पोलैंड विश्वविद्यालय में ‘भारतीय विद्या संस्थान’ के निदेशक व भारत में राजदूत रहे क्षिश्तोफ बृस्की एक बार दिल्ली में आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन भाषण दे रहे थे। वे संस्कृत और हिन्दी के प्रकाण्ड विद्वान होने के साथ-साथ भारतीय साहित्य तथा धर्मशास्त्रों के गहन अध्येता थे। अपने सम्बोधन में उन्होंने ऋग्वेद में वर्णित सूर्य आदि के महत्व को विज्ञानपरक बताते हुए कहा, ‘मैं भारतीय वाङ्मय का अध्ययन करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि भारत का सनातन धर्म तथा यहां के भिन्न-भिन्न रीति-रिवाज विज्ञान सम्मत हैं। उन्हें पाखंड या अंधविश्वास कहकर नकारा नहीं जा सकता।’ उनके भाषण के बाद एक भारतीय विद्वान ने क्षिश्तोफ को देश में कुछ संग्रहालय स्थापित करने का सुझाव दिया। प्रत्युत्तर में बृस्की बोले, ‘भारत के लिए रामायण और महाभारत जैसे अक्षय स्मारक पर्याप्त हैं। इस देश को संग्रहालय सरीखे भौतिक विन्यासों की जरूरत नहीं है।’ एक विदेशी विद्वान की रामायण और महाभारत के प्रति ऐसी आस्था को देखकर सभी उपस्थित जन उनके प्रति नतमस्तक हो गए।
प्रस्तुति : राजकिशन नैन