वाशिंगटन, 3 नवंबर (एजेंसी) अमेरिकी सांसद ब्रेंडन बॉयल ने भारत में 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देते हुए, नरसंहार के पीड़ित परिवारों के लिए न्याय की मांग की। पेनसिल्वेनिया के सांसद बॉयल ने अमेरिकी प्रतिनिधिसभा में मंगलवार को कहा, ‘स्पीकर महोदया, मैं भारत में नवंबर 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों की बात करना चाहता हूं, जिसे सिख नरसंहार भी कहा जाता है।’ भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके दो सिख अंगरक्षकों द्वारा 31 अक्टूबर 1984 को हत्या किए जाने के बाद देश में सिख विरोधी दंगे भड़के थे। बॉयल ने कहा कि आज, अमेरिका में 5 लाख से अधिक सिख हैं, जो यहां 130 वर्ष पहले आना शुरू हुए थे। उन्होंने कहा, ‘भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद, भारत की राजधानी दिल्ली और कई अन्य शहरों में एक नवंबर 1984 को सिखों के खिलाफ नरसंहार हुआ था। पहले सिख व्यक्ति की हत्या उस दिन तड़के की गई और यह हिंसा तीन दिन तक चली, जिसमें सिख समुदाय के हजारों लोग हताहत हुए। इस नरसंहार के बाद, कथित तौर पर करीब 20,000 सिखों को भागने पर मजबूर होना पड़ा जिससे अनगिनत लोग विस्थापित हुए।’ सांसद ने कहा, ‘स्पीकर महोदया, सिख नरसंहार को याद करना उन सभी पीड़ितों के परिवारों के लिए न्याय और जवाबदेही की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण एवं ऐतिहासिक कदम है।’
दूरदृष्टा, जनचेतना के अग्रदूत, वैचारिक स्वतंत्रता के पुरोधा एवं समाजसेवी सरदार दयालसिंह मजीठिया ने 2 फरवरी, 1881 को लाहौर (अब पाकिस्तान) से ‘द ट्रिब्यून’ का प्रकाशन शुरू किया। विभाजन के बाद लाहौर से शिमला व अंबाला होते हुए यह समाचार पत्र अब चंडीगढ़ से प्रकाशित हो रहा है।
‘द ट्रिब्यून’ के सहयोगी प्रकाशनों के रूप में 15 अगस्त, 1978 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दैनिक ट्रिब्यून व पंजाबी ट्रिब्यून की शुरुआत हुई। द ट्रिब्यून प्रकाशन समूह का संचालन एक ट्रस्ट द्वारा किया जाता है।
हमें दूरदर्शी ट्रस्टियों डॉ. तुलसीदास (प्रेसीडेंट), न्यायमूर्ति डी. के. महाजन, लेफ्टिनेंट जनरल पी. एस. ज्ञानी, एच. आर. भाटिया, डॉ. एम. एस. रंधावा तथा तत्कालीन प्रधान संपादक प्रेम भाटिया का भावपूर्ण स्मरण करना जरूरी लगता है, जिनके प्रयासों से दैनिक ट्रिब्यून अस्तित्व में आया।