंतर अपना विस्तार कर रही है। दिल्ली के बाद उसने पंजाब में बड़ी जीत दर्ज कर सबको चौंका दिया और अब उसकी निगाहें गुजरात और हिमाचल प्रदेश पर टिकी हैं।
भाजपा के लिये हैदराबाद बैठक जश्न मनाने का एक अवसर है। जिस तरह से हाल के पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में उसे चार राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में सफलता मिली वह उसके तेजी से बढ़ते हुए राजनीतिक दायरे को दर्शाता है। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में जनता ने नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ की डबल इंजन वाली सरकारों पर जैसे भरोसा जताया वह भाजपा के लिये 2024 के लोकसभा चुनाव के लिये जीत की राह खोलती दिखती है। हाल के उपचुनावों में भाजपा ने उत्तरप्रदेश की रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा सीट पर अपनी चिर प्रतिद्वंद्वी समाजवादी पार्टी को हराया और वह इस अवधारणा को तोड़ने में कामयाब होती दिखी कि मुस्लिम-यादव वोट बैंक वाले चुनावी क्षेत्र में जीत दर्ज करना उसके लिये कठिन है।
कोरोनाकाल में मोदी सरकार ने महामारी की रोकथाम के लिये जो उपाय किये उसे पूरी दुनिया ने सराहा है। भारत ने कोराेना का टीका विकसित किया और जरूरतमंद देशों को आपूर्ति करके मानवीय पक्ष को मजबूत किया। सच्चाई तो यह है कि भाजपा के लिये यह महामारी एक बड़ी चुनौती थी और अगर वह उससे कारगर ढंग से नहीं निपट पाती तो उसका पूरा संगठन खतरे में पड़ सकता था। कोरोना ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को बिगाड़ने का काम भी किया और ऐसे में भारत भी उसके चपेट में आ सकता था। सरकार ने जिस सूझबूझ के साथ लाॅकडाउन लगाया और गरीबों के लिये मुफ्त राशन योजना को लागू करने के साथ लाभार्थियों के खाते में सीधे पैसे ट्रांसफर किये उसकी कल्पना उसके विरोधियों ने भी नहीं की थी।
भाजपा की इन तमाम उपलब्धियों के बावजूद विपक्ष कोई भी मौका अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहता है। उदाहरण हेतु कृषि सुधार कानूनों को लेकर किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर साल भर घेरेबंदी की और अंत में सरकार को इसे वापस लेना पड़ा। सेना में भर्ती के लिये हाल में लाई गई अग्निपथ योजना भाजपा के लिये चुनौती बन गई है। विपक्ष ने इस योजना को युवाओं के साथ रोजगार के नाम पर छलावा करार दिया है और देश में कई स्थानों, खासकर उत्तर भारत में इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन और हिंसा की वारदातें हुईं जो चिंता का विषय है। सरकार युवाओं का भ्रम दूर करने के साथ इस योजना को लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। उसके स्पष्टीकरण और आश्वासनों से विरोध प्रदर्शन थम गये हैं लेकिन विपक्ष इसे मोदी सरकार के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिये कोई मौका नहीं छोड़ेगा। देखना होगा विपक्ष अपने इरादों में कहां तक कामयाब होता है।
भाजपा ने राष्ट्रपति के चुनाव के लिये पार्टी की आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू को अपना उम्मीदवार बनाकर विपक्ष के उम्मीदवार एवं भाजपा के पूर्व नेता यशवंत सिन्हा से मिलने वाली रही-सही चुनौतियों को भी अत्यंत कमजोर बना दिया है। झारखंड की राज्यपाल रह चुकीं द्रौपदी मुर्मू की जीत तय मानी जा रही है और इससे भाजपा को लाभ होगा। नरेंद्र मोदी विश्व के बड़े नेताओं में शुमार किये जाने लगे हैं। भाजपा की दलील है कि उनकी लोकप्रिय छवि का भारत को लाभ मिला है। हैदराबाद बैठक के जरिये भाजपा एक बार फिर अपने कार्यकर्ताओं को पार्टी के विस्तार के लिये नये दिशा-निर्देश जारी कर सकती है।
लेखक यूनीवार्ता के संपादक रहे हैं।