नयी दिल्ली, 24 अप्रैल (एजेंसी)
न्यायमूर्ति एन वेंकट रमण देश के 48वें प्रधान न्यायाधीश बन गये हैं। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शनिवार को उन्हें पद की शपथ दिलाई।
न्यायमूर्ति एन वी रमण ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में कई महत्वपूर्ण फैसले दिए हैं, जिनमें से एक जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट पर प्रतिबंध का अंत सुनिश्चित करने से जुड़ा था और एक अन्य निर्णय के तहत सुप्रीम कोर्ट पारदर्शिता कानून के दायरे में आ गया। आंध्र प्रदेश में कृष्णा जिले के पोन्नावरम गांव में जन्मे मृदुभाषी न्यायमूर्ति रमण को देश में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के बीच शीर्ष अदालत में कामकाज में सुगमता रखने की अहम जिम्मेदारी संभालनी होगी।
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त किए जाने के बाद इंटरनेट प्रतिबंध से जुड़े अनुराधा भसीन मामले में न्यायमूर्ति रमण द्वारा लिखे गए फैसले की अनेक लोगों ने सराहना की थी और इसे प्रगतिशील निर्णयों में से एक करार दिया था। न्यायमूर्ति रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने पिछले साल जनवरी में कहा था कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और इंटरनेट पर कारोबार करना संविधान के तहत संरक्षित है। पीठ ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन को प्रतिबंध के आदेशों की तत्काल समीक्षा करने का निर्देश दिया था।
वह पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का हिस्सा थे जिसने नवंबर 2019 में कहा था कि प्रधान न्यायाधीश का पद सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण है। नवंबर 2019 के फैसले में, शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि “जनहित” में सूचनाओं को उजागर करते हुए ‘न्यायिक स्वतंत्रता को भी ध्यान में रखना होगा।’
1983 में बने वकील : 27 अगस्त, 1957 को जन्मे, न्यायमूर्ति रमण 10 फरवरी, 1983 में अधिवक्ता के रूप में नामांकित हुए थे। उन्हें 27 जून, 2000 को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया और वह 10 मार्च, 2013 से 20 मई, 2013 तक आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के तौर पर कार्यरत रहे। उन्हें 2 सितंबर, 2013 को दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बनाया गया और 17 फरवरी, 2014 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश नियुक्त हुए।